Site icon अग्नि आलोक

दीपावली के तीन चेहरे

Share

,मुनेश त्यागी

     इस बार दीपावली के मौके पर भारत के सारे अमीर, रईस और धनवान लोग खुलकर दिवाली मना रहे थे। सभी पैसे वालों के चेहरे खिले हुए थे। अधिकांश पैसे वाले दिल खोलकर दिवाली पर खर्च कर रहे थे। इस बार कई साल बाद दिवाली की छटा अद्भुत थी। पूरा बाजार सुंदर-सुंदर सामानों से भरा हुआ था, दुकानों पर खरीदने वाले ग्राहकों की बड़ी भीड़ लगी हुई थी। दुकानों पर इतनी भीड़ हमने अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखी थी। ऐसा लग रहा था कि जैसे पूरी दुनिया शहरों में खरीदारी करने के लिए दुकानों पर पहुंच गई है।

      हमने पूरे बाजार में घूम कर हमने देखा पहला,,,, कि लक्ष्मी पैसे वालों की जेब से निकलकर दुकानदारों की गुल्लक में जा बसी थी। दूसरे,,,, पूरा बाजार मजदूरों द्वारा बनाई गई बहुमूल्य, मनमोहक और खूबसूरत चीजों से भरा हुआ था, जिसे मजदूर वर्ग ने बनाया था। तीसरा,,,, एक वर्ग था जो नौकरों और मजदूरों के रूप में फैक्ट्री और दुकानों में काम कर रहे थे। उन सबके तेरे बुझे हुए थे। उनके चेहरों पर दीपावली की रौनक का कोई नामोनिशान नहीं था, वहां स्मृद्धि, ख़ुशियों और धन दौलत का एकदम अकाल पड़ा हुआ था और चौथा,,,, दृश्य जो सबसे ज्यादा मीडिया में छाया हुआ था, वह था कि भारत के गरीब लोग अयोध्या में जलाए गए 23 लाख दियों में से जो दिए बुझ गए थे, उनसे बचा हुआ तेल बटोर रहे थे और इनमें बड़ी संख्या छोटे-छोटे अब आगे गरीब बच्चों की थी

       यहां पर सबसे अहम सवाल उठता है कि आजादी के 75 साल बाद भी दिवाली के मौके पर हमारे बाजारों में ये कई तरह की तस्वीरें क्यों मौजूद थीं? इसका सबसे बड़ा कारण है कि भारत में दो वर्ग पैदा हो गए हैं और इनकी संख्या और आकार लगातार बढ़ता जा रही है। पिछले 30 साल से और मुख्य रूप से पिछले 10 साल से भारत में बड़े पूंजीपतियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इनके धन दौलत का आकार भी बढ़ता जा रहा है। इन्होंने अपने हितों को आगे बढ़ाने वाली सरकार कायम कर ली है और अब ये भारत के असली नीति निर्माता और सच्चे मालिक बन गए हैं। 

    अब सरकार और पूरी व्यवस्था उनकी जेब में है। इन्होंने किसी भी तरीके से अपना धन दौलत बढ़ाने का पूरा इंतजाम कर लिया है। अब पूरी सरकार इनका धन दौलत बढ़ाने में ही लगी हुई है। उसने धन दौलत बढ़ाने के रास्ते में आने वाले सभी रूकावटों और बाधाओं को दूर कर दिया है। इस वजह से अमीरों का यह तबका भारत में सबसे ज्यादा खुश दिखाई देता है। उनके चेहरे मोहरे पर लक्ष्मी पूरी स्पष्टता के साथ दिखाई दे रही थी।

      दूसरा तबका मजदूर वर्ग है जो पिछले 30 साल से और मुख्य रूप से पिछले 10 साल से गरीब से गरीब होता जा रहा है। उसकी बेहतरी के लिए बनाए गए कायदे कानूनों को भारत के इन तमाम रईसों और धन-दौलत वालों ने ताक पर रख दिया है। भारत के 85% मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं मिलता है। मलिकान ने मजदूरों की रक्षा के लिए बनाए गए कानूनों को लागू करना बिल्कुल बंद कर दिया है और ये अधिकांश मजदूर लगभग आधुनिक गुलाम बना दिये गए हैं।

       हमने मिठाई की दुकानों पर, किराना की दुकानों पर, अस्पताल में काम करने वाले, कारखाने में काम करने वाले मजदूरों, सरकारी विभागों में अस्थाई और ठेकेदारों के मजदूरों से जानकारी प्राप्त की तो उन्होंने बताया कि उनमें से अधिकांश को न्यूनतम वेतन नहीं मिलता है। उन्हें 12-12 घंटे काम करने के बाद सिर्फ 8 या 9000 रुपए दिए जाते हैं, उन्हें ओवरटाइम का भुगतान नहीं किया जाता। जबकि ओवरटाइम का भुगतान मिलकर उन्हें कम से कम 28000 रुपए प्रति माह मिलने चाहिए और अब उन्हें दिवाली के मौके पर कोई बोनस नहीं मिलता, जिस वजह से उनका जीना हराम हो गया है और वे दुनिया की सबसे गरीब जनता में शामिल हो गए हैं और अब उनके लिए दिवाली मनाने के कोई मायने नहीं रह गए हैं।

       यही हाल भारत के अधिकांश किसानों का है। उन्हें आजादी के बाद भी आज तक अपनी फसलों का वाजिब दाम नहीं मिलता। वे शिक्षा और सेहत के अधिकारों से भी लगभग महरूम होते चले जा रहे हैं। क्योंकि अब सरकारी शिक्षा और इलाज की व्यवस्था लगभग चरमरा गई है। अधिकांश लोग इस स्थिति में नहीं है कि वे प्राइवेट अस्पताल में अपना इलाज कर सके या निजी स्कूलों में अपने बच्चों को पढा सकें, जिस वजह से उनके लिए भी दिवाली का होना या ना होना कोई मायने नहीं रखता और उनके घरों से भी दिवाली की रौनक नदारत थी।

      अगला दृष्ट देखा जो बहुत परेशान करने वाला था। वैसे तो सरकार अंधविश्वास और धर्मांता का प्रदर्शन करके आस्था के नाम पर, विवेक, ज्ञान और नैतिकता को मिट्टी में मिलाकर, अयोध्या में 23 लाख दीपक जलाने का कीर्तिमान कायम करने की बात कह रही थी और जनता का धन इस तरह से आस्था के नाम पर बर्बाद किया जा रहा था। वही हमने देखा कि बहुत सारे बच्चे उन दियों से तेल बटोर रहे थे, जो दिए बुझ चुके थे। ये बच्चे अत्यंत गरीब थे, उनके पास समुचित कपड़े नहीं थे, ये कुपोषण का शिकार थे।

      इस प्रकार इस दिवाली के मौके पर जहां भारत की जनता का छोटा सा समृध्दि से भरपूर हिस्सा दिवाली को लेकर खुश था, बड़े उत्साह से दिवाली मना रहा था, वहीं भारत की जनता का बड़ा हिस्सा,,, गरीब किसान और मजदूर, दिवाली की खुशियों से, समृद्धि से और लक्ष्मी से पूरी तरह से महरूम थे। उनके चेहरों पर कोसों कोसों दूर तक भी दिवाली की खुशियों और समृद्धि के कोई निशान मौजूद नहीं थे। यह सब देखकर यही लगा कि हमारे देश में ये दो तरह के भारत किसने बना दिए हैं, इसके लिए कौन जिम्मेदार हैं? उन लोगों को हमें पहचानना चाहिए और उनसे सावधान हो जाना चाहिए और एक ऐसे भारत के निर्माण के अभियान में शामिल हो जाना चाहिए, जिसमें भारत की तमाम तमाम जनता खुशी और समृद्धि से दीपावली मना सके।

Exit mobile version