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तीन पोस्ट, तीनों मोदी-सरकार की भीषण नाकामियों का ताज़ा आख्यान  !

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रामशरण जोशी

फेसबुक पर मोदी-नेतृत्व के भाजपा सत्ता प्रतिष्ठान के चरित्र से जुड़ी तीन पोस्टों पर नज़र पड़ी। तीनों ही बेहद दिलचस्प और आश्चर्यजनक। तीनों ही असली हैं, फ़र्ज़ी नहीं हैं। तीनों मोदी-सरकार की भीषण नाकामियों का ताज़ा आख्यान हैं। 

हम पहली पोस्ट पर चर्चा करते हैं। भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने अत्यंत आश्चर्यजनक आत्मस्वीकृति की है। विगत मंगलवार को “भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024: युवा रोज़गार, शिक्षा और कौशल” ज़ारी करने के अवसर पर बोलते हुए नागेश्वरन कहते है कि यह सोचना ग़लत है कि सरकार सभी सामाजिक-आर्थिक समस्याओं, विशेष रूप से बेरोज़गारी का समाधान कर सकती है। वे कहते हैं कि इस समस्या के सम्बन्ध में हर जगह बोलता रहूंगा, लेकिन सरकार इसका समाधान करेगी, यह सोच गलत है। अब आर्थिक सलाहकार की इस सोच की कुछ चीर -फाड़ की जाए। 

18वीं लोकसभा के लिए मतदान करीब हैं। इस पृष्ठभूमि में मोदी-सरकार के आला आर्थिक सलाहकर का यह कथन किस बात का संकेत देता है? क्या यह मान लिया जाए कि मोदी-सरकार रोज़गार सृजन और उपलब्ध कराने के क्षेत्र में नाकाम हो चुकी है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमृत महोत्सव काल में कहते रहे हैं कि प्रतिवर्ष 2 करोड़ नौकरियां देंगे। अब तक सरकार ने कितनी नौकरियां दीं हैं, इसका लेखा-जोखा जारी किया है?

क्या प्रधानमंत्री के उक्त कथन या ज़बानी संकल्प से मुख्य सलाहकार अवगत हैं? चूंकि चुनावों की घोषणा और आचार संहिता लागू हो चुकी है तब नागेश्वरन अपने हाथ खड़े कर रहे हैं और लोगों के मानस को बदलने का प्रयास कर रहे हैं कि वे भीषण बेरोज़गारी के लिए सरकार को दोषी या अपराधी न ठहराएं। क्या सलाहकार बतलायेंगे कि नौकरियां ईश्वर या दैवी शक्ति देगी? हिन्दुओं के 36 करोड़ देवी-देवता हैं, कौनसा देवता बेरोज़गारी का समाधान करेगा? अयोध्या में भव्यता के साथ राम जन्मभूमि मंदिर के बन जाने के बाद भी मोदी-सरकार असफल क्यों है?

चंद कॉर्पोरेट घरानों की दौलत में अकूत इज़ाफ़ा होने के बाद भी रोज़गार मोर्चे पर मोदी-सरकार बेबस क्यों दिखाई दे रही है? क्या सलाहकार महोदय इस पर प्रकाश डालेंगे? क्या वे अंतरष्ट्रीय श्रम संगठन की ताज़ा रिपोर्ट का अध्ययन करेंगे जिसमें कहा गया है कि भारत के युवा संसार में 83 प्रतिशत बेरोज़गारी फैली हुई है? एक तरह से नौकरीविहीनता महामारी की तरह फ़ैल रही है। 

मुख्य आर्थिक सलाहकार की बहुमूल्य राय है कि सरकार सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का समाधान नहीं कर सकती।  नागेश्वरन बतलायेंगे कि राज्य और सरकार के मूलभूत कर्त्तव्य क्या हैं? दोनों संस्थाएं अस्तित्व में क्यों और कैसे आईं?  क्या सरकार का काम और उत्तरदायित्व समाज का कुशल प्रबंधन नहीं है? क्या सरकार का काम समाज में व्याप्त असमानता, गुरबत, भूख, बेरोज़गारी, ऊंच-नीच के भाव, साम्प्रदायिकता को समाप्त करना नहीं है? क्या अपने नागरिकों को गरिमापूर्ण जीवन उपलब्ध कराना नहीं है? क्या राज्य और सरकार सिर्फ क़ानून -व्यवस्था बनाये रखने और सरहदी शत्रुओं से लड़ने के लिए ही हैं? 

इस नाचीज़ पत्रकार की सलाह है कि मुख्य आर्थिक सलाहकार संविधान के नीति निर्देश तत्व को पढ़ें। नागेश्वरन को  राज्य की ‘राजनीतिक आर्थिकी (पोलिटिकल इकॉनोमी)‘ का पुख्ता ज्ञान होगा ही! याद रखें, यदि सरकार समाधान नहीं कर सकती है तो इसके संचालक (प्रधानमंत्री आदि) जनता में जाकर बेरोज़गारी दूर करने और रोज़गार उपलब्ध कराने का नारा लगा कर ‘वोट-गुहार’ न करें। क्या मुख्य आर्थिक सलाहकार नागेस्वरन इसकी कीमती सलाह अपने प्रधानमंत्री नरेंद्र नरोत्तमदास मोदी देंगे?

दूसरी पोस्ट विख्यात वकील व एक्टिविस्ट प्रशांत भूषण की है। उनकी पोस्ट बतलाती है कि “उत्तर प्रदेश में 62 चपरासी पदों के लिए 3700 पीएचडी, 28000 स्नातोकत्तर और 50000 स्नातक लोगों ने अपनी अर्ज़िया दी हैं। आज का जॉब-संकट इस सीमा तक पहुंच चुका है।” क्या मुख्य सलाहकार प्रशांत भूषण के आंकड़ों की व्याख्या करने की ज़हमत उठाएंगे?  अयोध्या में लाखों दीप जलाकर राम लल्ला की आगवानी की जाती है। तब बेरोज़गारी के इस आलम की तरफ ध्यान नहीं जाता है?

क्या आर्थिक सलाहकार इस विद्रूपता को रोक नहीं सकते थे? क्या उनका यह दायित्व नहीं था कि वे भाजपा सत्ता प्रतिष्ठान के स्वामियों को इस विकृत अपव्यय के विरुद्ध नेक सलाह देते? धार्मिक सत्ता की भव्यता के प्रदर्शन पर कितना खर्च किया जा रहा है, इसका लेखा-जोखा सार्वजनिक होना चाहिए था। समाज की चिंताजनक आर्थिक दशा और धार्मिक भव्यता के अंतर संबंधों को समझने की ज़रुरत है। इस परिप्रेक्ष्य में सलाहकार नागेश्वरन मोदी-सरकार को रचनात्मक राय दे सकते थे। यदि उन्होंने दी भी है तो उसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए।

लेकिन, उनकी इस दलील को पचा पाना मुश्किल है कि सरकार बेरोज़गारी का समाधान नहीं कर सकती है। यह बात सभी दलों की सरकारों पर भी लागू होती है। यदि किसी भी दल की सरकार समस्या  का हल निकालने में अक्षम है, तो उसे लम्बे-चौड़े वायदे करने और घोषणापत्र जारी नहीं करना चाहिए। क्या घोषणापत्रों के माध्यम से जनता को घेरने के लिए भ्रम और झूठ का मायाजाल रचा जाता है? क्या सलाहकार इस मायाजाल के गतिविज्ञान को समझते हैं? क्या वे  चुनाव के समय दलों के लिए एडवाइजरी जारी कर सकते हैं कि वे अयथार्थवादी वायदे न करें? क्या वे प्रधानमंत्री को इस सम्बन्ध में सलाह देंगे? याद रखना चाहिए, नागेश्वरन जी आप आर्थिक सलाहकार के साथ साथ देश के नागरिक हैं। आपकी प्रथम ज़िम्मेदारी समाज की बेहतरी के लिए है, न कि प्रधानमंत्री के लिए मन-भावन भूमिका निभाने के लिए। 

तीसरी पोस्ट का संबंध मोदी-सरकार की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री पति डॉ. परकाला प्रभाकर के वीडियो से है। सोशल मीडिया पर चल रहे वीडियो और पोस्ट में प्रभाकर स्पष्ट शब्दों में बतलाते हैं कि चुनावी बांड भारत ही नहीं, दुनिया का सबसे बड़ा महाघोटाला है। इस सम्बन्ध में आला सलाहकार का क्या कहना है? वे किन शब्दों में  इस ऐतिहासिक महाघोटाले की व्याख्या करेंगे? क्या इसका संबंध देश की अर्थव्यवस्था से नहीं है?

प्रभाकर कोई मामूली अर्थशास्त्री नहीं हैं। उनका महत्व इसलिए नहीं है कि वे जेएनयू की पूर्व छात्रा और वर्तमान वित्तमंत्री के पति हैं। वे स्वयं भी उसी विश्वविद्यालय के छात्र रह चुके हैं और भारतीय राजनैतिक अर्थशास्त्री हैं। लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में शिक्षित रहे हैं। राज्य की पोलिटिकल इकोनॉमी पर बारीकी पकड़ रखते है। इसलिए उन्होंने चुनावी बांड को दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला कहा है। अब हमारे बड़बोले और मीडिया अनुरागी प्रधानमंत्री को आला सलाहकार की क्या सलाह रहेगी? क्या वे जनता के साथ अपनी सलाह को साझा करेंगे? क्योंकि, हज़ारों करोड़ रुपए के घोटाले का रिश्ता देश की अर्थ व्यवस्था से न रहे, यह तो नामुमकिन है। (वैसे मोदी है तो मुमकिन है)।

उपलब्ध आंकड़ों से साफ़ ज़ाहिर है कि मोदी-सरकार घोटाले की ज़िम्मेदारी से अपना मुंह नहीं मोड़ सकती। किन-किन दुश्चक्रों के माध्यम से धन पशुओं यानी कंपनियों को अवैध ढंग से लाभ पहुंचाया गया है, यह स्वतः सिद्ध है। यहां तक कि फ़र्ज़ी कंपनियों का इस्तेमाल किया गया और ऐसी कंपनियों से बॉन्डों के रूप में करोड़ों रुपये का चंदा लिया गया जिन पर नकली दवाइयों के बनाने का आरोप है। क्या यह देश के नागरिकों के जीवन के साथ खिलवाड़ नहीं है? क्या यह हिंदुत्व है? क्या इसे ‘रामराज’ कहा जाए? क्या मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन 140 करोड़ भारतीय जन के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी सत्यनिष्ठा के साथ निभाएंगे? हम भारतवासी सवालों का ज़वाब चाहते हैं।

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