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महिला के बालों से हिलाया गया सिंहासन

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डॉ. अभिजित वैद्य

पूरी जिंदगी बिता दी आशाओं में
जो नहीं कर सके, उसे पूरा करने के सपनों में
गुत्थी में जकड़ी हुई अवस्था में..
चमकने का मेरा समय आने की प्रतीक्षा में ..
अगर द्वार खुलने लगे तो ?
गुत्था सुलझने लगा तो ?
लेकिन मेरी रह में कोई रूकावट नहीं आई तो ?
और पूरा विश्व मेरा हुआ तो क्या, बहुत अच्छा लगेगा ?

क्योंकि मेरी बालों में हवा है.
और आँखों में चमक और क्षितिज अनंत है
मेरे चेहेरे पर हँसी है और मैं हवा पर चल रहा हूँ !

मँडी मूर द्वारा गया हुआ, अलेन मेन्केन तथा ग्लेन स्लटर द्वारा लिखित स्त्री मुक्ति का एल्गार ‘विंडर
इन माय हेअर’ इस बेहतरीन सुंदर गीत की कुछ पंक्तियाँ … स्त्री की आँखों में स्थित अधूरे सपने और उसकी
आँखों की गुत्थी में अटकी हुई ‘उसकी’ आकाँक्षाओं की हवा! लेकिन स्त्री के बालों को भुरभुर उड़ाकर
खेलनेवाली हवा उसी जुल्फों पर धर्म के नाम पर अमानुष हमला होने पर धर्मांध सत्ता को हदरा देनेवाला
तूफान बन सकता है l इब्सेन के ‘डॉल्स हाउस’ इस नाटक की गृहणी – नोरा – पति को छोड़कर घर के
दरवाजे पर लात मारकर बाहर निकलती है और उस दरवाजे की आवाज की गूँज पूरे युरोप की व्यवस्था को
हदरा दी जाती है l
इराण की लाखों महिलाओं के आँखों के सपने गत अनेक दशक इसी तरह से चकनाचूर हुए थे और
बालों की लटों की हवा हिजाब में कैद हो चुकी थी l कुछ महीनों पहले महस अमिनी नामक २२ उम्र की
युवति के बालों की लटों ने हिजाब के बाहर अप्रत्यक्षरूप में देखने का प्रयास किया थ और धर्मांध व्यवस्था ने
उसकी अमानुष तौर पर बली चढ़ाई l स्त्री के बालों की लटों ने हिजाब के बाहर गलती से भी देखना
धर्मविरोधी कृति मानी जाती थी l
हिजाब के बाहर देखनेवाली महिलाओं की जुल्फे धर्म को नष्ट करती है ऐसा उनका मानना है l
इराण की सघेझ गाँव की युवती अपने परिवार के साथ तेहरान में पर्यटन हेतु जा रही थी l शहीद हघानी
एक्सप्रेस वे पर प्रवेश करते ही १३ सितंबर को ‘नैतिकता पुलिस’ ने उसे हिजाब ठीक तरह से न पहनने

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आरोप में उसे गिरफ्तार किया l एक घंटे के पुनःशिक्षण वर्ग उसे ले जा रहे हैं, ऐसा उसके भाई को बताया l
नैतिकता पुलिस ने उसे वैन में ही बडी अमानुष मारपीट की और उसे डिटेंशन केंद्र में ले गए l वहाँ वह
बेहोश हो गई तब उसे अस्पतालले गए और तीन दिन बाद १६ सितंबर को उसका मृत शरीर उसके परिवार
के हाथों सौंप दिया l निलोफर हमेदी याशार्घ नाम दैनिक के महिला पत्रकार ने इस घटना को समूचे विश्व के
सम्मुख पेश किया l इराण सरकार ने निलोफर को तुरंत गिरफ्तार किया और व्हएमिन के विशेष महिलाओं
के क्युर्चक कारागृह में डाल दिया l ट्विटर ने उसका खाता बंद कर दिया l लेकिन जब यह घटना दुनिया के
सम्मुख आ गई तब इराण डगमगा गया l इराण की हजारों महिलाएँ अपने बालों की जुल्फें खुलेआम काँटने
लगी l हिजाब जलाने लगी l इन जुल्फों ने निर्माण किए हुए तूफान ने इराण के धर्मांध हुक्मशाही को हदरा
बैठ गया l अल्पावधि में यह वानावल पूरे देश में फ़ैल गया l जिस हिजाब ने इराण की महिलाओं की
आजादी छीन ली थी उस हिजाब की अनिवार्यता अयातुल्ला खोमानी ने इस्लामी क्रांति के बाद हाथ में सत्ता
आते ही मार्च १९७९ में की थी l इस निर्णय के विरोध में इराण की हजारों महिलाएँ सड़क पर उतर आई l
क्रांति सैन्य ( रिवोल्यूशनरी फ़ोर्स ) ने निर्दयता से हिजाब सख्ती विरोधी आंदोलन को कुचल दिया l यही
क्रांतिसैन्य आगे चलकर नैतिकता का रक्षण करनेवाले, ‘मोरॅलिटी पुलिस’, ‘गश्त एर्शाद’ बन गए l इराणी
समाज शरियत के अनुसार कार्य कर रहा है या नहीं यह देखना उनका काम l इसी नैतिकता पुलिस ने सहसा
की हिजाब के कारण बली चढाई l
जिस इराण में आज २०२२ में हिजाब के कारण महिला की बली चढाई गई उसी इराण में ८
जनवरी १९३६ में इराण के बादशाह रेझा शाह पहलविया ने ‘कश्फ-ए-हिजाब’ नाम से प्रसिद्ध एक हुक्म
पर सभी तरह के इस्लामी बुरखों पर रोक लगाई थी l इतनी ही नहीं तो सरकार द्वारा सभी प्रकार की
पुश्तेनी पेहराओं पर मनाही की गई थी l देश को आधुनिकता की ओर ले जानेवाला यह कदम था l मूलतः
दीर्घकालतक जिस इराण में जो राजगद्दी थी वहाँ १९०५ से १९११ के दरमियान पहली क्रांति हुई l इस
क्रांति के बाद इराण में लोकसभा की स्थापना हुई और पहली घटना लिखितस्वरुप में अस्तित्व में आई l यही
है वो ‘घटना क्रांति’ लेकिन इराण की अव्यवस्था ख़त्म नहीं हुई l इसका फायदा उठाकर रशिया एवं इंग्लैंड
रेझा शाह पहलवी की मदद करके १९२१ में राजसत्ताक स्थपित किया l अपितु रेझा शाह पहलवी ने
आधुनिकीकरण पर जोर दिया l उसमें से उन्होंने बुरखाबंदी का कदम उठाया l इसमें राजघराणे की
महिलाएँ अग्रसर थी l १९२८ में इराण की राणी ने बुरखा ठीक तरह से न पहनने के कारण वहाँ के
धर्मस्थल पर जो धर्मगुरु थे उन्होंने राणी की खुलेआम आलोचना की थी l इस कर्म की शिक्षा हेतु इराण के
शाह, रेझा शाह ने इस धर्मगुरु को खुलेआम कोड़े मारने की सजा दी थी l इस घटना के कारण महिलाओं ने
बुरखा न पहने की मूहीम शुरू की l इस मूहीम का महिलाओं ने बडी मात्रा में समर्थ किया l रेझा शाह ने भी
इसे स्वीकृत किया l सार्वजनिक जीवन में बुरखा न पहननेवाले महिलाओं की संख्या बढ़ने लगी l और अंत में
शाह ने बुरखा बंदी का आदेश दे दिया l इस दिन तेहरान टीचर्स कॉलेज के पदवी प्रदान समारोह में पूरा
शाह परिवार उपस्थित था l उनकी पत्नी तथा बेटी अत्याधुनिक पश्चात्य पोशाक में उनके साथ थी l दुसरे
दिन इसके फोटो पूरे इराण में प्रकशित हुए l सार्वजनिक स्थानों पर बुरखा पहननेवाली महिलाओं के बुरखे
दूर करने के अधिकार पुलिस को दिए गए l जिन्होंने ना कहा उकी पिटाई की गई l धार्मिक परंपरा खंडित
करने की जिनकी इच्छा नहीं थी वे महिलाएँ इसके कारण घर से बाहर नहीं निकलती थी l अनेक कर्मठ
महिलाओं ने आत्महत्या की l यह निर्णय लेने से पहले रेझा शाह ने १९३५ में पुरषों को पाश्चात्य पहराव
करने की सख्ती की थी l इस आदेश के विरुध्द बडी मात्रा में अहिंसक आंदोलन हुआ l राजसैन्य द्वारा यह
आंदोलन कुचल दिया गया l इसमें ५०० लोग शहीद हो गए l इराण विविधतापूर्ण देश है l यहाँ पर्शियन,

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कुर्द, ल्युर, गिलाकिस, अरब, बलोची, तुकमेन जैसे विविध प्रकार के समाज है l इन सभी की भाषा तथा
वेशभूषा अलग है l इसमें हरेक समाज की बुरखा या हिजाब की नीति अलग अलग है l इस पूरे समाज को
एकसूत्र में पिरोकर अगर आधुनिकता की ओर ले जाना है तो पाश्चात्य पोशाक उचित रहेगा ऐसा रेझा शाह
का मानना था l
महिलाओं की बुरखा के विरुध्द आदेश जारी होने के बाद उसका बडी मात्रा में स्वागत किया गया l
जीसे बुरखा सख्ती अन्याय है वैसा ही बुरखा बंदी अन्याय है, व्यक्ति स्वतंत्रता पर यह हमला है ऐसा ही
अनेक महिलाओं को लगने लगा l धर्मश्रध्दालूंओं ने इसके विरुध्द बंड घोषित किया l शाह की राज्यसत्ता
जुल्म कर रही है ऐसा जनता को महसूस होने लगी l जनता ने इराण के जुल्मी राजसत्ता का तख्ता पलट
दिया l जिसका परिणाम १९४१ आखिर रझा शाह पदच्युत हो गए l उनके स्थान पर सत्ता में आ गए उनके
ही पुत्र मोहम्मद रेझा पहलवी l उन्होंने जनता की भावनाओं का विचार करते हुए बुरखा बंदी रोक दी l
लेकिन मजे की बात ऐसी हो गई कि सुरक्षित तथा आर्थिकदृष्टी से उच्चवर्ग की महिलाएँ बिना बुरखा घुमाने
लगी l बुरखा पिछड़ेपन का चिन्ह माना गया l अनेक संस्थाओं, उपहारगृहों में बुरखा पहनेवाली महिलाओं
को प्रवेश के लिए मनाई की गई l इससे असंतोष फैलने लगा l बुरखा गरीब तथा मजदूरों की प्रतिक बन
गया l बुरखा स्त्री की सम्मान तथा सभ्यता का रक्षण करता है ऐसी भावना बढ़ने लगी l बुरखा न
पहननेवाली स्त्री काम के स्थान पर लैंगिक शोषण की बली बनने की संभावना बडी मात्रा में होती है ऐसा
मानने लगे l पहलवी के विरुध्द आंदोलन शुरू होने लगा l जो पुश्तेनी महिलाएँ बुरखा पहनकर पुरषों के
कंधे को कंधा मिलाकर काम नहीं कर सकती थी और पुरषों के साथ सड़कों पर उतरना पसंद नहीं करती थी
उन महिलाओं को अब आसान लगने लगा l आंदोलन भड़कने लगा l शुरू में बुरखा बंदी भले ही हटाई हो
लेकिन मोहम्मद रेझा शाह ने लोकसभा विसर्जित की और ‘धवलक्रांति’ घोषित करके आधुनिकीकरण का
कार्यक्रम हाथ में लिया l इस क्रांति ने धर्मयुध्द एवं जमींदार के प्रभाव को सदमा पहुँच गया l इससे ग्रामीण
अर्थकारण बिगड़ गया l देश का शीघ्र गति से शहरीकरण एवं पश्चात्तिकरण होने लगा l अर्थव्यवस्था ठीक हो
गई लेकिन विषमता बढ़ने लगी l जनतंत्र तथा मानव अधिक की तबाही होने लगी l लेकिन १९७० के बाद
तेल के दामों में हो रहे चढाव-उतार के कारण अर्थव्यवस्था की पिछेहाट शुरू हो गई l महँगाई बढ़ने लगी l
गरीबी बढ़ने लगी l शाह के आधुनिकीकरण तथा अर्थकारण के विरोध में कडी आलोचना करने के उपलक्ष्य
में १९६४ के देश के बाहर हांकले गए अयातुल्ला खोमेनी ने इन सभी पर हमला करना शुरू कर दिया l
उनके पक्ष में धर्मगुरुओं का जाना उचित था लेकिन धीरे-धीरे इराणी बुध्दिवादी, वामपक्ष के तथा उनके बाद
जनता भी जाने लगी l इसमें से इस्लामी क्रांति हो गई l इस क्रांति के सड़कों पर अग्रदूत थे इराणी युवक
तथा युवतियाँ l शाह को इराण से अपना परिवार लेकर भागना पड़ा l इराण को स्वतंत्रता मिल गई लेकिन
इराण इस्लामी धर्मगुरुओं के हाथों में चला गया l अब इस्लाम के नाम पर पराधीनता का, विशेषतः
महिलाओं की पराधीनता का नया अध्याय शुरू हुआ l १९७९ में खोमेनी ने इराण इस्लामी प्रजासत्ताक के
रुप में घोषित किया l लेकिन धर्म के आधार पर कोई भी राजसत्ता प्रजासत्ताक नहीं बन सकती, वह आखिर
में धर्माधिष्ठित हुक्मशाही बनती है l खोमेनी ने हाथ में सत्ता आते ही उन्हें मदद करनेवाले वामपक्षीय,
राष्ट्रवादी, तथा बुध्दिवादियों को दूर किया l इराण खोमेनी के कर्मठ एवं धर्मांध मुठ्ठी में कैद हो गया l
खोमेनी ने फरवरी १९७९ में बुरखा सख्ती की l इराण की स्त्री धर्मांध शक्ति के हाथों में जो गई, वो आजतक
भी है l लेकिन इराण में केवल इतना ही नहीं घटित हुआ l इस्लामी राजसत्ता के नाम पर हुक्मशाही निर्माण
की गई l कानून कहकर शरियत लागूकी गई l संगीत, नृत्य इन कलाओं को इस्लामी विरोधी ठहरा गया l
सख्ती एवं पाबंदी ये दो चीजें इन्सान की स्वतंत्रता छीन लेती है l इराण का प्रवास तो बहुत दुरी का है l

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इस्लामी राजसत्ता से आधुनिकता की ओर, मुक्त समाज की ओर, पश्चात्तिकरण की ओर और फिर इस्लामी
राजसत्ता की ओर l ऐसा क्यों हुआ? इसका एक कारण है की आधुनिकीकरण समाज की यात्रा नहीं थी
अपितु कुछ मात्रा में सत्ताधरियों द्वारा की गई सख्ती थी l एकसंध, आधुनिक, मुक्त समाज की ओर हुक्म के
माध्यम से इराण को आगे बढ़ाने की वे जिद् थी l युरोप का आधुनिकीकरण वीज्ञान, कला, तथा साहित्य को
मिली प्रसिध्दी अनेक शांति से समाज ने की हुई यात्रा थी l युरोप का प्रबोधन युग एवं धर्म परिवर्तन के
आंदोलन के कारण इसकी नींव डाली गई l इराण में यह राजा के आदेश के कारण रचने का प्रयास किया
गया l स्वाभाविकतः इस सख्ती के कारण समाज विरुध्द दिशा के पास मूड गया l यह राजसत्ता पलट दी गई
l आनेवाली राजसत्ता ने आधुनिकता की सख्ती तो हटा दी लेकिन इराणी समाज आधुनिक एवं पुश्तेनी इस
तरह विभाजित हुआ l शाह की राजसत्ता में अर्थव्यवस्था ठीक रहती ऐसा माना तो फिर भी संपत्ति का
न्यायिक वितरण न होने के कारण विषमता में वृध्दि हो गई l अर्थव्यवस्था जब विषमता एवं गरीबी निर्माण
करती है तब वह समाज सही दिशा की ओर झुकने लगता है l ऐसे समाज को ईश्वर तथा धर्म का सहारा
लगने लगता है l ये सहारे धोखेबाज होते है और इस बात को समझने के लिए कई दशक लग जाते हैं l अंत
में इराणी समाज ने धर्म की ओर ही सफर शुरू की l
अब चार दशक के बाद यह समाज धर्मांध राजसत्ता की हुक्मशाही को, जुल्म को परेशान होकर
मुक्ति स्वीकृति दे रहा है l इसमें सभी स्तर के लोग सम्मिलित हुए हैं l महिलाओं के कंधे से कंधा मिलाकर
पुरुष भी सम्मिलित हुए हैं l हिजाब का दहन करना या बालों की जुल्फों को काँटना यह कृति केवल हिजाब
सख्ती के खिलाफ शेष नहीं रही अपितु व्यापक सामाजिक, रजकीय एवं आर्थिक परिवर्तन की माँग की
प्रतिक बन गई है l जर्मनी स्थित; इराण तथा मध्य पूर्व देशों की अभ्यासक सारा बझुबंदी के मतानुसार चयन
की स्वतंत्रता यह इस आंदोलन का महत्त्वपूर्ण मुद्दा है l हिजाब का पहनना या न पहनना ये दो मुद्दे सख्ती के
नहीं हो सकते अपितु वे व्यक्तिगत चयन स्वतंत्रता के मुद्दे हैं l धर्म के नाम पर व्यक्तिस्वातंत्र्य पर आघात
किया जाता हा खासतौर पर महिलाओं के l इसमें से किसी भी विकल्प का चयन करने का अर्थ इस्लाम न
मानना या इस्लाम की मूल्यों को ना मानना ऐसा नहीं माना जायेगा l संक्षिप्त में अगर कहा जाए तो धर्म के
आधार पर निजी जीवन नियंत्रित करना उचित नहीं l नीमा खोरामी नामक विदुषी का कहना इससे अलग
है l उसके मतानुसार यह आंदोलन केवल व्यक्तिगत चयन स्वतंत्रता तक सिमित नहीं है l स्त्रियों का
सामाजिक-आर्थिक शोषण, उनपर धर्म के नाम पर होनेवाले अत्याचार, उन्हें मना किए जानेवाले मूलभत
मानवी अधिकार के विरुध्द इराणी स्त्रियों के द्वारा घोषित यह आंदोलन है l क्योंकी यह आंदोलन मध्यमवर्ग
तथा विश्वविद्यालयों तक सिमित न रहकर उसमें बुध्दिवंत, कलाकार, खिलाडी, धनवान व्यापारी तथा
मजदुर भी शामिल हुए हैं l यह आंदोलन न केवल बड़ों शहरों में सिमित रहा अपितु छोटे गाँवो में भी फ़ैल
चुका है l तेहरान जैसे बड़े शहरों में यह आंदोलन दबोचना राज्यकर्ताओं के लिए आसान है लेकिन छोटे गाँवों
में फैला हुआ आंदोलन दबोचना कठिन है l अयातुल्ला खोमानी ने फ्रान्स का विजनवास से इराण जैसे
इस्लामी राष्ट्र का मुख्य सत्ताधीश के नाते १९७९ से १९८९ तक एक दशक; अपनी आयु के ८६ वें साल तक
इराण को अपनी फौलादी पकड़ में बंदिस्त रखा l उनकी मृत्यु के पश्चात् इराण की सत्ता अली खामेनी के
हाथों में आ गई l खामेनी ने ३३ साल इराण अपनी मुठ्ठी में रखा है l खामेनी ने अनेक सार्वजनिक उद्योगों
का निजीकरण किया l उन्होंने अण्वस्त्र के विरोध में फतवा जारी किया l स्त्रियों द्वारा वाहन चलाना ‘हराम’,
‘ इस्लाम विरोधी माना l प्रसार माध्यम पर उन्होंने निर्बंध लगाए l सभी प्रकार का संगीत उन्होंने
इस्लाम विरोधी ठहराया l यह सब करनेवाले खामेनी ने वंध्यत्व के बारे में अन्य व्यक्ति के शुक्राणु, बीजांड
तथा गर्भाशय का उपयोग कने के लिए अनुमति दी l इतनाही नहीं अपितु स्टेमसेल इस्लाम को स्वीकृत है,

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ऐसा कहा l लेकिन उन्होंने अपना व्यक्तिमहात्म्य देवत्व की ओर ले गए, श्रद्धालुओं की फ़ौज निर्माण की,
विरोधकों का निष्ठुरता से कत्लेआम किया l सादगी के नाम पर व्यक्तिगत संपत्ति की राशी निर्माण की l
लेकिन यह हस्ति वैश्विक वाडमय की अभ्यासक हैंl काव्यप्रेमी है l दूसरी ओर मानव अधिकार,
व्यक्तिस्वातंत्र्य, अभिव्यक्ति इन सभी को अपने पाँवतले कुचलने वाले हैं l जनतंत्र के आधार पर धार्मिक
लश्करशाही जारी करनेवाले हैं l मसीह अलीनेजाद नामक अमेरिका स्थित महिला पत्रकार ने इस राजनीति
के विरुध्द अपनी तोप दाग दी l अतः उसके इराणस्थित परिवार को राजकीय जुल्म का सामना करना
पड़ा l २०१४ में उन्होंने ‘मायस्टील्थी फ्रीडम’ –‘चोर की क़दमों से प्राप्त मेरा स्वातंत्र्य’ नामक फेसबुक पेज
शुरू किया l इस पेज पर उन्होंने इराणी महिलाओं को बिना हिजाब के फोटो भेजने का आवाहन किया l इसे
भरसक समर्थन मिला l इराण की महिलाओं में खदखदानेवाले असंतोष को दिशा प्राप्त हुई l इराणी
महिलाओं के बंदीघर पर २०१८ में उन्होंने ‘द विंड इन माय हेअर’ नामक किताब लिखी l
महसा अमिनी की मृत्यु से अनपेक्षित तौर पर इराण की इस्लामी राजनीति को फौलादी
चाहरदीवारी को बहुत बड़ा छेद पड गया l आंदोलन के इस दावानल की क्रांति क्या ज्वालामुखी में
परिवर्तित होगी यह तो वक्त ही बताएगा l लेकिन लोकशाही एवं स्वातंत्र्य पर जो प्रेम करते हैं उन्होंने इस
आंदोलन का जरुर समर्थन करना चाहिए l यह आंदोलन अन्य कट्टर इस्लामी देशों में फ़ैल जाएगा या नहीं
इसका उत्तर अब देना अभी असंभव है l लेकिन इराण की ज्यादातर घटनाएँ हमारे देश को सचेत करनेवाली
हैं l हमारे देश के अनेक प्रदेशों में एवं समाज में ‘पदर, घुंघट,’ ‘परदा’ जैसे अनेक नाम से हिंदू तथा जैन
समाज में एक प्रकार का हिजाब आज भी अस्तित्व में है l १९७९ में इराण में जो हुआ वह आज हमारे देश
में हो रहा है lअनधिकृत ऐसी नैतिकता एवं धर्म रक्षकों की सेना महिलाओं ने क्या पहनना चाहिए यह तय
करने का प्रयास कर रहे हैं l नैतिकता केवल स्त्री के कारण संकट में आती है ऐसा आमतौर पर सभी धर्म
मानते आ रहे हैं l बलात्कारी पुरषों के कारण नैतिकता एवं धर्म संकट में आता है ऐसा धर्म के रक्षक मानते
नहीं l अतः धर्म एवं नैतिकता की रक्षा करनी हो तो स्त्री को छुपाकर बंदिवान बनाना यही ज्यादातर धर्म
अपना कर्तव्य माना l स्त्री परुष की दासी, गुलाम, वेठबिगार, भोग का साधन तथा पुनरुत्पादन का यंत्र
माना गया l लैंगिक सुख भी अनेक धर्मों ने पाप माना, स्त्री का मुक्त संचार पुरुषप्रधान संस्कृति को संकट
लगा l पाश्चात्य संस्कृति में यह सब चलता है अतः पौर्वात्य संस्कृति की सभ्यता एवं नैतिकता की कल्पनाओं
को वह संकट के रूप में महसूस होने लगा l इसमें से पौर्वात्य संस्कृति की नैतिकता की भ्रामक, पाखंडी एवं
दोहरा मानदंड ने जन्म लिया l इसमें धर्माभिमान मिलाया गया और धर्म ने राजसत्ता पर कब्ज़ा करने से इन
मानदंडों में समाज को जखड डाला l
भारत ने इराण की दिशा की ओर जाना चाहिए या नहीं इस पर सोचने का समय गवाया नहीं हैंl

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