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‘No Rules Rules’इसके जरिए पहली बार नेटफ्लिक्स की पॉलिसी से दुनिया रूबरू हुई

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संजय खाती

सन 2000 में Reed Hastings और Mark Randolf ने ब्लॉकबस्टर के शानदार ऑफिस में कदम रखा। ब्लॉकबस्टर अमेरिका की सबसे बड़ी होम एंटरटेनमेंट कंपनी थी। उनका मकसद अपनी कंपनी नेटफ्लिक्स का सौदा करना था, जो दर्शकों को किराए पर डाक से DVD मुहैया कराती थी। लेकिन 5 करोड़ डॉलर में ब्लॉकबस्टर उसे खरीदने को राजी नहीं हुई।

उस वक्त मार्केट पर ब्लॉकबस्टर का राज चलता था और नेटफ्लिक्स उसके सामने बस पिद्दी थी। लेकिन फिर दुनिया तेजी से बदली। सन 2010 में ब्लॉकबस्टर दिवालिया हो गई, जबकि नेटफ्लिक्स आज डिज्नी के बाद दुनिया की सबसे बड़ी एंटरटेनमेंट कंपनी बन चुकी है। इस किस्से के साथ ‘No Rules Rules’ (प्रकाशक: पेंगुइन प्रेस) शुरू होती है, जिसे नेटफ्लिक्स के फाउंडर रीड ने बिजनेस प्रोफेसर आइरीन मेयर के साथ मिलकर लिखा है। एक दशक से भी पहले रीड ने 127 स्लाइड्स का एक प्रजेंटेशन अपनी टीम के लिए तैयार किया था, जो लीक हो गया और करोड़ों लोगों ने उसे इन बरसों में पढ़ा। इसके जरिए पहली बार नेटफ्लिक्स की पॉलिसी से दुनिया रूबरू हुई। इसे हैरत, तारीफ और कई बार आलोचना के साथ देखा गया।अलबत्ता जिस हिसाब से कंपनी ने तरक्की की है, जिस तरह तमाम रेकॉर्ड तोड़ते हुए वह कस्टमर्स, इन्वेस्टर्स और प्रफेशनल्स की पसंदीदा कंपनी बनी है, उसे देखते हुए मानना ही पड़ेगा कि वहां कोई चमत्कार तो हो रहा है। खुद रीड भी इसी तर्क के साथ अपनी पॉलिसी समझा रहे हैं। लेकिन यह किताब सिर्फ उस प्रजेंटेशन का विस्तार नहीं है, यह जबरदस्त मसालों और कहानियों के साथ उस बेसिक फॉर्म्यूले को समझाने की बेहद दिलचस्प पहल है।

तो आपने देखा, ब्लॉकबस्टर दिवालिया हो गई और नेटफ्लिक्स छा गई। हम नोकिया और कोडक को भी ऐसे ही खत्म होते देख चुके हैं। ऐसा क्यों होता है? रीड का कहना है कि ये कंपनियां इतनी स्मार्ट नहीं थीं कि भविष्य देख सकें या खुद को उसके लिए समय रहते तैयार कर सकें। यह काबिलियत कैसे आए, इसके लिए नेटफ्लिक्स ने जो फॉर्म्यूला निकाला है, वह स्टेप बाय स्टेप इस तरह काम करता है;

1. टैलेंट डेंसिटी यानी बेहतरीन लोगों का जुटान। उनके बीच साफगोई की आदत डालें। वे एक-दूसरे को बेहिचक फीडबैक दें। उसके बाद वेकेशन, ट्रैवेल और खर्च की पॉलिसियां हटा दी जाएं।

2. टैलंट डेंसिटी को और बढ़ाया जाए। मार्केट में जो बेस्ट सैलरी है वह दी जाए। साफगोई और बढ़ाई जाए। अब फैसलों पर अप्रूवल लेने की पॉलिसी भी हटा दी जाए।

3. टैलंट डेंसिटी और साफगोई को अधिकतम स्तर तक ले जाएं। बचे हुए नियम भी खत्म कर दिए जाएं।

ये तीन कदम किस तरह उठाए जाते हैं, इस दौरान क्या अनुभव नेटफ्लिक्स में सामने आए और आखिरकार कैसे इन्हें पूरा किया गया, इसे यह किताब सिलसिलेवार एक गाइड या मैनुअल की तरह समझाती है। आपको छुट्टी पर जाना है तो बस इतना करना है कि अपने मैनेजर से मशवरा कर लें कि किस दौरान ऑफिस में आपकी जरूरत नहीं रहेगी। किस काम के लिए कब कहां सफर करना है, यह आप ही तय करें। कंपनी का पैसा कहां कितना खर्च करना है, यह भी आप ही को सोचना है। कोई अप्रूविंग अथॉरिटी नहीं होगी।

दूसरे कदम में आजादी की डोज और भी नशीली हो जाती है। आप कभी भी रिक्रूटमेंट एजेंट से मिलकर अपनी मार्केट वैल्यू पता कर सकते हैं, नेटफ्लिक्स आपको वही सैलरी दे देगा। आइडिया एकदम साफ है। जब कोई और उसकी काबिलियत के लिए एक्स्ट्रा पेमेंट करने को तैयार है, तो नेटफ्लिक्स क्यों नहीं उसे उसका हक दे दे? इसकी जड़ में दो बाते हैं- टैलंट डेंसिटी और साफगोई। जब अपने फील्ड के बेहतरीन लोग इकट्ठा हो जाएं तो जाहिर है उनसे बेहतरीन समझदारी की उम्मीद की जा सकती है।

फिर यह साफगोई और फीडबैक का कल्चर इतना बेदर्द है नेटफ्लिक्स में कि बड़े से बड़े सूरमा को अपनी कमजोरियां छुपाने का मौका नहीं मिलता। आपने जरा भी गड़बड़ी की, गलत बर्ताव किया, कोई आपको पब्लिक में सुना देगा।

आपने देखा, टैलंट डेंसिटी को लगातार बढ़ाया जाना है और यह काम बेरहमी से होता है। जो लोग टॉप लेवल के नहीं लगते, उन्हें बाहर का रास्ता दिखाने में देर नहीं की जाती। लेकिन इसी वजह से नेटफ्लिक्स मॉडल की जबरदस्त आलोचना भी हुई। कहा गया कि इसमें इंसानी भावनाओं के लिए कोई जगह नहीं है। यह निहायत बेरहम किस्म का कॉरपोरेट कल्चर है, जहां जरा सी चूक पर सीधे लात पड़ती है। जाहिर है, यह बहस काफी पहले ही हो चुकी है और किताब में इनका जवाब दिया गया है। जैसा मैंने कहा, इन आलोचनाओं को नेटफ्लिक्स की कामयाबी बेअसर कर चुकी है। अब सवाल बचा है तो यही कि क्या यह मॉडल आगे भी टिका रहेगा?

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