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सोशल मीडिया के युग में बढ़े ठग शेयर सलाहकार

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 उमेश्वर कुमार

शेयर बाजार में तूफानी तेजी है, जिसका कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में मजबूती को बताया जा रहा है। GDP की रफ्तार 8% के दायरे में है। देशी-विदेशी रेटिंग एजेंसियां सिरे से इसकी तस्दीक कर रही हैं। रिजर्व बैंक का भी आकलन इसी के अनुरूप है। ऐसे में बड़ी कंपनियों के साथ छोटी कंपनियों के शेयर भी तेजी की लहर पर सवार हैं।

बेतहाशा रिटर्न का दावा : आजकल सोशल मीडिया पर कथित सलाहकारों की फौज खड़ी हो गई है। गजब के दावे हैं इनके, कोई दैनिक आधार पर 20% की रिटर्न का सब्जबाग दिखा रहा है, तो कई 60% मासिक कमाई की एक तरह से गारंटी दे रहे हैं। फेसबुक, वट्सऐप और टेलीग्राम पर इस तरह के ग्रुप्स की बाढ़ आ गई है। इनमें से कुछ के नंबर तो देश के हैं, लेकिन अधिकांश विदेश के।

निवेशकों को फंसाने वालों की एक कैटिगरी ऐसी है, जो सलाह के नाम पर ठगी के लिए उतरी है। ये पहले निवेशकों को लुभाकर शुरुआती सौदों में उन्हें फायदा भी कराते हैं। जब निवेशक उन पर भरोसा करने लगता है, तब वे अपने ट्रेडिंग प्लैटफॉर्म से उन्हें निवेश कराते हैं और फिर उनकी रकम लेकर गायब हो जाते हैं।

दूसरी कैटिगरी है अपने सदस्यों की संख्या बढ़ाकर शेयर के दाम को कृत्रिम तरीके से बढ़ाने वालों की। भारतीय शेयर बाजार में ‘ऑपरेटरों’ का यह खेल बरसों से चलता आया है। शायद कुछ लोगों को याद हो कि हर्षद मेहता के समय में एक कंपनी होती थी सिल्वरलाइन। 5-7 रुपये के इसके शेयर को 1300 रुपये के पार ले जाया गया, बाद में तीन रुपये में भी इसका कोई लेनदार नहीं था। अब तो कंपनी का नामोनिशान तक मिट गया है। इस तरह का खेल सैकड़ों कंपनियों के साथ हुआ।

कैसे होता था यह खेल? इसमें कंपनी एक छोटे ब्रोकर समूह को शेयर का भाव बढ़ाने का ठेका देती थी। इनकी बाजार के इन्फ्लुएंसर्स से मिलीभगत होती थी। तब सोशल मीडिया का जमाना नहीं था। जिस कंपनी के शेयर में खेल करना होता था उसके शेयर समूह से जुड़े लोग कम भाव पर पहले ही भारी मात्रा में खरीद लेते थे। फिर कंपनी से जुड़ी कुछ अच्छी खबरें बाजार में फैलाई जातीं। आम निवेशक अक्सर इस झांसे में आकर इनके शेयर खरीद लेते थे। जब दाम काफी ऊपर चला जाता तब समूह के शातिर अपने शेयर बेचकर निकल जाते और छोटे निवेशक इस जाल में फंसकर अपनी रकम गंवा बैठते।

ऐसा खेल तब ज्यादा होता था, जब बाजार में तेजी हो। ऐसे शेयरों की एक और पहचान यह है कि जब ये चलाए जाते हैं, तब इन पर लगातार कई दिनों तक अपर सर्किट लगता रहता है। जिस दिन सर्किट खुलता है, तब रिटेल निवेशक इनमें निवेश करते हैं। फिर कुछ और चढ़ने के बाद ऑपरेटर उनमें मुनाफावसूली करने लगते हैं। उस वक्त शेयर में लोअर सर्किट का सिलसिला शुरू होता है। इसलिए समय की कसौटी पर खरे उतरे अच्छी और मजबूत कंपनियों में ही निवेश करना चाहिए। बाजार में फंसने का मूल कारण लालच है और नटवरलाल ने भी कहा था कि जब तक लोगों में लालच है ठग भूखे नहीं मरेंगे।

आज बाजार तेजी में है और ठगों के पास सोशल मीडिया जैसा शानदार मीडियम है। इनमें अधिकांश तो छुटभैये हैं, लेकिन कुछ बड़े नाम भी हैं, जिनके सदस्यों की संख्या मिलियन में है। सोचिए इनके लिए किसी शेयर के दाम में तेजी लाना कितना आसान है। एक तरह से वैसा ही खेल चल रहा है, जैसा कि सोशल मीडिया के आने से पहले चला करता था।

अब सवाल है कि आम निवेशक को क्या करना चाहिए:

इस आलेख का मकसद आपको शेयर बाजार से डराना नहीं है बल्कि सावधान करना है। जोखिम कहां नहीं है, कमाई करनी है तो जोखिम तो उठाना ही पड़ेगा लेकिन जोखिम को जानकर और समझदारी के साथ, ठगों के जाल में फंसे बगैर उठाएं।

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