Site icon अग्नि आलोक

समय चिंतन : भूत नहीं, भविष्य दिखाइए

Share

पुष्पा गुप्ता (शिक्षिका)

   _एक मित्र बताते हैं : मैं जब छोटा था तब मुझे स्कूल से दो फिल्में देखने की अनुमति मिली थी।  जागृति और काबुलीवाला। तीसरी फिल्म पिताजी ने मुझे दिखलाई थी, ‘दोस्त’।_
      तीनों फिल्मों की कहानी मुझे आज भी जस की तस याद हैं। काबुलीवाला देखते हुए मुझे उस पठान की बहुत दिनों तक याद आती रही, जो मिनी के लिए पिस्ता और बादाम लाता था। जैसे मिनी सपने में काबुलीवाले को याद करती थी, मैं भी बहुत दिनों तक काबुलीवाले को याद करता था।
      _सच कहूं तो आज भी मुझे जब कभी मौका मिलता है, मैं इन फिल्मों को देखने की कोशिश करता हूं। फिल्में दिल और दिमाग में समा जाती हैं, बरसों-बरस के लिए।_
   स्कूल में पढ़ता था तब ‘जूली’ फिल्म आई थी। बच्चे स्कूल में गाना गाते थे, “ना कुछ तेरे बस में जूली, ना कुछ मेरे बस में…।”

मैंने पिताजी से कहा था कि जूली फिल्म देखनी है। पिताजी ने कहा था अगले हफ्ते दिखलाऊंगा। पिताजी एक दिन समय निकाल कर पहले खुद फिल्म देख कर आए थे। फिर वो मुझे दूसरे सिनेमा हॉल में लगी फिल्म ‘दोस्त’ दिखलाने ले गए थे। भोलू संजय सिन्हा को लगा कि उन्होंने जूली देख ली है। मैंने पिताजी से पूछा भी था कि इसमें वो वाला गाना तो आया ही नहीं, “जूली आई लव यू…।”
पिताजी ने कहा कि शायद कट गया होगा।
मैं चैन से था। धर्मेंद्र, शत्रुघ्न सिन्हा वाली ‘जूली’ मैं देख आया हूं। बहुत दिनों बाद पता चला कि पिताजी ने मुझे ‘जूली’ दिखलाई ही नहीं। क्यों?पिताजी मानते थे कि बहुत सी बातें होती हैं। सच भी हो सकती हैं। पर कोई ज़रूरी नहीं कि हम उन्हें देखें। समय आने पर सभी को सब सच मालूम होता ही है, पर हमारे लिए ये दुनिया बनाई कुछ इस तरह गई है कि हम अच्छा देखें, अच्छा सोचें।
महेश भट्ट ने जब गरीब महिला को हैंडपंप पर नहाते हुए दिखलाया तो कुछ कुत्सित मन वाले भले नहाती हुई महिला को देखने हॉल तक पहुंच जाते रहे हों, पर हकीकत यही है कि उसे दिखलाने की ज़रूरत नहीं होती है।

आप अपने ही शरीर को देखिए। ईश्वर ने किस कदर भीतर की सारी गंदगी को ढक कर पेश किया उसे आपके सामने। गंदगी क्यों देखनी? किसके दिमाग में उस गंदगी को भरना है?
तब मैं बिहार के छोटे से शहर आरा में था- एक दिन पता चला कि स्टेशन के बाहर चाय की दुकान में आग लग गई है। अपने दोस्तों के साथ साइकिल उठा कर मैं उस हादसे को देखने पहुंच गया था। बताते हुए मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं कि चार शव बुरी तरह जले हुए पड़े थे। मैं सिहर उठा था। मैं भाग कर घर चला आया। फिर कई रात मुझे नींद में वो शव दिखते थे। कई दिनों तक मुझसे ठीक से खाना नहीं खाया जाता था।
मैं अमेरिका में था। 11 सितंबर 2001 की उस सुबह मैं वहीं था, जब ट्वीन टावर में दो विमान घुस गए थे। हज़ारों लोग जल गए थे। आपने प्लेन को इमारत में घुसते हुए देखा होगा, पर क्या आपने एक भी लाश देखी?

किसी भी सभ्य समाज में लाशों का प्रदर्शन नहीं किया जाता है।
संसार सच जानता है। बहुत से सच पर्देदारी के हकदार होते हैं। दुनिया में लाखों बुराइयां हैं, लाखों अच्छाइयां। फैसला आपको करना है कि आप क्या देखना चाहते हैं? रीयल के नाम पर रील में भी जो बुराई आप दिखलाते हैं, याद रखिएगा, आपके संजू के मन में उसका असर बरसों-बरस तक रह जाएगा।
अगर आप चाहते हैं कि आपके इस संसार से चले जाने के बाद आपका संजू भी नफरत और हिंसा की आग में जलता रहे तो यकीनन आपको उनके सामने वो सब परोसना चाहिए। पर ध्यान रहे- आप कम समय के लिए इस दुनिया में हैं। आप अपने जाने के बाद अपने संजुओं की ज़िंदगी में ज़हर घोल कर जाने वाले हैं, अगर आप उन्हें सिर्फ नफरत की कहानियां ही सुनाने चाहते हैं तो।

फैसला आपका। मर्जी आपकी। कैमरा आपके हाथ में है, सिनेमा हॉल आपका है।
बहुत से सच सच होकर भी सच नहीं होते। और जो सच भी होते हैं तो कुछ समय बाद उस इतिहास की ज़रूरत नहीं होती। मेरा अनुरोध मानिए, अपने संजुओं को भविष्य दिखलाइए। भूत नहीं।
(चेतना विकास मिशन)

Exit mobile version