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*समय चिंतन : कृष्णजन्म और हमारे जन्म का अंतर्सम्बंध*

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पूर्व- कथन :*_ 

    प्राचीन आख्यानों/कथानकों के गहरे अर्थ होते हैं। वे रहस्यमय होते हैं। उनके निहितार्थ को, उनके मर्म को न समझकर हम उन्हें स्थूल रूप से लेते हैं और लकीर के फ़क़ीर बन जाते हैं।   

     _प्रतीकों को ही सच स्वीकार कर हम दिन-विशेष को उनकी ढपली बजा लेते हैं : परम्परा निर्वाह के नाम पर। हमारा जन्माष्टमी मनाना भी जड़ता का अपवाद नही है।_

       _ये पोस्ट हम अग्रिम तौर पर इसलिए दे रहे हैं कि सत्यानुभूति के लिए उक्त परंपरा के विरुद्ध चेतनता की अभिनव परम्परा सृजित की जाये।_

       हमारी मैनेजिंग टीम तमाम ऐप्स, साइट्स के ज़रिए चेतना मिशन की पोस्ट बीसियों लाख जनों तक पहुंचाती है। आपका भी योगदान इस पहलू पर मिलता है। यानी आप भी पोस्ट शेयर करते हैं। 

        _इस तरह अनगिनत लोगों तक हम पहुंचते हैं। हर पोस्ट में “व्हाट्सऐप संपर्क सूत्र के रूप में” मोबाइल नम्बर 9997741245 जारी किया जाता है। नियमानुसार व्हाट्सप्प पर परिचय देकर, समय लेने के बाद कॉल करना होता है. लेकिन जड़ता-घामड़ता ग्रसित कूपमंडूप नहीं समझते._

     विवशतावश ये नम्बर हमेशा आँन नहीं रखा जाता. क्योंकि ऑन करते ही नॉन-स्टॉप कॉल्स आती रहती हैं : हमें एक ही दिन में पागलखाने में एडमिड हो जाना पड़ेगा। 

     _एडवांस्ड में इस पोस्ट को देने की अर्थवत्ता यही है कि आपको जन्माष्टमी का मर्म स्वीकार करने और इसको प्रसारित करने का समय मिल जाए।_

               * डॉ. विकास मानव*


         जन्म की रहस्यपूर्ण प्रक्रिया अँधेरे में ही संभव

 _कृष्ण का जन्म होता है अँधेरी रात में, अमावस में और हमारा भी। असल में जगत की कोई भी चीज उजाले में नहीं जन्मती, सब कुछ जन्म अँधेरे में ही होता है। एक बीज भी फूटता है तो जमीन के अँधेरे में जन्मता है। फूल खिलते हैं प्रकाश में, जन्म अँधेरे में होता है।_ 

      गर्म से तुम्हारे ज़िस्म का बाहर आना जन्म नहीं है। उसके पहले क्या तुम जी नहीं रहे थे? गर्भ के घुप्प अंधेरे में तुम्हारा जन्म हो चुका था– कब का।

  ●आपके भीतर भी जिन चीजों का जन्म होता है, वे सब गहरे अंधकार में, गहन अंधकार में होती है  *:*

  ●एक कविता जन्मती है, तो मन के बहुत अचेतन अंधकार में जन्मती है। बहुत अनकांशस डार्कनेस में पैदा होती है। 

  ●एक चित्र का जन्म होता है, तो मन की बहुत अतल गहराइयों में जहाँ कोई रोशनी नहीं पहुँचती जगत की, वहाँ होता है।

    ●समाधि का जन्म होता है, ध्यान का जन्म होता है, तो सब गहन अंधकार में। गहन अंधकार से अर्थ है, जहाँ बुद्धि का प्रकाश जरा भी नहीं पहुँचता। जहाँ सोच-समझ में कुछ भी नहीं आता, हाथ को हाथ नहीं सूझता है।

  ●तृप्ति अथवा परमानंद की अनुभूति होती है तो वो भी गहन अंधकार में होती हैं। प्रकाश से हमारा जीवन तो अनुभूति के बाद भरता है।

*कृष्ण जन्म से जुड़ी दूसरी बात :*

उनका बंधन में जन्म होता है, कारागृह में। किसका जन्म है जो बंधन और कारागृह में नहीं होता है? 

_हम सभी कारागृह में जन्मते हैं। हो सकता है कि मरते वक्त तक हम कारागृह से मुक्त हो जाएँ, जरूरी नहीं है हो सकता है कि हम मरें भी कारागृह में। जन्म एक बंधन में लाता है, सीमा में लाता है। शरीर में आना ही बड़े बंधन में आ जाना है, बड़े कारागृह में आ जाना है। जब भी कोई आत्मा जन्म लेती है तो कारागृह में ही जन्म लेती है।_

*जन्माष्टमी के रहस्य को नहीं समझा गया :*

इस बहुत काव्यात्मक बात को ऐतिहासिक घटना समझकर बड़ी भूल हो गई।

 _सभी जन्म कारागृह में होते हैं। सभी मृत्युएँ कारागृह में नहीं होती हैं। कुछ मृत्युएँ मुक्ति में होती है। कुछ अधिक कारागृह में होती हैं। जन्म तो बंधन में होगा, मरते क्षण तक अगर हम बंधन से छूट जाएँ, टूट जाएँ सारे कारागृह, तो जीवन की यात्रा सफल हो गई।_

*कृष्ण जन्म से जुड़ी तीसरी बात :*

  जन्म के साथ ही उन्हें मारे जाने की धमकी है। किसको नहीं है? 

_जन्म के साथ ही मरने की घटना संभावी हो जाती है। जन्म के बाद–एक पल बाद भी मृत्यु घटित हो सकती है। जन्म के बाद प्रतिपल मृत्यु संभावी है। किसी भी क्षण मौत घट सकती है। मौत के लिए एक ही शर्त जरूरी है, वह जन्म है। और कोई शर्त जरूरी नहीं है। जन्म के बाद एक पल जीया हुआ बालक भी मरने के लिए उतना ही योग्य हो जाता है, जितना सत्तर साल जीया हुआ आदमी होता है। मरने के लिए और कोई योग्यता नहीं चाहिए, जन्म भर चाहिए।_

*कृष्ण जन्म से जुड़ी चौथी बात :*

   मरने की बहुत तरह की घटनाएँ आती हैं, लेकिन वे सबसे बचकर निकल जाते हैं। 

   जो भी उन्हें मारने आता है, वही मर जाता है। कहें कि मौत ही उनके लिए मर जाती है। मौत सब उपाय करती है और बेकार हो जाती है।

 कृष्ण ऐसी जिंदगी हैं, जिस दरवाजे पर मौत बहुत रूपों में आती है और हारकर लौट जाती है।

   हमें भी पता है कि कितने रूपों में मौत घेरती है और हार जाती है। सत्य को गहरे में समझने की कोशिश करें।

    _सत्य यह कि कृष्ण जीवन की तरफ रोज जीतते चले जाते हैं और मौत रोज हारती चली जाती है। हम ऐसा नहीं करते। हम तो खुद को जीते ही नही। जीना तो छोडो, अपने अंतस की सुनते तक नहीं। सो हर पल मरते रहते हैं।_

जितना पुरानी दुनिया में हम वापस लौटेंगे, उतना ही चिंतन का जो ढंग है, वह पिक्चोरियल होता है, चित्रात्मक होता है, शब्दात्मक नहीं होता। 

अभी भी रात आप सपना देखते हैं, कभी आपने खयाल किया कि सपनों में शब्दों का उपयोग करते हैं कि चित्रों का?

    सपने में शब्दों का उपयोग नहीं होता, चित्रों का उपयोग होता है। क्योंकि~

 _सपने हमारे आदिम भाषा हैं, प्रिमिटिव लैंग्वेज हैं। सपने के मामले में हममें और आज से दस हजार साल पहले के आदमी में कोई फर्क नहीं पड़ा है। सपने अभी भी पुराने हैं, प्रिमिटिव हैं, अभी भी सपना आधुनिक नहीं हो पाया।_

*कृष्ण शब्द को भी थोड़ा समझें :*

   _कृष्ण शब्द का अर्थ होता है, केंद्र। कृष्ण शब्द का अर्थ होता है, जो आकृष्ट करे, जो आकर्षित करे; सेंटर ऑफ ग्रेविटेशन, कशिश का केंद्र। कृष्ण शब्द का अर्थ होता है जिस पर सारी चीजें खिंचती हों। जो केंद्रीय चुंबक का काम करे।_

     प्रत्येक व्यक्ति का जन्म एक अर्थ में कृष्ण का जन्म है, क्योंकि हमारे भीतर जो आत्मा है, वह कशिश का केंद्र है।

 वह सेंटर ऑफ ग्रेविटेशन है जिस पर सब चीजें खिँचती हैं और आकृष्ट होती हैं।

       शरीर खिँचकर उसके आसपास निर्मित होता है, परिवार खिँचकर उसके आसपास निर्मित होता है, समाज खिँचकर उसके आसपास निर्मित होता है, जगत खिँचकर उसके आसपास निर्मित होता है।

    _वह जो हमारे भीतर कृष्ण का केंद्र है, आकर्षण का जो गहरा बिंदु है, उसके आसपास सब घटित होता है। तो जब भी कोई व्यक्ति जन्मता है, तो एक अर्थ में कृष्ण ही जन्मता है वह जो बिंदु है आत्मा का, आकर्षण का, वह जन्मता है, और उसके बाद सब चीजें उसके आसपास निर्मित होनी शुरू होती हैं।_

   उस कृष्ण बिंदु के आसपास क्रिस्टलाइजेशन शुरू होता है और व्यक्तित्व निर्मित होता है। 

इसलिए~

    _कृष्ण का जन्म एक व्यक्ति विशेष का जन्म मात्र नहीं है, बल्कि व्यक्ति मात्र का जन्म है।_     

    कृष्ण जैसे व्यक्ति व्यक्ति रह ही नहीं जाते। वे हमारे मानस के, हमारे चित्त के, हमारे कलेक्टिव माइंड के प्रतीक हो जाते हैं। हमारे चित्त ने जितने भी जन्म देखे हैं, वे सब उनमें समाहित हो जाते हैं। बस जागने और कृष्णत्व को जीकर तृप्त/मुक्त होने की जरूरत होती है।

    {चेतना विकास मिशन}

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