नीलम ज्योति
वासना समय की मांग कैसे बनती है, और समय की मांग पुनर्जन्म कैसे बन जाता है, और पुनर्जन्म दुख का घर क्यों है?
दिनभर आप बहुत कुछ करते हैं; सांझ होते-होते सब कुछ अधूरा ही होता है; कभी पूरा नहीं होता।
अगर कोई आपसे इसी समय पूछे कि मरने को तैयार हो? कोई काम करने की जरूरत तो नहीं है? तो आप कहेंगे, थोड़ा रुको। बहुत से काम अधूरे हैं, जरा पूरे कर लूं।
शायद ही वह आदमी मिले, जो कहे कि सब पूरा है, मैं मरने को तैयार हूं। सब काम पूरा है, मैं मरने को तैयार हूं।
सवालों का अंत नहीं है। कामों का अंत नहीं है। समय चुक जाता है, वासना तो नहीं चुकती। समय तो चुक ही जाता है, कामना नहीं चुकती है। समय छोटा पड़ जाता है, कामना अनंत है।
काम बाकी रह जाते हैं, कुछ न कुछ बाकी रह जाता है। मन कहता है, बस इसे पूरा कर लो। लेकिन उसे पूरा करने में हम दस नई और वासनाएं पैदा कर लेते हैं।
वे अधूरी रह जाती हैं। इस अधूरेपन की कोई सीमा नहीं आती। तो फिर अगले जन्म की मांग जरूरी हो जाती है।
मरते क्षण में भी जो अधूरा रह जाता है, उसी के कारण हमें दूसरे जन्म को स्वीकार करना पड़ता है। मरते क्षण में जो पूरा करके मर सकता है, उसका अगला जन्म नहीं होगा। क्योंकि उसे मांग ही नहीं रह जाएगी।
जन्म का करिएगा क्या? उसका कोई उपयोग नहीं है। समय की मांग बंद हो जाए, तो अगला जन्म नहीं होता। लेकिन समय की मांग तो बनी रहती है।
बहुत अजीब लोग हैं हम। एक तरफ कहते हैं कि समय बहुत कम है, और दूसरी तरफ कहते रहते हैं दिन-रात कि समय काटे नहीं कटता! एक तरफ कहते हैं कि समय बहुत थोड़ा है हाथ में, और दूसरी तरफ निरंतर रोते रहते हैं कि समय कैसे काटें? जरूर कुछ कारण होगा इस दुविधा का।
दुविधा का कारण है। समय तो निश्चित कम है, क्योंकि वासनाएं बहुत हैं। और सब चीजें तुलनात्मक होती हैं।
जब हम कहते हैं कि समय कम है, तो उसका मतलब है किससे? वासनाओं से। जिसकी वासनाएं नहीं हैं, उसके पास तो समय बहुत है, उसका कोई अंत नहीं। और जिसके पास वासनाएं बहुत हैं, समय बहुत छोटा है।
फिर भी वासनाओं वाला आदमी भी कहता है, समय काटे नहीं कटता, क्योंकि वासनाओं को पूरा करते-करते भी वह पाता है कि वासनाएं पूरी नहीं होतीं। वासनाएं पूरी नहीं होतीं। सब तरह कोशिश कर लेता है और कोई वासना पूरी होती नहीं दिखाई पड़ती।
तब वह समय को भुलाने की कोशिश करता है। उसी को वह समय नहीं कटता कहता है। इतने मनोरंजन के साधन खोजने पड़ते हैं समय को भुलाने के लिए।
इधर वासना है, वह समय को चुका देती है। थोड़ा-बहुत समय बचता है, तो वासना से थका हुआ मन उसको भुलाने के लिए सिनेमागृह में बैठता है, चायघर में बैठता है, काफी हाउस में बैठता है, ताश खेलता है–हजार उपाय करता है।
समय को हम इस भांति नष्ट करते हैं, और मरते वक्त फिर वही मांग कि हमें फिर समय चाहिए।
अनंत है परमात्मा का विस्तार। हम जितना मांगते हैं, हमें मिलता चला जाता है। और हर जीवन में हम वही पुनरुक्त करते हैं, जो हमने पीछे किया था।