आमतौर सराफा बाजार को सोने-चांदी के व्यवसाय का केंद्र माना जाता है, लेकिन इंदौर का सराफा बाजार खानपान के लिए भी देश भर में अपनी अलग पहचान रखता है। हर कोई इंदौर की सराफा चाट चौपाटी पर आकर स्वाद चखना चाहता है। यहां सोना-चांदी की तो सैकड़ों दुकानें हैं ही, मिठाई और रात लगने वाली में चाट-चौपाटी भी हजारों लोगों को रोज लुभाती है। इंदौर का सराफा बाजार 300 वर्षों से ज्यादा पुराना है। यहां 1784 में दिनदहाड़े डकैती की बड़ी वारदात भी हो चुकी है, जिसकी अब कल्पना ही मुश्किल है।1818 में इंदौर के होलकर रियासत की राजधानी बनने से पहले से ही यहां सोने-चांदी का व्यवसाय होता था और सराफा बाजार कायम था। सराफा दो नामों से जाना जाता है एक छोटा सराफा और दूसरा बड़ा सराफा।
1818 में इंदौर के होलकर रियासत की राजधानी बनने से पहले से ही यहां सोने-चांदी का व्यवसाय होता था और सराफा बाजार कायम था। सराफा दो नामों से जाना जाता है एक छोटा सराफा और दूसरा बड़ा सराफा। बड़ा सराफा में राजस्थान से आए मारवाड़ी व्यापारियों की दुकानें थीं, ये नगर के बड़े कारोबारी थे, इसलिए इस स्थान को बड़ा सराफा कहा जाने लगा था। छोटे सराफे में सोने-चांदी के गहनों के व्यापार के छोटे रिटेल व्यापारियों की दुकानें थीं।
1903 तक छोटे सराफे में थी टकसाल
छोटे सराफे में वर्तमान तौलकांटे वाले स्थान पर टकसाल थी, जिसमे सिक्के ढाले जाते थे। 1903 तक यहां टकसाल रही। 1900 तक छोटे सराफे में करीब 25 से 30 के बी दुकानें थीं। बड़े सराफे में बुलियन (वायदा) व्यापार भी होता था, वैसे सराफा सट्टे के लिए भी पहचाना जाता है। सट्टा सोने-चांदी का और पानी पतरे का चलता था।
अब 3000 दुकानें, 10 हजार काम करने वाले
प्रदेश सराफा व्यापारी एसोसिएशन के उपाध्यक्ष और इंदौर सराफा व्यापारी एसोसिएशन कार्यकारणी के सदस्य निर्मल वर्मा के अनुसार इंदौर सराफा में छोटी-बड़ी मिलाकर करीब तीन हजार दुकान हैं और पांच से दस हजार कार्य करने वाले लोग है इनमें कारीगर भी शामिल हैं। सराफा, शक्कर बाजार, धानगली और बजाज खाना सराफा व्यापार के कार्य क्षेत्र हैं। अब नंदानगर क्षेत्र, महात्मा गांधी मार्ग और विजय नगर में मॉल के समीप भी आभूषणों का अच्छा कारोबार है, जो अपनी पहचान बना चुका है। एमजी रोड और विजय नगर क्षेत्र में देश के प्रसिद्ध ब्रांडों की स्वर्णाभुषण की दुकानें हैं।
डकैतों ने नौ लोगों की हत्या कर 2000 का माल लूटा था
आज के दौर में यह कल्पना से परे है कि सराफा जैसे अति व्यस्त बाजार में डकैती हो सकती है, लेकिन 12 जून 1784 को संध्या के समय सराफा में उसे समय की प्रसिद्ध फर्म त्रिलोकसी पदमसी पर डाकुओं ने डकैती डाली थी। डाकुओं ने नौ लोगों की हत्या कर दी थी और 12 व्यक्ति गंभीर रूप से घायल हो गए थे। डकैत इस दुकान से 2000 रुपये का माल लूट कर ले गए थे। नगर की घुड़सवार पुलिस ने डाकुओं का पीछा किया पर अंधेरा होने से डाकू भाग गए। आज के मान से दो हजार रुपये बहुत ही कम राशि है पर उस वक्त यदि सोने का पांच रुपये तोला मूल्य रहा होगा तो यह आज के मूल्य के अनुसार तीन करोड़ से अधिक मूल्य का है।
लगातार महंगा हो रहा सोना
इन दिनों सोने के भाव दिन प्रतिदिन तेजी का रुख किए हुए हैं। आजादी के वक्त 1947 में सोना 90 रुपये तोला था जो अब 80 हजार रुपये से अधिक होने को आतुर है। ऐसे में कम वजन के हलके आभूषणों की मांग है। चांदी के बढ़ते दामों ने भी कम वजन के गहनों की मांग बढ़ा दी है। कुछ दुकानदार को मासिक बचत कर गहनों की योजनाएं भी ग्राहकों को दे रहे हैं। नगर में अब क्षेत्र अनुसार स्वर्णकारों की दुकानें है, लेकिन यह सराफा बाजार सदियों से कायम है। फिर भी जनता सोना अपने विश्वास की दुकान से ही क्रय करती है। सराफा का कारोबार लगातार बढ़ता जा रहा है, इंदौर सराफा देश भर में प्रसिद्ध है।