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*आज का जीवनसत्य : प्यार,  पतन, प्रतिशोध और पलायन*

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         डॉ. विकास मानव 

_पहला सवाल :_

     प्रेमचंद, प्रसाद, शरतचन्द्र, गोर्की जैसे तमाम साहित्यकारों को पढ़ी थी। जिस बौद्धिक चेतना वाला साथी चाहिए था, नही मिला। 

    उम्र के 36 पड़ाव पार करने पर मिला तो परिवार को रास नही आया। उसको नही छोड़ी तो परिवार से वहिष्कृत कर दी गयी। 

वो मुझे साथ नही रखता। लगता है कई पत्नियां/रखैलें है उसकी।

    नौकरी करती हूं, किराए का मकान लेकर रहती हूँ। किसी अन्य पुरुष के बारे में सोचना भी पाप लगता है। 

क्या करूँ : वृंदावन जाकर कृष्ण की सन्त बन जाऊं, ब्रह्मकुमारी बनकर माउंट आबू चली जाऊं या उसको जहर देकर जेल में जिंदगी बिताऊं।

_दूसरा सवाल :_

      जिस नारी से प्यार किया उसने बताया था कि~ उसको जिंदगी में मा-बॉप, भाई-बहन तक, यानी किसी का भी प्यार नही मिला। अब भी वो समझौते के बोझ तले ही मर रही है।

 मैने उसको प्रेमिका, पत्नी ही नही भगवान तक स्वीकार कर अपनी आस्था, श्रद्धा, पूजा सेवा सब उसको अर्पित किया। यहां तक कहा कि, ”लाइफ सिक्योर करने को चाहे 5- 7 करोड़ एडवांस ले लो लेकिन साथ रहना स्वीकारो।”  लेकिन-

_उसने समझौते वालों को ही जीवन का हर पल दिया। मुझे वो माह में 2 पूरे दिन-रात भी न दे सकी : बार -बार के वादे के बाद भी। जबकि मेरे लिए,मेरी तरफ से सेक्स भी अपेक्षित नहीं था उससे।_

    उसके नाते मेरा कैरियर, मेरा सारा मैत्री सम्बन्ध तक छिन गया।  अब वो खुद को भी मुझसे छीन ली। सारा लगाव, अटेचमेंट वैगेरह खत्म कर ली। 

_जिनको समझौते का बोझ बताई थी उन्ही के साथ इतराने-इठलाने-डांस तक की मस्ती में मसगूल है।_

   क्या करूँ : उसको गोली मार दूँ या अपने रसूख- रुतवे का इस्तेमाल कर उसको लंबे समय के लिए जेल की जन्नत में पहुचा दूँ।

*_हमारी बात_*

      ऐसे हालात आज अमूमन सभी के जीवन मे आते हैं, जो शिद्दत से प्यार करते हैं। 

इसलिए वैयक्तिक जबाब न देकर हमने सब्जेक्ट पर यहां मुखर होना ठीक समझा।

_दरअसल आज रिस्ते समझौते के कारण ही निभ रहे हैं। ढोए जा रहे हैं, यानी उनमें प्यार नही है।  कारण है सम्बेदनशीलता का शून्य होना। आज प्रेम पात्र को देखकर,  छूकर हमारे शरीर मे कोई सिहरन नही होती। पत्थर हो गए हैं हम भौतिकतावादी अंधी घुड़ दौड़ में। प्यार अवसरवाद, स्वार्थ आधारित यानी व्यापार का पर्याय बन गया है। सड़क चाप फुटपाथी स्तर पर आ चुका है आज प्यार।_

पहले ऐसा प्यार होता है, फिर व्यक्ति का पतन होता है, फिर प्रतिशोध लेने की भावना बलवती होती है और फिर इंसान जीवन से पलायित हो जाता है।

 विराट और बहु-आयामी प्रेम को नर- नारी के ज़िस्म तक समेट देना भी इसका मूल कारण है।

आपका पतन होना लाजमी है। आप रोक नही सकते ऐसे हस्र को। लेकिन~

 प्रतिशोध की भावना से न भरें। आप सच्चा प्यार किये तो उस प्यार का अपमान न करें। _प्यार आक्रमण नहीं, समर्पण है। प्यार प्रतिशोध नही, आत्मशोध है।_

 पाप से घृणा करें, पापी से नही। पापी को सजा देने की सोचने के बजाए, उसको कुदरत पर छोड दें। 

_क़ुदरत वो हस्र देती है जो आप सोच भी नही सकते। ईश्वर कोई व्यक्ति नही, सत्ता है जो पूजा-पाठ, मंडल-कमंडल से नही, कर्म के हिसाब से ही फल देता है। अस्तित्व का ऑटोमैटिक विधान कर्मफल के रूप में ही हमारे सामने आता है। हम भोगते हैं, हमारे साथ वाले लोग यानी बच्चे, हमसफर को भोगना पड़ता है, क्योकि जैसी संगति वैसी रंगत। जैसा अन्न वैसा मन्न।_

      हमारी सेवा लेने वाले, हमारी पाप की कमाई खाने वाले भी हमारे कुकर्मो के फल भोगते है। और उनकी पीड़ा हम भी झेलते है, इस पहलू पर भी हम भोगते हैं।

_आप बदला लेंगे तो अपराध के भागी बनेंगे। जेलों में जमकर यौन शोषण होता है। फ़ीमेल को अफसरों, धन्नासेठों तक पहुचाया जाता है। कम से कम 8-10 लोग तो नियमित रौंदते ही है नारी को। अब तो नर भी यौन शोषण के शिकार होते है। आये दिन मीडिया  ऐसे सच का पर्दाफाश करता है।_

 ऐसी दशा से आपका भूतपूर्व साथी गुजरेगा/गुजरेगी तो आपका चेहरा सामने होगा उसके, आप कोसे जाएंगे। ~एक बात।

दूसरी बात ये की~

 “हम सच से, खुद से भी भाग लें : लेकिन स्मृतियों से नहीं भाग सकते।”

_आपका अपराधी आज कितना भी ऐश कर रहा/रही हो; आपके साथ जो उसकी वजह से हुआ वो उसे भूल नही जाएगा। उसका जमीर धिक्कारता रहेगा उसे। खुद की नज़रों से बार बार, हर बार गिरना पड़ेगा उसको।_

तो प्यार में ऐसे धोखे के शिकार जनों से हमारा यही कहना है कि~

 _कुकर्मी को कुदरत पर छोड़ें। अंतरमुखी बनें। खुद से प्यार करें। ध्यान में उतर कर अन्तरमैथुन का आनंद लें। असहाय जरूरतमंदों को जीवन देकर खुद को अर्थपूर्ण बनाएं।_

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