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कर्ता-भोक्ता-भर्ता से परे, साक्षीत्व के लिए त्राटक ध्यान

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डॉ. विकास मानव

  _त्राटक यानी ताड़ना/देखना. त्राटक का समान्य का अर्थ है किसी विशेष दृष्य को टकटकी लगाकर देखना। यह ध्यान की एक विधि है. इसमें किसी वाह्य वस्तु को टकटकी लगाकर देखा जाता है।_
 सामान्य तौर पर त्राटक के लिये किसी भगवान, देवी, देवता, महापुरुष, गुरू के चित्र/मूर्ति;  गोलाकार, चक्राकार, बिन्दु, अग्नि, चन्द्रमा, सूर्य, आदि दृष्य का प्रयोग किया जाता है।   
  _मैं अपने जीवित आराध्य अथवा प्रेमी- प्रेमिका के चित्र को या दीपक को लौ को माध्यम बनाने का विकल्प देता हूँ._
त्राटक केंद्र को अपने से लगभग 03 फीट की दूरी पर [अपनी आंखों के बराबर स्तर पर] रखकर उसे लगातार बिना पलक झपकाए जितनी देर तक संभव हो देखा जाता है : निर्विचार अवस्था में.

साक्षी बनने का लक्ष्य लें, त्रिनेत्र बनने का नहीं :
त्राटक एकाग्रता संबंधी हठ-योग की साधना है, जहां हम अपने मन के साथ जबरदस्ती करते हैं। त्राटक की साधना में हम अपने मन को एकाग्र करके एक बिंदू पर ठहरा देते हैं और एक जगह ठहरने के कारण मन को आगे गति करने का अवसर नहीं मिलता है। अतः हमारे विचार रुक जाते हैं।
यानि हमारा चेतन मन शांत होता जाता है और अचेतन मन जागने लगता है। क्योंकि हमने अपना ध्यान विचारों से हटाकर एक बिंदू पर ठहरा दिया होता है।
त्राटक सप्रयास चेतन मन को शांत कर अचेतन मन को जगाने का एक उपाय है। त्राटक में रीढ़ का सीधा होना अनिवार्य है। रीढ़ यदि झुकी हुई रही तो शरीर तनाव में रहता है जिससे विचार चलते रहते हैं और चेतन मन शांत नहीं होता है। चेतन मन तभी शांत होता है जब हमारा शरीर तनावरहित शांत और शिथिल अवस्था में हो और श्वास नाभि तक जाती हो और अचेतन भी तभी सक्रिय होता है जब शरीर शिथिल हो और श्वास गहरी होकर नाभि तक जाती हो!
नींद में हमारी श्वास नाभि तक जाती है तभी तो अचेतन सक्रिय हो जाता है और हमारे विचारों को स्वप्न बनाकर दिखाता रहता है! रीढ़ अगर सीधी होगी तो शरीर शिथिल होगा और हमारी श्वास स्वतः ही नाभि तक जाएगी और अचेतन सक्रिय होने लगेगा।

त्राटक में हम दीवार पर स्थित किसी बिंदु पर, दीये की लौ पर या आईने में अपनी दोनों आंखों में एकटक देखते रहते हैं। पलकें नहीं झपकाते हैं यदि पलकें झपकाते हैं तो विचार आने लगते हैं जिससे चेतन मन सक्रिय रहता है।
हमारी दोनों आंखों का विचारों से अंतर्संबंध निहित है। विचार आने के साथ ही हमारे भीतर चित्रों में भी दिखाई देते हैं! जिस काम या व्यक्ति का विचार आता है तो वह भीतर फिल्म की तरह उभरता है और यह काम आंखें करती है।
इसलिए आंखें विचारों के साथ गति करती है। यदि आंखें ठहरेंगी तो विचार ठहरेंगे क्योंकि आंखों के ठहरते ही विचारों का भीतर चित्रों में दिखना बंद हो जाएगा तो विचारों को गति करने के लिए सीढ़ी ही नहीं मिलेगी! अतः हम निर्विचार होंगे और चेतन मन से अचेतन पर चले जाएंगे!

त्राटक में रीढ़ को सीधी रखना और पलकों को नहीं झपकाना यह दोनों बातें आवश्यक है। यह दोनों बातें त्राटक साधना का आधार है। रीढ़ सीधी नहीं रही और पलकें झपकती रही तो त्राटक में प्रवेश करना बहुत मुश्किल होगा।
जब हम अपलक एकटक देखते हुए त्राटक करते हैं तो हमारी दोनों आंखें त्राटक वाले विषय पर केंद्रित हो जाती है और ठहर जाती है। ज्यों ही दोनों आंखें ठहरती हैं तो वे दोनों आंखों के मध्य में स्थित आज्ञा चक्र के चुंबकीय क्षेत्र में आ जाती है। आज्ञा चक्र जिसे तीसरी आंख कहा गया है यह उर्जा के प्रति बहुत ही संवेदनशील है।
इसे उर्जा मिल ही नहीं पाती है, हमारी देखने की सारी ऊर्जा दोनों आंखों से बाहर देखने में ही खर्च हो जाती है इसलिए आज्ञा चक्र को उर्जा नहीं मिल पाती है। जैसे ही हम दोनों आंखों को एक बिंदु पर ठहरा देते हैं तो दोनों आंखों की उर्जा बिंदु से टकराकर वापस लौट आती है और जैसे ही उर्जा वापस लौटती है तो हमारी दोनों आंखें तो बिंदु को देख रही होती है अतः बिंदु से वापस लौटती उर्जा को आज्ञा चक्र आपनी ओर खींच लेता है, हमारी दोनों आंखों की उर्जा आज्ञा चक्र में प्रवेश करने लगती है और आज्ञा चक्र सक्रिय होने लगता है।
त्राटक आज्ञा चक्र को भी सक्रिय करता है लेकिन यहां पर हम अचेतन में प्रवेश करने के लिए आज्ञा चक्र का उपयोग भर कर रहे हैं! न कि उसे सक्रिय कर रहे हैं!!

ज्यों ही हमारी दोनों आंखों की देखने वाली उर्जा केंद्र से टकराकर वापस लौटकर आज्ञा चक्र में प्रवेश करती है तो दोनों आंखें आज्ञा चक्र से पूरी तरह सम्मोहित हो जाती है और अपनी जगह पर पूरी तरह से ठहर जाती है।
दोनों आंखों के ठहरते ही हमारे विचारों को गति देने के लिए भीतर चित्र बनने बंद हो जाते हैं और विचारों को रूकना पड़ता है क्योंकि बिना भीतर चित्र बने विचारों का आना संभव नहीं है। हमारा ध्यान भी विषय पर केंद्रित होता है इसलिए भी विचारों का आना मुश्किल हो जाता है।

त्राटक में हम सजगता पूर्वक चेतन मन से अचेतन मन में प्रवेश करते हैं। विचार से निर्विचार में प्रवेश करते हैं। अतः त्राटक विधि दोनों आंखों को तीसरी आंख द्वारा एक बिंदु पर ठहराकर अचेतन में प्रवेश करने का एक महत्वपूर्ण उपाय है।
त्राटक का अभ्यास करते हुए एक बार यदि हमें अनुभव में आ जाता है कि कैसे दोनों आंखों को ठहराते हुए विचारों को रोककर अचेतन में प्रवेश किया जाता है तो फिर हमें त्राटक की कोई जरूरत नहीं रह जाती है। हम आंख बंद करके भी दोनों आंखों को ठहराकर सीधे अचेतन में प्रवेश कर सकते हैं।
ज्योंही हम अपनी आंखों को बंद कर भीतर ठहराएंगे हमारे विचार रुक जाएंगे और हमारा अचेतन में प्रवेश हो जाएगा साथ ही दोनों आंखों की बाहर देखने वाली ऊर्जा आज्ञा चक्र में प्रवेश करने लगेगी।
चेतन से अचेतन में प्रवेश करना। विचारों से निर्विचार में प्रवेश करना यही ध्यान है। यही साक्षी है। विचार नहीं होंगे तो हम सिर्फ देखने वाले होंगे यानि साक्षी होंगे।
त्राटक का हम किसी सिद्धी प्राप्त करने या तिसरी आंख को सक्रिय करने के लिए उपयोग करते हैं तो अचेतन में प्रवेश नहीं कर पाते हैं और तीसरे तल पर विचारों में ही उलझकर रह जाते हैं। क्योंकि सिद्धी और तीसरी आंख का सक्रिय होना अचेतन में प्रवेश करने के बाद स्वतः घटने वाली घटनाएं हैं और बाद में स्वतः घटने वाली घटनाओं को हम पहले सप्रयास नहीं घटा सकते हैं।
सिद्धी और तीसरी आंख चौथे तल निर्विचार की घटनाएं है जबकि हम खड़े है तीसरे विचारों के तल पर!! अतः त्राटक का हमें अचेतन में प्रवेश करने के लिए ही उपयोग करना है न कि तीसरी आंख को सक्रिय करने या सिद्धी प्राप्त करने के लिए!!
शुरू शुरू में बार-बार रीढ़ भी झुकती है और पलकें भी झपकती है क्योंकि यह दोनों बातें हमारी आदत में नहीं होती है और शरीर का अभ्यास भी नहीं होता है। धीरे-धीरे अभ्यास होता जाता है और त्राटक में हमारा प्रवेश हो जाता है। जिस तरह से रात को नींद में जाने के लिए दिन में काम करके शरीर को थकाना जरूरी है उसी तरह से एक घंटे त्राटक करने से पहले एक घंटे का चलना, नाचना या खेलना जरूरी है।
इतना श्रम हो कि पसीना निकल आए और गहरी श्वास से शरीर आक्सीकृत हो जाए ताकि त्राटक में प्रवेश करना आसान हो सके।
हर ध्यान विधि प्रयास और समय मांगती है। हम यदि सतत संकल्प और धैर्य पूर्वक प्रयास जारी रखते हैं तो परिणाम सुनिश्चित है!

त्राटक की दो प्रयोगसिद्ध प्रविधियां :
पहला चरण चालीस मिनट का है और दूसरा बीस मिनट का।
यदि आप लंबे समय तक, कुछ महीनों के लिए, प्रतिदिन एक घंटा ज्योति की लौ को अपलक देखते रहें तो आपकी तीसरी आंख पूरी तरह सक्रिय हो जाती है। आप अधिक प्रकाशपूर्ण, अधिक सजग अनुभव करते हैं।
त्राटक शब्द जिस मूल से आता है उसका अर्थ है: आंसू। तो आपको ज्योति की लौ को तब तक अपलक देखते रहना है जब तक आंखों से आंसू न बहने लगें। एकटक देखते रहें, बिना पलक झपकाए, और आपकी तीसरी आंख सक्रिय होने लगेगी।
एकटक देखने की विधि असल में किसी विषय से संबंधित नहीं है, इसका संबंध देखने मात्र से है। क्योंकि जब आप बिना पलक झपकाए एकटक देखते हैं, तो आप एकाग्र हो जाते हैं। और मन का स्वभाव है भटकना। यदि आप बिलकुल एकटक देख रहे हैं, जरा भी हिले-डुले बिना, तो मन अवश्य ही मुश्किल में पड़ जाएगा।
मन का स्वभाव है एक विषय से दूसरे विषय पर भटकने का, निरंतर भटकते रहने का। यदि आप अंधेरे को, प्रकाश को या किसी भी चीज को एकटक देख रहे हैं, यदि आप बिलकुल एकाग्र हैं, तो मन का भटकाव रुक जाता है। क्योंकि यदि मन भटकेगा तो आपकी दृष्टि एकाग्र नहीं रह पाएगी और आप विषय को चूकते रहेंगे।
जब मन कहीं और चला जाएगा तो आप भूल जाएंगे, आप स्मरण नहीं रख पाएंगे कि आप क्या देख रहे थे। भौतिक रूप से विषय वहीं होगा, लेकिन आपके लिए वह विलीन हो चुका होगा, क्योंकि आप वहां नहीं हैं–आप विचारों में भटक गए हैं।

एकटक देखने का, त्राटक का अर्थ है–अपनी चेतना को भटकने न देना। और जब आप मन को भटकने नहीं देते तो शुरू में वह संघर्ष करता है, कड़ा संघर्ष करता है, लेकिन यदि आप एकटक देखने का अभ्यास करते ही रहे तो धीरे-धीरे मन संघर्ष करना छोड़ देता है।
कुछ क्षणों के लिए वह ठहर जाता है। और जब मन ठहर जाता है तो वहां अ-मन है, क्योंकि मन का अस्तित्व केवल गति में ही बना रह सकता है, विचार-प्रक्रिया केवल गति में ही बनी रह सकती है।
जब कोई गति नहीं होती, तो विचार-प्रक्रिया खो जाती है, आप सोच-विचार नहीं कर सकते। क्योंकि विचार का मतलब है गति–एक विचार से दूसरे विचार की ओर गति। यह एक प्रक्रिया है।

यदि आप निरंतर एक ही चीज को एकटक देखते रहें, पूर्ण सजगता और होश से…क्योंकि आप मृतवत आंखों से भी एकटक देख सकते हैं, तब आप विचार करते रह सकते हैं–केवल आंखें, मृत आंखें, देखती हुई नहीं।
मुर्दे जैसी आंखों से भी आप देख सकते हैं, लेकिन तब आपका मन चलता रहेगा। इस तरह से देखने से कुछ भी नहीं होगा। त्राटक का अर्थ है–केवल आपकी आंखें ही नहीं बल्कि आपका पूरा अस्तित्व आंखों के द्वारा एकाग्र हो।
तो कुछ भी विषय हो–यह आपकी पसंद पर निर्भर करता है। यदि आपको प्रकाश अच्छा लगता है, ठीक है; यदि आपको अंधेरा अच्छा लगता है, ठीक है। विषय कुछ भी हो, गहरे में यह बात गौण है, असली बात है मन को एक जगह रोकने का, उसे एकाग्र करने का, जिससे कि भीतरी गतियां, भीतरी कुलबुलाहट रुक सके, भीतरी कंपन रुक सके।
आप बस देख रहे हैं–निष्कंप। इतनी गहराई से देखना आपको पूरी तरह से बदल जाएगा। वह एक ध्यान बन जाएगा।
दूसरा चरण : आँखें बंद कर लें और विश्राम में चले जाएं।

दूसरी विधि :
यह प्रयोग भी एक घंटे का ही है। पहला चरण चालीस मिनट का और दूसरा बीस मिनट का।
कमरे को चारों ओर से बंद कर लें, और एक बड़े आकार का दर्पण अपने सामने रखें। कमरे में बिल्कुल अंधेरा होना चाहिए। अब एक दीपक या मोमबत्ती जलाकर दर्पण के बगल में इस प्रकार रखें कि उसकी रोशनी सीधी दर्पण पर न पड़े।
सिर्फ आपका चेहरा ही दर्पण में प्रतिबिंबित हो, न कि दीपक की लौ। अब दर्पण में अपनी दोनों आंखों में बिना पलक झपकाए देखते रहें–लगातार चालीस मिनट तक। अगर आंसू निकलते हों तो उन्हें निकलने दें, लेकिन पूरी कोशिश करें कि पलक गिरने न पाए।
आंखों की पुतलियों को भी इधर-उधर न घूमने दें–ठीक दोनों आंखों में झांकते रहें।

दो-तीन दिन के भीतर ही विचित्र घटना घटेगी–आपके चेहरे दर्पण में बदलने प्रारंभ हो जाएंगे। आप घबरा भी सकते हैं। कभी-कभी बिल्कुल दूसरा चेहरा आपको दिखाई देगा, जिसे आपने कभी नहीं जाना है कि वह आपका है। पर ये सारे चेहरे आपके ही हैं।
अब आपके अचेतन मन का विस्फोट प्रारंभ हो गया है। कभी-कभी आपके विगत जन्म के चेहरे भी उसमें आएंगे। करीब एक सप्ताह के बाद यह शक्ल बदलने का क्रम बहुत तीव्र हो जाएगा; बहुत सारे चेहरे आने-जाने लगेंगे, जैसा कि फिल्मों में होता है। तीन सप्ताह के बाद आप पहचान न पाएंगे कि कौन सा चेहरा आपका है।
आप पहचानने में समर्थ न हो पाएंगे, क्योंकि इतने चेहरों को आपने आते-जाते देखा है। अगर आपने इसे जारी रखा, तो तीन सप्ताह के बाद, किसी भी दिन, सबसे विचित्र घटना घटेगी–अचानक आप पाएंगे कि दर्पण में कोई चेहरा नहीं है–दर्पण बिल्कुल खाली है और आप शून्य में झांक रहे हैं! यही महत्वपूर्ण क्षण है।
तभी आंखें बंद कर लें और अपने अचेतन का साक्षात करें। जब दर्पण में कोई प्रतिबिंब न हो, तो सिर्फ आंखें बंद कर लें, भीतर देखें–और आप अचेतन का साक्षात करेंगे।

वहां आप बिल्कुल नग्न हैं–निपट जैसे आप हैं। सारे धोखे वहां तिरोहित हो जाएंगे। यह एक सत्य है, पर समाज ने बहुत सी पर्तें निर्मित कर दी हैं, ताकि मनुष्य उससे अवगत न हो पाए।
एक बार आप अपने को पूरी नग्नता में देख लेते हैं, तो आप बिल्कुल दूसरे आदमी होने शुरू हो जाते हैं। तब आप अपने को धोखा नहीं दे सकते हैं।
अब आप जानते हैं कि आप क्या हैं। और जब तक आप यह नहीं जानते कि आप क्या हैं, आप कभी रूपांतरित नहीं हो सकते। कारण, कोई भी रूपांतरण इस नग्न-सत्य के दर्शन में ही संभव है; यह नग्न-सत्य किसी भी रूपांतरण के लिए बीजरूप है।
अब आपका असली चेहरा सामने है, जिसे आप रूपांतरित कर सकते हैं। और वास्तव में, ऐसे क्षण में रूपांतरण की इच्छा मात्र से रूपांतरण घटित हो जाएगा, और कुछ भी करने की जरूरत नहीं है।
दूसरा चरण : अब आंखें बंद कर विश्राम में चले जाएं।
(एक घंटे के लिए मुझे मिलकर यह ध्यान विधि निःशुल्क सीखी जा सकती है.)🍃

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