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“श्रद्धांजलि”..पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह से जुड़ा एक दिलचस्प संस्मरण पत्रकार निर्मल पाठक के शब्दों में

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“लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी कवर करते हुए और उसके बाद यूपीए सरकार में विदेश मंत्रालय की रिपोर्टिंग के दौरान नटवर सिंह को जानने समझने और उनके नजदीक जाने का मुझे काफी मौका मिला। बिना लाग लपेट के अपनी साफ राय रखना और तीखी विनोदपूर्ण हाजिर जवाबी उनकी शख्सियत का हिस्सा था। उनसे जुड़े हुए बहुत सारे किस्से हैं लेकिन एक किस्सा लगातार दिमाग में कौंधता है। यूपीए की सरकार बनने के बाद विदेश मंत्री के तौर पर नटवर सिंह सितंबर 2005 के पहले सप्ताह ईरान की यात्रा पर थे। तेहरान के बाद वह शिराज में  प्रसिद्ध कवि हाफिज की मजार पर गए। वहां मान्यता है कि हाफिज की कविताओं की किताब फल-ए-हाफिज में किसी छंद से आपको अपने लिए नसीहत मिल सकती है। नटवर सिंह ने भी एक पन्ना खोला और एक छंद पर उंगली रखी। मजार पर मौजूद व्यक्ति ने फारसी में लिखे उस छंद का जो भावार्थ बताया वह यह था कि “आपको अकेले में समय बिताने की जरूरत है, इसलिए मदिरा पान करें और खुश रहें”। वहां से लौटकर अगले महीने नटवर सिंह मास्को की यात्रा पर गए थे और तब तक तेल के बदले अनाज वाली वोल्कर रिपोर्ट पर बवाल शुरू हो चुका था। उसके बाद क्या हुआ वह सबको पता है। हाफिज की मजार पर नटवर सिंह के साथ मौजूद बाकी लोगों की तरह तब मैं भी उस छंद का अनुवाद सुनने के बाद हंस रहा था। अखबार में गपशप कॉलम के लिए यह अच्छा मसाला था और छपा भी। नटवर सिंह तब तक अपने कुछ बयानों को लेकर विवादास्पद हो चुके थे लेकिन तब भी यह कल्पना से परे था कि यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी अपने दरबार के प्रमुख रत्न नटवर सिंह से इस्तीफा देने को कह सकती हैं। मंत्रिमंडल में उनकी मौजूदगी का खास मतलब था। अकेले वही थे जो मंत्रिमंडल की बैठकों को अक्सर अपने हिसाब से चलाने वाले प्रणव मुखर्जी को उनकी भाषा में समझा सकते थे। नटवर सिंह न केवल मंत्रिमंडल की बैठकों में बल्कि सार्वजनिक  तौर पर भी यह जताने में बिल्कुल झिझक नहीं करते थे कि गांधी नेहरू परिवार में उनकी खास जगह है। मगर, ईरान यात्रा के एक महीने बाद हालात अप्रत्याशित तेजी से बदले और नटवर सिंह को वाकई एकांतवास में जाना पड़ा। वह तब से एकांतवास में ही थे। हाफिज के शब्द क्या वाकई भविष्यदर्शी थे…!!

प्रस्तुति-अनिल जैन

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