-डॉ श्रीगोपाल नारसन
ग़लत पते के लिफ़ाफ़े सा मुझको मत समझो, मुझे तलाश करो, मैं यहीं कहीं पर हूँ। ये पंक्तियां है रुड़की के महान शायर अनीस मेरठी की, जो हमें असमय ही छोड़कर चले गए है। उनका अचानक जाना मुझे अंदर तक झकझोर गया। उनकी तबीयत तो ऊपर नीचे होती रहती थी, लेकिन वे इसी तबियत ख़राब का बहाना कर चले जायेंगे, ऐसा कभी सोचा नही था। अनीस मेरठी शांत स्वभाव के धीरे बोलने वाले मीठे शायर थे। उनका मुझसे और मुझे उनसे एक विशेष ही लगाव था, जब भी उनका मुझसे मिलने का मन होता तो अपनी बेटी बुशरा से मुझे फोन कराते, मुझे भी बुशरा में एक बहन का प्यार झलकता और मैं अधिकार के साथ उन्हें बोल देता, अब्बू से मिलने तभी जाऊंगा, जब आप भी वहां मिलो, बुशरा सहज ही मान जाती और वाकई अपने घरेलू कामो को बीच मे ही छोड़कर अब्बू व मेरे लिए दौड़ी दौड़ी ससुराल से मायके चली आती। हिंदी में साहित्य में जहां बुशरा को महारथ हासिल है, वही उर्दू में अनीस मेरठी किसी गुरु या फिर उस्ताद से कम नही रहे। दूरदर्शन ने अनीस मेरठी का एक विशेष साक्षात्कार प्रसारित किया था, मेरे डिवाइन मिरर हिंदी चैनल पर भी उनसे उनके साहित्यिक अवदान की गई गई बातचीत खूब पसंद की गई।
यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे अनीस मेरठी का एक साक्षात्कार करने का अवसर उनकी 84 वर्ष की आयु में मिला। उन्ही के घर पर जब बातचीत का सिलसिला चला तो पता चला अनीस मेरठी नज़्म और गज़ल विधा के जादूगर है, उनकी शायरी पर 2 पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी है। बिजली विभाग में नोकरी करते हुए शायरी के क्षेत्र में आगे बढ़े अनीस मेरठी का कहना था कि शायरी में आदमी कभी मुकम्मल नही होता, जितना सीखता है उतना निखरता जाता है। वे कहते थे कि शायरी में उनके पिता के अलावा उनका कोई उस्ताद नही रहा। उनका यह भी कहना था कि कोई भी शख्स एक अच्छा शायर तभी हो सकता है, जब वह एक अच्छा इंसान हो, क्योंकि शायरी के लिए सबसे पहले एक अच्छा इंसान होना जरूरी है। सन 1936 में जन्मे अनीस मेरठी सन 1947 में आजादी मिलने के समय कक्षा 6 में पढ़ते थे, उन्होंने बचपन मे अंग्रेजों का दौर भी देखा, तभी तो वे मानते थे कि देश में आजादी के दीवानों ने जिस आजादी का सपना बुना था, वह आज तक भी पूरा नही हो पाया है। वे मंदिर -मस्जिद के मुद्दे को मात्र सियासी मानते थे, वह भी केवल वोट की सियासत। अनीस मेरठी बेबाक बोलते हुए कहते थे कि आज के कवि सम्मेलन व मुशायरे केवल पैसे कमाने का जरिया बनकर रह गए है। साहिर लुधयानवी से प्रभावित अनीस मेरठी नई पीढ़ी को सबसे पहले यानि कुछ लिखने से पहले ग़ालिब, फैज अहमद फैज व सोज़ को पढ़ने और फिर कुछ लिखने की नसीहत देते थे। उन्होंने पहले मेरठ और फिर रुड़की में रहते हुए न जाने कितने कवि सम्मेलनों, मुशायरों में शिरकत की और अपनी मौजूदगी का एहसास अपने क़लाम से कराया। दूरदर्शन पर भी उनका साक्षात्कार अविस्मरणीय रहा, लेकिन उर्दू के इस महान रचनाकार को सरकार की ओर से कभी कोई तवज्जो नही मिली। अच्छा होता वे जीतेजी सरकारी स्तर पर किसी सम्मान से नवाज़े जाते , जिसके वे हकदार भी थे।
(लेखक की विभिन्न साहित्यिक विधा में 21 पुस्तकें है और लेखक विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ के उपकुलपति भी है)