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*श्रद्धांजलि :इंदौर की राजनीति को संघर्ष का पथ दिखा गए कल्याण दादा*

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*रामस्वरूप मंत्री* 

अपने 70 साल के राजनीतिक जीवन में अन्याय के खिलाफ सतत संघर्ष करने वाले  पूर्व सांसद समाजवादी नेता कल्याण जैन ने 13 जुलाई को अंतिम सांस ली। 89 वर्ष की उम्र में शायद ही प्रदेश का कोई ऐसा कस्बा, कोई समाज का हिस्सा रहा हो, जिसे दादा ने प्रभावित नहीं किया हो।

इंदौर के पूर्व सांसद जुझारू समाजवादी नेता तथा देश में पहली बार छोटे दुकानदारों को संगठित कर कानूनी जंजाल से मुक्ति दिलाने के लिए संघर्ष करने वाले कल्याण जैन ने आज 13 जुलाई को 89 वर्ष की उम्र में  अंतिम सांस ली।

समाजवादी विचारधारा में अटूट निष्ठा, गैर बराबरी और भ्रष्टाचार के खिलाफ असीम गुस्सा और अत्यंत गरीब को भी न्याय दिलाने की भरसक कोशिश के गुण कल्याण जैन को एक अलग राजनेता के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं । 89 साल की उम्र के करीब पहुंच रहे कल्याण दादा के राजनीतिक जीवन की आधी सदी से ज्यादा बीत चुकी है। सतत धारावाहिकता के चलते उन्होने अपने संघर्षों में ना कभी साधनों की चिंता की और ना संख्या बल की ।  गांधी जी के इस वाक्य को कि समाज परिवर्तन की लड़ाई लड़ने वालों को मान, अपमान और तिरस्कार की चिंता किए बगैर अपनी राह पर चलते रहना चाहिए । इसी को उन्होंने अपना ध्येय वाक्य बनाकर 1960 में संघर्ष की जो राह पकड़ी तो वह आजीवन  जारी रही। दादा इंदौर की राजनीति में एकमात्र ऐसे व्यक्ति रहे जिन्होंने नगरनिगम से लेकर संसद तक इंदौर का प्रतिनिधित्व किया, लेकिन फिर भी अपनी सादगी नहीं छोड़ी।

वित्तीय मामलों में दादा की गहरी पकड़ थी, बजट के पूर्व और बजट के बाद होने वाली चर्चाओं में उनकी व्याख्या, विश्लेषण, तार्किकता और आर्थिक मामलों में उनकी सोच को सराहा जाता रहा है। आजादी बचाओ आंदोलन हो या प्राथमिक शिक्षा एक जैसी हो इस पर होने वाले आंदोलनों में दादा को लगातार नेतृत्व करते हुए देखा जाता है । अन्याय कहीं भी हो दादा पीड़ितों के हक में इस उम्र में भी खड़े हो जाते थे । संघर्ष के साथ ही दादा लेखन के जरिए भी सरकार को सुझाव देते रहते थे । इस संबंध में उनकी कुछ किताबें भी प्रकाशित हो चुकी है  , जिनमें प्रमुख है *अभी भी समय है, 10 नहीं सौ करोड़ का भारत ,  मेरे सपनों का भारत, यदि में वित्त मंत्री होता, कार्य संस्कृति सुधार पथ बढ़ाने होंगे तथा सब्सिडी का विकल्प*  ।

 अपनी विचारधारा से समझौता कभी नहीं करने वाले दादा के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए राजनीतिक रूप से भी कई मौके आए लेकिन उन्होंने कभी विचारधारा से समझौता नही किया । 1984 के चुनाव का वाकिया मुझे याद है जब भाजपा ने गुना से माधवराव सिंधिया के खिलाफ कल्याण दादा को संयुक्त उम्मीदवार बनाने का फैसला किया । सूचना मिलने पर दादा ने गुना से नामांकन भी दाखिल कर दिया, लेकिन अचानक कांग्रेस ने माधवराव सिंधिया को ग्वालियर भेज दिया ,अटल बिहारी वाजपेई के खिलाफ चुनाव लड़ने को। तो भाजपा अपने वादे से पलट गई और उसने कल्याण जैन को संयुक्त उम्मीदवार बनाने से इनकार कर दिया । जब दादा कुशाभाऊ ठाकरे से भोपाल में मिले तो ठाकरे जी ने कहा कि आप भाजपा के उम्मीदवार  बनने को तैयार हो तो गुना से पार्टी टिकट देने को तैयार है , लेकिन दादा को यह मंजूर नहीं था और उन्होंने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।इस पूरी घटना का मैं प्रत्यक्ष गवाह हूं ।यदि दादा उस प्रस्ताव को मान लेते तो हो सकता था कि आज उनकी भाजपा के बड़े नेताओं में गिनती होती,  लेकिन उन्होंने अपनी विचारधारा से समझौता ना कर अपनी राजनीति को नई चमक दी ।

पद का उन्हें कभी मोह नहीं रहा इसका एक और उदाहरण 1992 की वह घटना है जब बगैर किसी शर्त के उन्होंने अपनी सोशलिस्ट पार्टी का मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी में विलय कर दिया।

राज नारायण जी के निधन के बाद  कल्याण जैन को सोशलिस्ट पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया था।कल्याण जैन  समाजवादी पार्टी को मजबूती देने के लिए लगातार प्रयासरत रहे और कई चुनावों में उन्होंने महीने महीने भर उत्तर प्रदेश में रहकर समाजवादी पार्टी को जिताने और सरकार बनाने के लिए सतत मेहनत की । संघर्ष के हर कार्यक्रम और संगठन से उनका लगाव रहा। फिर चाहे बनवारी लाल शर्मा के नेतृत्व में आजादी बचाओ आंदोलन हो या मेघा पाटकर के नेतृत्व में नर्मदा बचाओ आंदोलन । नर्मदा डूब प्रभावित लोगों के पुनर्वास के आंदोलन में मेघा पाटकर का साथ देने में दादा आंदोलनकारियों का हौसला बढ़ाने में हमेशा तत्पर रहे । अपने पूरे जीवन दादा ने पूरी ऊर्जा के साथ लोकतंत्र धर्मनिरपेक्षता और समाजवादी उसूलों के लिए संघर्ष का जज्बा बनाए रखा और हर मिलने वाले और कार्यकर्ता से हमेशा वे अन्याय के खिलाफ संघर्ष करने का आग्रह करते रहे उनकी सामाजिक बदलाव के लिए जीवन भर जो तड़प रही उसे देखकर ही कहा जा सकता है कि ऐसे नेताओं की बदौलत ही समाजवादी आंदोलन की चमक आज भी बरकरार है।

गरीब, मजदूर और पीड़ितों की आवाज़ उठाने वाले दादा इंदौर की फ़िज़ाओं में हमेशा अमर रहेंगे!

(*लेखक इंदौर के वरिष्ठ पत्रकार और सोशलिस्ट पार्टी इंडिया की मध्यप्रदेश इकाई के अध्यक्ष है*)

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