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क्रांति दूत मंगल पांडे को शत-शत नमन 

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मुनेश त्यागी

एक सौ पैंसठ वर्ष पहले 8 अप्रैल अट्ठारह सौ सत्तावन को, स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी और आजादी की लौ को चिंगारी देने वाले, अमर शहीद मंगल पांडे को लुटेरे अंग्रेजों द्वारा कोलकाता के पास बैरकपुर छावनी के परेड ग्राउंड में फांसी दे दी गई। अंग्रेजों द्वारा दी गई फांसी भी उनका पीछा नहीं छोड़ पाई, मंगल पांडे मर कर भी सदा अंग्रेजों का पीछा करते रहे। वह भारतीय जनता का चहेता शहीद बन गए और भारतीय आजादी के इतिहास का अमर सेनानी बन कर बैठ गए।
 अंग्रेज साम्राज्यवादी हमेशा भारतीय वीरों और शहीदों को लांछित करते रहे हैं। इसी सोची-समझी रणनीति के तहत अंग्रेजों ने शहीद मंगल पांडे पर लांछन लगाया था कि  29 मार्च 18 57 की घटना के समय वह भांग के नशे में था, उन्होंने उसे एक नशेड़ी बताया था,वह अंग्रेजों से व्यक्तिगत रंजिश रखता था। वह संकुचित और धर्मांध था और अंजाने मे ही दुर्घटनावश अनजाने में शहीद और भारतीय जनता का हीरो बन बैठा।
 19वीं और 34वीं देशी पलटन के समस्त सिपाहियों समेत मंगल पांडे और उनके नायक ईश्वरी पांडे को 31 मई 1857 के दिन रविवार को होने वाली क्रांति एवं आजादी की जंग की पूर्ण जानकारी थी। मंगल पांडे पर लगाए गए यह समस्त आरोप निराधार हैं। हकीकत यह है कि 29 मार्च अट्ठारह सौ सत्तावन की घटना किसी धार्मिक विचार या नशे का परिणाम नहीं थी, ना ही यह कोई क्षणिक या भावनात्मक घटना थी बल्कि यह एक सोची-समझी गुप्त आंदोलन एवं हमले का परिणाम थी।
 यह घटना अंग्रेजों द्वारा भारत के  वर्षो पुराने शोषण, अन्याय, जुल्म, राज हड़प, अत्याचार, अपमान एवं खेती-बाड़ी, उद्योग धंधे के विनाश का परिणाम थी जिसकी तैयारी आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर, नानासाहेब, अज़ीमुल्ला ख़ान, तात्या टोपे, झांसी की रानी, बेगम हजरत महल, मौलाना अहमद शाह, वीर कुंवर सिंह आदि महीनों और वर्षों से कर रहे थे, जिसमें 31 मई  1857 दिन रविवार को समस्त भारत में एक साथ और एक समय यानी शाम 5:00 बजे सारे अंग्रेजों पर अचानक हमला करके उनका खात्मा करके भारत को आजाद करा करा देना और अंग्रेजी शासन का नाश कर देना था।
 मंगल पांडे मुर्शिदाबाद बैरकपुर में 34वीं देशी पलटन के सिपाही थे तथा बैरकपुर में तैनात थे। गाय और सुअर की चर्बी लगे कारतूसों को लेकर भारतीय सेना में बहुत बेचैनी थी। वे पहले ही चर्बी लगे कारतूसों को चलाने से मना कर चुके थे। अंग्रेज अफसर इनकार करने वाले सिपाहियों को दंड देना चाहते थे। अंग्रेजों ने 19वीं पलटन  को बैरकपुर में ले जाकर निरस्त्र कर तोडने का निर्णय लिया।
 पूर्व योजना एवं सलाह मशवरे के तहत भारतीय सैनिक विद्रोह में शामिल होने को तैयार थे और अपमान को बर्दाश्त न करने का निर्णय ले चुके थे। मंगल पांडे 31 मई 18 57 का इंतजार ना कर सके। 29 मार्च1857 को अपने साथियों से पूर्व योजना के तहत सार्जेंट मेजर ह्यूजसन को मौत के घाट उतार दिया। आदेश के बावजूद भारतीय सैनिकों ने मंगल पांडे को गिरफ्तार करने की कोशिश नहीं की। इसके बाद अंग्रेज अधिकारी बो ने मंगल पांडे को मारने के लिए उन पर हमला किया।  इसकी गोली से बचकर मंगल पांडे ने, इस अंग्रेज अधिकारी बो को भी मौत के घाट उतार दिया। उसके बाद भारतीय सैनिकों ने मंगल पांडे को गिरफ्तार करने के हुक्म को नहीं माना। उसके बाद अंग्रेज अधिकारी व्हीलर अतिरिक्त सैनिकों को लेकर आया और इन सैनिकों को गिरफ्तार कर लिया। 
जांबाज और आजादी के दीवाने मंगल पांडे ने फिरंगियों के हाथ पढ़ने से बचने के लिए बंदूक की नली अपने सीने पर लगाकर दाग दी। वह घायल होकर गिर पड़े और अंग्रेजों पर हमला करने के लिए अपने साथी सिपाहियों का आह्वान किया। तभी उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 30 मार्च और 1अप्रैल 1857 को उनके खिलाफ विशेष जांच कार्यवाही की गई। फिर 6 अप्रैल को मंगल पांडे पर हिंसा और देशद्रोह एवं बगावत का इल्जाम लगाकर कोर्ट मार्शल ने उन्हें दोषी पाया और सजा ए मौत का दंड दे दिया। मंगल पांडे को फांसी 18 अप्रैल को दी जानी थी, मगर उपद्रवों के डर से 8 अप्रैल को बैरकपुर के परेड ग्राउंड में उन्हें फांसी पर लटका दिया गया।
  फांसी से पहले अंग्रेजों ने पांडे के दूसरे साथियों के नाम जानने की बहुत कोशिश की। अपनी शपथ के अनुसार मंगल पांडे ने किसी का नाम नहीं बताया और आजादी की मशाल को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए मातृभूमि की आजादी के लिए प्राणों की आहुति दे दी। फांसी के लिए बैरकपुर में कोई जल्लाद नहीं मिल पाया है तो कलकत्ता से चार जल्लाद लाए गए। इस प्रकार अंग्रेजों ने आजादी के दीवाने मंगल पांडे को मौत के घाट उतार दिया।

मंगल पांडे मर कर भी जिंदा रहे और आजादी के अमर शहीद बन गए। मंगल पांडे और विद्रोही सेना को अंग्रेज “पांडे सेना” कहकर पुकारने लगे। मंगल पांडे क्रांति और आजादी के महानायक बन गए। आजादी की चिंगारी जलाने वाले मंगल पांडे को शत-शत नमन। यहां पर हम एक बात और बताना चाहते हैं कि कुछ लोग कहते हैं कि मंगल पांडे ने 10 मई 1857 मेरठ की क्रांति में भाग लिया था। मगर यह बात तथ्यों से परे है क्योंकि मंगल पांडे को 10 मई अट्ठारह सौ सत्तावन की मेरठ क्रांति से पहले ही, 8 अप्रैल अट्ठारह सौ सत्तावन को बैरकपुर कलकत्ता में फांसी दे दी गई थी। उनका मेरठ की क्रांति से कोई मतलब नहीं था फिर भी मंगल पांडे हमारे अमर शहीद हैं।
मंगल पांडे हमारे देश की जनता के दिलोंदिमाग में आज भी मौजूद हैं। मंगल पांडे ने भारत को आजाद कराने के लिए आजादी के संघर्ष में भाग लिया और भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के संघर्ष और जंगेआजादी में अपनी जान दे दी। हम उन्हें शत-शत नमन और वंदन करते हैं। मंगल पांडे जिंदाबाद। मंगल पांडे भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के अमर शहीद हैं। वे कभी नहीं मरेंगे। जब तक भारत की आजादी का इतिहास रहेगा मंगल पांडे हमेशा जिंदा रहेंगे। 10 मई के दिन हर साल लोग आज भी शहीद मंगल पांडे जिंदाबाद और शहीद मंगल पांडे अमर रहे के नारे लगाते हैं इस प्रकार वे आज भी जिंदा हैं सच में वह कभी नहीं मरेंगे, मंगल पांडे सदैव अमर स्वतंत्रता सेनानी ही रहेंगे।

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