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*समझो इशारों में*

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शशिकांत गुप्ते इंदौर

मुझे प्रख्यात व्यंग्यकार स्व.शरद जोशीजी के एक व्यंग्य का स्मरण हुआ। जोशीजी ने बोफोर्स तोप की खरीदी के कथित घोटाले पर व्यंग्य करते हुए लिखा था।
बोफोर्स की तोप का कमीशन क्या मेरी तरफ से पूरी तोप की तोप खा जाओ,लेकिन मेरे देश को देश रहने दो
संभवतः आज यदि शरद जोशी होते यूँ लिखते कि,देश का नाम कुछ भी रखो चाहे India या भारत रखो लेकिन, निम्न स्तर की राजनीति के कारण देश का नाम बदनाम मत करों।
संयोग से लेखक ज्योतिषी भी है।
जब कोई व्यक्ति अपनी संतान के नामकरण संस्कार सम्पन्न करने के पूर्व यह पूछने आता है कि, पुत्र या कन्या का नाम कौन सा रखना चाहिए?
जोतिषी अपनी व्यंग्य की भाषा में सलाह देता है कि, अपनी पसंद का कोई भी नाम रखो लेकिन यह ध्यान रखो कि,संतान के संस्कार दूषित न हो जिससे समाज के लोग उसे नाम ना रखें?
नाम अनुरूप आचरण होना चाहिए अन्यथा प्रख्यात हास्य व्यंग्य के कवि काका हाथरसी की कविता की कुछ पंक्तियां प्रासंगिक हैं।
शीला जीजी लड़ रही, सरला करती शोर,
कुसुम, कमल, पुष्पा, सुमन निकलीं बड़ी कठोर।
निकलीं बड़ी कठोर, निर्मला मन की मैली
सुधा सहेली अमृतबाई सुनीं विषैली

इतना लिखा हुआ सीतारामजी ने पढ़ा और वे कहने लगे कि, सच में आज कुछ लोगों ने देश की राजनीति की मजाक ही बना रखा है।
अहंकार में मदहोश सियासतदान यह भूल जातें हैं कि,ये पब्लिक है सब जानती है
कोई कितना भी छद्म प्रचार कर अपनी उपलब्धियों का सिर्फ विज्ञापनों में बखान करें।
जनता तो अपनी मूलभूत समस्याओं से निजात पाना चाहती है।
उलजलूल मुद्दों से,जनता को कोई लेना देना नहीं है।
यह सत्य स्वीकारना ही चाहिए कि, झूठ के पांव नहीं होते हैं।
यह बात भी देश के सियासतदानों के समझ लेनी चाहिए कि,आपने देश में सत्ता परिवर्तन Bullet से नहीं ballot से होता है।
Ballot मतलब मतदान करते समय कोई कितनी भी भव्य रैलियों करें और जोर शोर से प्रचार करें या प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर कोई चुनाव जीतने के लिए कितनी भी धन और बल की ताक़त को चुनाव में झोंक दे, जनता सब हथकंडों को किनार कर देती है। ऐसे प्रत्यक्ष बहुत से उदाहरण हैं।
समझदार को इशारा काफ़ी है।

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