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चोर बाजारों के रोजगार तंत्र को समझिए

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सुधीर मिश्र

शेख इब्राहिम ज़ौक का शेर है

“पिला मय आश्कारा हम को किस की साक़िया चोरी
खुदा से जब नहीं चोरी तो फिर बंदे से क्या चोरी”

दिल्ली बढ़िया शहर है। फोन हो या लैपटॉप। कितना भी महंगा हो और कितनी भी बड़ी कंपनी का हो, उसका कोई भी पुर्जा खराब हो, आप को यहां के चोर बाजारों में आसानी से सस्ते में मिल जाएगा। बड़ी कंपनियों के शोरूम या रिपेयर सेंटर चलाने वालों के न तो नखरे झेलने की जरूरत है और न उनकी महंगी सर्विस।

चोरी करने वालों, माल रिसीव करने वालों, दोनों के हैंडलर्स, बड़े सप्लायर्स और उनकी सुरक्षा की गारंटी लेने वाले जिम्मेदारों का ऐसा नेटवर्क है कि एक बार आपकी चीज छिनी नहीं कि उसके कल पुर्जे इतने टुकड़ों में खुले नजर आएंगे कि कंपनी का इंजीनियर भी उन्हें दोबारा न जोड़ पाए। दिल्ली में रोज होने वाली झपटमारी के आंकड़े देखिए। सैकड़ों मोबाइल, लैपटॉप, पर्स और बैग रोजाना छीन लिए जाते हैं। तीन दिन पहले ट्रेन में एक बुजुर्ग से झपटमार ने बैग छीना तो वह चलती गाड़ी से गिरे और उनके दोनो पांव कट गए। चोरों के नेटवर्क और उनके संरक्षकों की हफ्ते की कमाई के लिए इस तरह की कुर्बानियां महीने में एक दो बार हो ही जाती हैं। कुछ लोगों की जान भी चली जाती है।

पर दिल्ली पुलिस को इसके लिए कुछ नहीं कहना चाहिए। उन्हें पता है कि इस कुटीर उद्योग को बंद कर देने से हजारों परिवारों को नुकसान होगा। सिर्फ पुलिस ही क्यों, नारकोटिक्स वालों के लिए भी इन्हें पकड़ना तकलीफदेह होगा। झपटमारी के इस नेटवर्क की सबसे छोटी इकाई और सबसे रिस्की काम करने वाले नशाखोर होते हैं। अगर इन्हें पकड़ा जाता है तो तो चरस-स्मैक का धंधा मंदा पड़ता है। साथ ही इन्हें पकड़कर जेल में डालने और वहां इन्हें मरने से बचाने के लिए अपनी जेब से नशा देने का झंझट से भी मुक्ति रहती है। अगर यह बेचारे लोग हमारे आप के मोबाइल, चेन, लैपटॉप और कीमती चीजें नहीं छीनेंगे तो इन्हें आखिर कौन सा रोजगार मिलेगा। फिर यह लोग तो कम ही कमाते हैं। यह लोग सिर्फ छीनते हैं। इनसे रिसीव करके उसे आईएमईआई नंबर बदलने, पुर्जो-मदरबोर्ड को खोल कर अलग करने वालों तक पहुंचाना होता है। फिर किसी रिपेयर सेंटर पर उन्हें बेचा जाता है। सिर्फ दिल्ली ही नहीं, एनसीआर के दूसरे शहरों, बंग्लादेश, नेपाल और चीन तक के ऐसे बेरोजगारों को हमारे आपके चोरी हुए सामानों से रोजगार मिलता है।

हाल ही में करोलबाग मेट्रो स्टेशन पर रोजाना उतरने वाली एक युवती ने बताया कि उसका पांचवा मोबाइल स्टेशन के बाहर की भीड़ में छीन लिया गया। भीड़ एनक्रोचमेंट की वजह से रहती है और इसमें हमारे झपटमारी करने वाले भाइयों को सुविधा रहती है। लिहाजा एमसीडी से भी इस रोजगार को मदद मिलती रहे, इसलिए वह भी एनक्रोचमेंट साफ नहीं करती। कल ही हमने गणतंत्र दिवस मनाया है। अगस्त में हम आजादी मनाते हैं। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि संविधान में सभी को जीने का अधिकार है। आप की मोबाइल पर मस्ती से बात करते हुए गुजरने की आजादी वहां से खत्म होती है, जहां से झपटमार के जीने के अधिकार का दायरा शुरू होता है। उसे रोजगार चाहिए। लोगों को मोबाइल लैपटॉप खराब होने पर सस्ते कल पुर्जे चाहिए तो पुलिस, एमसीडी और नारकोटिक्स वालों पर इन सबके रोजगार की जिम्मेदारी है। इसे हमें और आप सब को समझना होगा। उमर अंसारी के इस शेर के साथ आप सभी को गणतंत्र दिवस की दिली मुबारकबाद कि-

“बाहर-बाहर सन्नाटा है, अंदर-अंदर शोर बहुत
दिल की घनी बस्ती में यारो आन बसे हैं चोर बहुत

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