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समझिये मानव तन का विलक्षण रसायनशास्त्र

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             डॉ. विकास मानव 

    मानवी काया असीम संभावनाओं से भरपूर है। तभी तो इसे सुरदुर्लभ कहा गया है। वैज्ञानिक दृष्टि से शरीर के एक-एक अवयव पर दृष्टि डाली जाए तो भी वह अद्भुत और चमत्कृत करने वाला प्रतीत होता है। 

      आँख, कान, नाक, मस्तिष्क जैसे अवयवों के अंदर बड़े सूक्ष्मतम तंत्र काम करते हैं, जिनकी संरचना के बारे में मनुष्य कभी सोच भी नहीं सकता; जबकि फोटोग्राफिक मशीनें, सूक्ष्म कैमरे, सुनने वाली मशीनें, गंध पहचानने वाले सूक्ष्म सेंसर, रोबो मशीनें, कंप्यूटर आदि आँख, कान, नाक आदि के सिद्धांतों पर निर्मित की गई हैं।

      इनके गुण-धर्म बुद्धि से परे हैं। इतना ही नहीं, शरीर के अंदर काम करने वाली सूक्ष्म अंतःस्त्रावी हॉर्मोन ग्रंथियों के क्रिया-कलाप और भी रहस्यपूर्ण हैं। थाइरॉइड, पिट्यूटरी, पीनियल, पैंक्रियाज, गॉन्-ऐड्स, ऐड्रीनल जैसी ग्रंथियों से जो जीवनरस निकलता है, वह व्यक्तित्व की संरचना, जीवनीशक्ति, भाव-संवेदना आदि महत्त्वपूर्ण सामर्थ्यो का कर्त्ता-धर्ता माना जाता है।

    यद्यपि इन सूक्ष्म स्रावों को प्रत्यक्ष देखा जाना संभव नहीं है, लेकिन उनके परोक्ष चमत्कारों की झाँकी का वर्णन करते हुए वैज्ञानिक अघाते नहीं हैं। न्यूरोह्यूमोरल सिस्टम एवं जीन्स तो और भी सूक्ष्म घटक हैं, जो पौरुष, दृढ़ता एवं कोमलता जैसी मानवी विशिष्टताओं के लिए उत्तरदायी माने जाते हैं। 

     ये और भी अधिक सूक्ष्म एवं चमत्कारी हैं। शारीरिक अंग अवयवों के बाह्य क्रिया- कलापों की एक झाँकी यद्यपि हतप्रभ करने के लिए पर्याप्त है, किंतु यदि वास्तविकता की गहराई में प्रवेश किया जाए तो पता लगता है कि सारे स्थूल क्रिया-कलाप सूक्ष्म हलचलों की अभिव्यक्ति भर करते हैं।

     चेतन में होने वाले स्पंदन काय-कलेवर को न केवल सुरक्षित बनाए रखते हैं, वरन उसके क्रिया-कलाप के मूल कारण भी होते हैं। 

    अनुसंधानकर्ता शरीर विज्ञानियों के अनुसार मानवी काया में दो तरह की हॉर्मोन ग्रंथियाँ कार्य करती हैं। इनमें से कुछ अंतःस्रावी ग्रंथियाँ अपना स्राव नलिकाओं द्वारा सीधे संबंधित अवयवों में उँड़ेलती हैं तो कुछ ग्रंथियाँ नलिकाविहीन होती हैं और सूक्ष्म मात्रा में अपना स्राव संबंधित प्रणाली में स्रवित करती हैं। 

     शरीर के एक सिरे पर मस्तिष्क मध्य में जहाँ पिट्यूटरी ग्रंथि स्थित होती है, वहीं दूसरे सिरे पर जननांगों से संबंधित ऐड्रीनल ग्रंथि होती है। पीनियल, थाइरॉइड, पैंक्रियाज आदि ग्रंथियाँ इन दोनों के मध्य भाग में अपने-अपने अंग-अवयवों से सुसंबंधित होती हैं।

      फिजियोलॉजी की दृष्टि से सभी अंतःस्रावी ग्रंथियों की उपयोगिता महत्त्वपूर्ण हैं, किंतु उक्त दोनों ग्रंथियाँ- पिट्यूटरी एवं ऐड्रीनल सर्वाधिक महत्त्व रखती हैं। कारण, इन ग्रंथियों का मनुष्य के आचरण, व्यवहार एवं स्वभाव से सीधा संबंध जुड़ा हुआ माना गया है। ऐड्रीनल ग्रंथि काम-वासना के आवेग को नियंत्रित करती है तो पिट्यूटरी ग्रंथि से निस्सृत हॉर्मोन उस आवेश को शांत या समाप्त कर देता है अथवा उसकी दिशाधारा को उत्कृष्टता की ओर मोड़कर रचनात्मक दिशा प्रदान करता है।

    शरीरक्रिया विशेषज्ञों के अनुसार गॉन्-ऐड्स अर्थात जनन ग्रंथियाँ जननेंद्रिय हलचलों की क्षमता को तथा प्रजननशक्ति को नियंत्रित करती हैं। पुरुष यौवन और नारी यौवन का, विशेषतः प्रजनन संबंधी यौवन का इसी ग्रंथि से संबंध रहता है।     

     वृद्धावस्था में आमतौर से शरीर बहुत शिथिल हो जाता है और इंद्रियाँ जवाब दे जाती हैं, फिर भी कई बार यह आश्चर्य देखा गया है कि शताधिक आयु वाले व्यक्ति भी नवयुवकों की तरह संतानोत्पत्ति- प्रक्रिया में सफल रहते हैं। यह गॉन् ऐड्स ग्रंथियों के सशक्त बने रहने और समुचित यौन हॉर्मोन स्रवित होते रहने का ही परिणाम है। 

     इस हॉर्मोन की कमी के क्या दुष्परिणाम परिलक्षित होते हैं, इस संदर्भ में प्रख्यात मनःशास्त्री एडलर ने गहन अध्ययन-अनुसंधान किया है। अपने शोध-निष्कर्ष में उनने बताया है कि बाहर से अतीव आकर्षक और कमनीय दिखाई देने वाली कितनी ही नारियाँ कामशक्ति से सर्वथा रहित पाई जाती हैं। उनमें न तो नारी सुलभ प्रवृत्ति होती है और न ही उमंग। इसी तरह कितने ही युवकों की शारीरिक स्थिति सामान्य होती है।

      यौवन और उमंग से भरपूर भी दिखाई देते हैं, पर आंतरिक रूप से वे वस्तुतः नपुंसक पाए जाते हैं। कारण खोजने पर सेक्स हॉर्मोन का अभाव ही पाया जाता है। इसके विपरीत उन्हें ऐसे नर-नारी भी मिले, जो अल्पवयस्क अथवा वयोवृद्ध होते हुए भी कामोद्वेग से पीड़ित रहते थे।

    विशेषज्ञों का कहना है कि दांपत्य जीवन का तालमेल बैठाने में, उनके बीच संतोष असंतोष रखने में हॉर्मोन स्थिति की बहुत बड़ी भूमिका होती है। देखा गया है कि नर हॉर्मोन के टीके लगा देने पर मुरगी की प्रकृति में भारी अंतर हो जाता है। वह बाँग लगाने लगती है, लड़ती है और अकड़कर चलती है।

      इसी तरह नर जैसे अन्य आचरण भी करने लगती है। गौरैया चिड़ियाएँ यों तो शांत प्रकृति की होती हैं। इनमें उछल-कूद प्रायः नर चिड़िया ही ज्यादा करती हैं, पर यदि मादा गौरैया के शरीर में नर हॉर्मोन प्रवेश करा दिया जाए तो उसे काँपते स्वर में चीख-पुकार करते देखा जा सकता है। इस हॉर्मोन के प्रभाव से मछलियाँ लड़ाकू हो जाती हैं तथा उन्हें मदोन्मत्त जैसी स्थिति में देखा जा सकता है। अन्य सारा शरीर अपने ढंग से सही रूप में काम करता रहे, पर यदि गॉन्-ऐड्स ग्रंथियों का स्राव न्यून हो तो यौवन अंग ही विकसित न होंगे और यदि किसी प्रकार विकसित हो भी जाएँ तो उनमें वासना का उभार नहीं होगा, न कामेच्छा जाग्रत होगी, न उस क्रिया में रुचि होगी, फिर संतानोत्पादन तो होगा ही कैसे !

    सुप्रसिद्ध विज्ञानवेत्ता डॉक्टर क्रुकशेक ने अंतःस्रावी ग्रंथियों को जादुई ग्रंथियाँ कहा है। उनके अनुसार व्यक्ति का स्तर एवं व्यक्तित्व इन स्रावों के क्रिया-कलापों का निरीक्षण करके ही जाना जा सकता है। 

     शरीर की आकृति ही नहीं, उसकी प्रकृति का निर्धारण भी इन हॉर्मोन रसायनों द्वारा ही होता है। इन सभी की नियामक सत्ता जहाँ विराजमान है, उन्हें ‘मास्टर ग्लैंड्स’ कहा गया है। इनमें मुख्य हैं- पीनियल एवं पिट्यूटरी। जिस ग्रंथि को शरीरविज्ञानी पीनियल कहते हैं, उसे पौराणिक वर्णन के अनुसार ‘तृतीय नेत्र’ कहा गया है; जबकि तंत्रशास्त्र और योग विज्ञान उसे ‘ आज्ञा चक्र’ की संज्ञा देते आए हैं। शरीरशास्त्रियों के अनुसार पीनियल ग्रंथि मानवी काया का सबसे छोटा घटक है। 

     यह एक-चौथाई इंच लंबी एवं सौ मिलीग्राम भारी होती है। गरदन और सिर के मिलनबिंदु पर मेरुदंड के ठीक ऊपर स्थित यह ग्रंथि भ्रू-मध्य भाग में मस्तिष्क के तीसरे वेन्ट्रिकल की छत से जुड़ी हुई होती है।

    प्रारंभिक लेटिन अमेरिकी शरीरशास्त्रियों ने भी इसे ‘स्वामी ग्रंथि’ की संज्ञा दी थी। सोलहवीं शताब्दी के फ्रांसीसी दार्शनिक एवं स्नायुविज्ञानी रेने देस्कार्ट्स ने इसे विवेकी आत्मा का निवासस्थान बताया है। 

     वैज्ञानिक द्वय एच०डब्ल्यू०ग्राफ एवं ई० बाल्डविन स्पेन्सर, जो माइक्रोएनाटॉमिस्ट थे, ने स्वतंत्र रूप से पीनियल ग्रंथि पर गंभीरतापूर्वक शोध किया। इनके शोध-निष्कर्षों ने यह प्रमाणित किया कि यह ग्रंथि वातावरण के प्रकाश से सीधे और बाह्य चक्षु से स्नायुमार्ग द्वारा दोनों ही तरह से प्रतिक्रिया करती है। 

     यह निष्कर्ष अध्यात्मवेत्ताओं की इस घोषणा से साम्य रखता है कि पीनियल ग्लैंड ही तृतीय नेत्र है। कुछ वर्षों पूर्व ही मेलेटोनिन एवं सिरोटोनिन नामक हॉर्मोन्स पीनियल ग्लैंड से पृथक किए गए हैं। इन स्रावों के गुणों व कार्यों के संबंध में किया गया अनुसंधान स्थूलशरीर की रहस्यमय परतों के संबंध में कई तथ्य उजागर करता है। 

    योगविद्याविशारदों का कहना है कि कुंडलिनी योग और कुछ नहीं, पीनियल ग्लैंड को सक्रिय कर हठधर्मी अंतःस्रावी ग्रंथि-प्रणाली पर नियंत्रण बनाए रखने का विज्ञान है। यह अंतःस्रावी ग्रंथियों के रसस्राव में गंभीर परिवर्तन करता है तथा मस्तिष्कीय कोशिकाओं में सिरोटोनिन नामक रसायन के स्तर को कम करता है।

     वयःसंधि के प्रारंभ अर्थात किशोरावस्था से युवावस्था में प्रवेश तथा यौनपक्ष के आगमन से हमारा ध्यान दीर्घकार्यकारी पीनियल ग्रंथि से हट जाता है और इस तरह यह धीरे-धीरे कार्य करना बंद कर देती है। उस संधिकाल में मनुष्य के लिए संतानोत्पादन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य बन जाता है। इस तरह एक युवा व्यक्ति के लिए प्रकृति ने जो द्वार चेतना के उच्चस्तरीय विकास के लिए खोला था, वह बंद हो जाता है। इतने पर भी उस दिशा में विकास की संभावनाएँ वह खोल जाता है। 

     अनंत सामर्थ्य से भरी हैं हमारी हॉर्मोन ग्रंथियाँ, जिनकी कुछ नन्हीं-नन्हीं बूँदें हमारा कायाकल्प कर देती हैं या हमारा आध्यात्मिक विकास संभव बना देती हैं। है न विलक्षण इनका रसायनशास्त्र!

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