*यूनियन कार्बाइड का ज़हरीला कचरा इंदौर के माथे पर, अक्षम सरकार और निकम्मी बीजेपी ज़हर को अमृत बताने में लगी*
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नियन कार्बाइड का ज़हरीला कचरा आख़िर इंदौर से 20 किलोमीटर दूर धार जिले के पीथमपुर पहुँच गया है। कड़ी सुरक्षा और निगरानी के बीच जिस प्राणघातक कचरे को निपटान के लिए मालवा की धरती पर भेजा गया है, उस कचरे के निपटान की क़ीमत पूरा मालवा कई पीढ़ियों तक कई तरीक़ों से चुकाता रहेगा। यह धीमा ज़हर कितनी तबाही मचायेगा, उसकी कल्पना तक अभी नहीं की जा सकती है।
*कुछ ज़रूरी तथ्य समझिए-*
यूनियन कार्बाइड का ज़हरीला कचरा 40 वर्षों से भोपाल में पड़ा है। गैस त्रासदी के 40 वर्ष बाद भी भोपाल के लोग इसकी वजह से विभिन्न बीमारियों का शिकार हो रहे हैं।
वर्ष 2007 में यूनियन कार्बाइड के ज़हरीले कचरे को निपटान के लिये गुजरात के भरुच में स्थित इन्सिनरेटर भेजने का निर्णय हुआ था, लेकिन गुजरात सरकार ने यह कचरा जलाने से मना कर दिया था।
वर्ष 2011 में यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे को महाराष्ट्र के नागपुर स्थित रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) में भेजने की योजना बनी लेकर गुजरात की ही तरह नागपुर के DRDO ने भी इस कचरे को जलाने से इंकार कर दिया था।
इंदौर के समीप पीथमपुर के जिस ट्रीटमेंट स्टोरेज डिस्पोजल फ़ैसिलिटी में इस कचरे को जलाया जायेगा, वहाँ के इन्सिनरेटर में पहले क़रीब 6 परीक्षण फेल हो चुके हैं।
दैनिक भास्कर की टीम ने पीथमपुर में ट्रायल के तौर पर 10 टन कचरा जलाने के बाद इन्सिनरेटर के आसपास के 8 किलोमीटर दायरे की मिट्टी और भूमिगत जल की जाँच कराई थी, तब 8 किलोमीटर के दायरे में कई ख़तरनाक विषैले तत्व मिले थे।
दैनिक भास्कर इंदौर संस्करण ने अपनी संपादकीय में लिखा है कि धार जिला प्रशासन की अनावरी रिपोर्ट के मुताबिक़ 10 टन कचरा जलाने के बाद आस-पास के इलाक़ों में 98% तक उपज कम हो गई है।
समझिए ! जब केवल 10 टन कचरा जलाने से मिट्टी और जल में विषैले तत्व आ गये, कृषि उपज 98% तक कम हो गई तो अब 337 मैट्रिक टन कचरे की बात है। क्या आप इसकी भयावहता का अनुमान लगा पा रहे हैं ?
एक्सपर्ट्स बता रहे हैं कि यह ज़हरीला कचरा रिसाव के ज़रिये पेयजल की आपूर्ति करने वाले तालाबों तक पहुँचेगा और उसके बाद इंदौर समेत आसपास के घरों में यह ज़हरीला पानी पीने के उपयोग में आयेगा।
सरकार की लापरवाही से कितने लोग गंभीर रूप से बीमार होंगे, कितना ज़हर मानव शरीर मे पहुचेगा, कृषि भूमि उपजाऊ नहीं बचेगी तो किसानों का क्या होगा, इन सबका अनुमान तक मध्यप्रदेश सरकार नहीं लगा पा रही है।
इंदौर समेत पूरे मालवा की जनता को बड़ी बेशर्मी से बीजेपी सरकार ने संकट में झोंक दिया गया है। महाराष्ट्र और गुजरात सरकार ने प्रदेश की जनता की चिंता करते हुए कचरा जलाने से मना कर दिया, लेकिन मध्यप्रदेश और ख़ासतौर से मालवा की जनता की क़िस्मत उतनी अच्छी नहीं निकली।
सरकार अदालत के निर्णय का हवाला दे रही है, जबकि सबको पता है कि मोदी राज में अदालतें कितने स्वतंत्र फ़ैसले ले पा रही हैं। अधिकांश मामलों में सरकार जैसा चाहती है, वैसे ही निर्णय सामने आते हैं।
बीजेपी नेता कह रहे हैं कि अब इस कचरे में ज़हर नहीं है। आप खुद सोचिये जब जहर खत्म ही हो गया है तो इस कचरे के निष्पादन पर 125 करोड़ किसलिए खर्च किये जा रहे हैं ? अगर अपशिष्ट जहरीला नहीं है तो इसका निस्तारण भोपाल में ही क्यों नहीं कर दिया गया।
पूर्व में यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे को पीथमपुर में जलाने के दौरान, डाइऑक्सिन और फ्यूरन्स जैसे घातक रसायनों का स्तर अनुमेय सीमा से 68 से 267 गुना अधिक था।
डाइऑक्सिन और फ्यूरन्स कैंसर का कारण बन सकते हैं। इसकी अधिकता हार्मोन असंतुलन, प्रजनन समस्याएं देने के साथ साथ मानव शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता और प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर देगा।
*देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर को सबसे घातक और ज़हरीले कचरे का तोहफ़ा देकर बीजेपी ने अपनी विषाक्त मानसिकता का परिचय दे दिया है। जनता ने जिन बीजेपी नेताओं को भर भर कर समर्थन और सम्मान दिया है, वो आज अपनी सरकार के साथ खड़े होकर जनता को बरगलाने में लगे हैं। हम भगवान से प्रार्थना करते हैं कि सभी शंका-कुशंका ग़लत साबित हों, यह कचरा मालवा के लिए वरदान बन जाये, लेकिन यदि 0.0000001% भी शंका-कुशंका और ख़तरे का संदेह सही साबित हो गया तो पूरे मालवा की अगली कई पीढ़ियाँ हमारे निकम्मे नेताओं के मौन की क़ीमत जीवन भर कष्ट भोगकर चुकायेगी।*