Site icon अग्नि आलोक

अयाचित उद्घोष

Share

रामकिशोर मेहता

पृथ्वी पर देश है
देश में शहर है
शहर में घर है
घर में पिंजरा है
पिंजरे में कैद है तोता
बंद है दरवाजा पिंजरे का।
उड़ने की
किसी भी संभावना को
खत्म करने के लिए
कतर दिए गए हैं
तोते के पर
और
बिठा दिया गया है
बिल्ली को पहरे पर।
पूर्व निरधारित कर दिया गया है
तोते का काम
भजना है राम राम
उसके बाद ही मिलती है
तोते को रोटी।
रोटी की एक फितरत है
वह खाली पेट की जरूरत है
और
भरे पेट का नशा।
नशे में
उड़ान भरता
परकैच तोता
विभ्रम में है।
देखता क्या है
कि विराट होता जा रहा है
कृष्ण के खुले मुख की तरह
पिंजरे का आकार
जिसमें
समा गया है घर
फिर शहर
उसके बाद देश भी।
आगे देखता है
कि घर का मालिक
तोता है
नगर का कोतवाल
और
देश का लोकपाल भी
तोता है
यंत्री , तंत्री, मंत्री और संत्री की
आत्माएं तोतों में हैं
और तोते
समाते जा रहे हैं
काल के गाल में
राम नाम के
सत्य होने का
उद्घोष. करते हुए।

Exit mobile version