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नाम बदलने की कोशिश पर बवाल

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जोसफ बर्नाड
तमिलनाडु को तमिलगम कहने भर से प्रदेश की राजनीति में बवाल मच गया है। यह मुद्दा अब राज्यपाल आरएन रवि बनाम DMK की अगुवाई वाली राज्य सरकार का न होकर पूरे राज्य का सियासी मुद्दा बन गया है। अब इसमें अस्मिता से लेकर दिल्ली बनाम दक्षिण का मुद्दा भी तलाशा जाने लगा है। DMK आरोप लगाने लगी कि राज्यपाल बीजेपी और आरएसएस का अजेंडा प्रदेश में लागू करना चाहते हैं। यह बवाल ऐसे समय में उठा है जब बीजेपी दक्षिण भारत खासकर तमिलनाडु में पांव जमाने की पूरी कोशिश कर रही है। शायद यही वजह है कि बीजेपी इस मामले में फूंक-फूंक कर कदम आगे रख रही है और हड़बड़ी में कोई भी फैसला नहीं लेना चाहती है। लेकिन DMK इस मामले में खुद के लिए अवसर देख रही है। दिलचस्प बात है कि यह ऐसा मुद्दा है जिसे कभी DMK संस्थापक करुणानिधि ने भी सपोर्ट किया था।

नाम बदलने की कोशिश पर बवाल
राजनीतिक विश्लेषक एसके सुरेश का कहना है कि यह सिर्फ राजनीतिक दाव-पेच की लड़ाई है। यह एक सोची-समझी राजनीति लगती है। राज्यपाल के अभिभाषण से अंशों को निकालने की राजनीति पीछे चली गई, मगर तमिलनाडु का नाम बदलने पर राजनीति गरमा गई। इससे पता चलता है कि तमिलनाडु में राजनीति की लड़ाई में किस तरह के दाव-पेच इस्तेमाल में लाए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि तमिलनाडु को तमिलगम कहने के पीछे राज्यपाल की मंशा को समझा जा सकता है। वह यूं ही इस मसले को नहीं उछाल रहे। राज्यपाल आरएन रवि की यह बात काफी कुछ दास्तान खुद ही बयान करती है। राज्यपाल ने कहा कि तमिलनाडु की सोच कुछ अलग है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जब भी कोई चीज पूरे देश में लागू होती है तो तमिलनाडु का जवाब होता है ना। तमिलनाडु की यह आदत सी बन गई है। तमिलनाडु को यह सोच बदलनी होगी। सच की जीत होनी चाहिए। तमिलनाडु के लिए तमिलगम ही उपयुक्त शब्द है।

उनके इस बयान के पीछे राजनीतिक निहितार्थ माने गए। माना गया कि कहीं न कहीं बीजेपी की भी उनकी बातों से सहमति है। तर्क दिया कि इस तरह की मांग पहले भी उठती रही है और प्रदेश के कई नेता भी ऐसी मांग कर चुके हैं। तो फिर इस बार इतना बवाल क्यों हो रहा है? DMK ने आरोप लगाया कि बीजेपी को द्रविड़ियन संस्कृति से दिक्कत है। दरअसल तमिलनाडु की राजनीति पिछले कई सालों से इसी मुद्दे के इर्द-गिर्द घूमती रही है, जिसमें राष्ट्रीय राजनीति का हस्तक्षेप नहीं के बराबर रहा। बीजेपी को लगता है कि इसमें राष्ट्रवाद का जब तक हस्तक्षेप नहीं होगा, तब तक इस पारंपरिक राजनीति की दिशा को मोड़ना संभव नहीं है। ऐसे में मौजूदा विवाद को DMK ने बीजेपी की उसी पुरानी कोशिश के रूप में ले रहा है। इसी क्रम में DMK ने बेहद आक्रामक पलटवार करने की कोशिश की।

तमिलनाडु का मतलब है तमिलों का प्रदेश। तमिलगम का अर्थ है तमिल लोगों का निवास। 1938 में पहली बार द्रविड़ आंदोलन के जनक पेरियार रामास्वामी ने तमिलगम शब्द का इस्तेमाल किया था। DMK दरअसल शुरू में तमिलों के लिए अलग राष्ट्र की मांग करती रही है। ऐसे में उसने मौन रूप से इस शब्द का समर्थन किया। मगर राज्य का नाम तमिलनाडु रखे जाने के बाद उसने अलग राष्ट्र की मांग छोड़ दी। अब इसी नाम को उठाकर राज्यपाल आरएन रवि ने DMK पर राष्ट्रवाद को लेकर कटाक्ष किया है। इसको DMK बर्दाश्त नहीं कर पा रही है। दरअसल तमिलगम के जरिए DMK पर एक तीर से कई निशाने साधे गए हैं। DMK दलितों और गरीबों की पार्टी होने का दावा करती है, मगर तमिलगम शब्द इस बात की याद दिलाता है कि DMK तो भारत से अलग होना चाहती थी। वह तो अलग राष्ट्र की मांग की समर्थक थी। इसके अलावा DMK सिर्फ तमिलों को ही तमिलवासी मानती है, अन्य प्रदेशों के लोगों के लिए उसके दिल में जगह नहीं है। हाल ही में जब तमिलनाडु के सुपर स्टार रजनीकांत के प्रदेश राजनीति में आने की सुगबुगाहट सुनाई पड़ी थी तब DMK ने तमिल फॉर तमिलियन का नारा दिया था।

बीजेपी की बदली हुई रणनीति
ऐसे में DMK को लग रहा है कि अगर इस मामले को इसी तरह से छोड़ दिया तो उत्तर भारत की तरह बीजेपी तमिलनाडु में राष्ट्रवाद की राजनीति शुरू कर देगी, क्योंकि हिंदुत्व की राजनीति से उसको तमिलनाडु में ज्यादा फायदा नहीं हो रहा है। राजनीतिक विश्लेषक एम. वेंकटेश कहते हैं कि हिंदुत्व की राजनीति में अम्मा यानी जयललिता की पार्टी AIADMK के पलानीस्वामी और पन्नीरसेल्वम खुलकर बीजेपी का साथ नहीं दे रहे हैं। तमिलनाडु के विधानसभा चुनाव में हार के बाद AIADMK नेता पन्नीरसेल्वम ने खुलकर कहा था कि अगर चुनाव के बाद बीजेपी से गठबंधन करने की रणनीति पर चलते, तो हम चुनाव जीत सकते थे। चुनाव पूर्व बीजेपी से गठबंधन से नुकसान हुआ। अल्पसंख्यकों और दलितों के वोट हमें नहीं पड़े। उस समय बीजेपी ने पन्नीरसेल्वम की बात को नजरअंदाज किया था, मगर अब उसे लग रहा है कि उत्तर भारत की राजनीति दक्षिण में नहीं चल सकती है। यही कारण है कि अब बीजेपी हिंदुत्व की राजनीति के साथ राष्ट्रवाद की राजनीति को यहां हवा दे रही है। इस पर AIADMK नेता पलानीस्वामी और पन्नीरसेल्वम उसके साथ आ सकते हैं। वैसे बीजेपी इस बात का संकेत दे चुकी है कि तमिलनाडु विधानसभा का अगला चुनाव DMK और बीजेपी तथा उसके सहयोगी पार्टियों के बीच होगा। यानी AIADMK की भूमिका सहयोगी पार्टी की होगी। ऐसे में यह मुद्दा आगे भी जारी रहेगा।

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