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उर्दू अखबारों ने राहुल को ‘कारण बताओ नोटिस’ की निंदा की

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‘जब सत्तारूढ़ दल को चोट पहुंचती है, तो EC शेर बन जाता है’

रोजनामा ​​राष्ट्रीय सहारा ने अपने संपादकीय में लिखा कि चुनाव आयोग (EC) तब “शेर” बन जाता है जब विपक्षी नेताओं की टिप्पणियां सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी को परेशान करती हैं. बता दें कि चुनाव आयोग ने प्रधानमंत्री मोदी पर की गई टिप्पणियों के लिए राहुल गांधी को ‘कारण बताओ नोटिस’ जारी किया है, जिसका जिक्र इस संपादकीय में किया जा रहा है.

इसमें आगे कहा गया, “यह स्थिति दर्शाती है कि चुनाव आयोग चुनावी प्रक्रिया के दौरान निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने की अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी को पूरा करने में पूरी तरह विफल रहा है. सत्तारूढ़ दल के नेताओं के भाषण उसके (EC) लिए लोरी की तरह काम करते हैं, जिसे वह सुनता है और उपेक्षा की नींद में सो जाता है. जब शासक वर्ग विपक्ष के किसी बयान से आहत होता है, तो चुनाव आयोग शेर की तरह साहसी होकर आगे आता है और जवाबदेही की मांग करने के अपने संवैधानिक कर्तव्य को पूरा करता है.”

संपादकीय में यह भी स्पष्ट किया गया है कि चुनाव आयोग की पहल से किसी को नाराज नहीं होना चाहिए, लेकिन असली मुद्दा यह है कि केवल विपक्षी नेताओं की टिप्पणियों को आदर्श आचार संहिता (MCC) के उल्लंघन के रूप में देखा जाता है.

इसमें पूछा गया, “चुनाव आयोग किस प्रकार के उपकरण का उपयोग करता है कि वह शक्तिशाली बीजेपी नेताओं द्वारा किए गए अपमानजनक या आक्रामक टिप्पणियों/आरोपों को सुनने या देखने में असमर्थ है.”

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव और राहुल गांधी को कारण बताओ नोटिस के अलावा, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ‘हलाल-प्रमाणित’ खाद्य उत्पादों पर प्रतिबंध, एकदिवसीय विश्व कप फाइनल में ऑस्ट्रेलिया से भारत की हार और उत्तरकाशी के सुरंग में फंसे 41 मजदूरों की दुर्दशा पिछले सप्ताह उर्दू प्रेस के पहले और संपादकीय पन्नों पर छाया रहा. 

20 नवंबर को द सियासत डेली के एक संपादकीय में तेलंगाना के मतदाताओं से पूछा गया, जहां 30 नवंबर को मतदान होने हैं, कि क्या मुद्रास्फीति और रोजगार जैसे मुद्दे उनके लिए मायने रखते हैं. संपादकीय में बीजेपी द्वारा तेलंगाना के मतदाताओं से किए गए वादों – जिसमें अयोध्या में राम मंदिर की मुफ्त यात्रा और समान नागरिक संहिता लागू करने जैसे मुद्दें हैं – की भी आलोचना की गई है.

संपादकीय में कहा गया, “इस तरह की नकारात्मक सोच और राजनीति से मतदाताओं को सतर्क और सूचित रहने की जरूरत है. नकारात्मक सोच वाले लोगों को वोट (शक्ति) के माध्यम से शिक्षित करना जरूरी है.”

22 नवंबर को इंकलाब के एक संपादकीय में बीजेपी के विरोध में विपक्षी दलों के INDIA गठबंधन की प्रभावशीलता पर सवाल उठाया गया. इसमें कहा गया है कि हालांकि घटक दलों के बीच नाराजगी की खबरें सामने आती रहती हैं, लेकिन मुंबई में हुई तीन बैठकों में से आखिरी बैठक के बाद से गठबंधन को मजबूत करने के प्रयासों में बहुत कम प्रगति हुई है.

उसी दिन, द सियासत डेली के एक संपादकीय में कहा गया कि राम मंदिर में मुफ्त दर्शन का बीजेपी का चुनावी वादा राजनीतिक लाभ के लिए धार्मिक भावनाओं से खेलना है. संपादकीय में कहा गया है, “मंदिर दौरों को बुनियादी मुद्दों के समाधान से जोड़ने का यह प्रयास लोगों की मूल चिंताओं का समाधान नहीं करेगा.” संपादकीय में अपनी नीतियों का प्रदर्शन नहीं करने के लिए बीजेपी की आलोचना की गई है.

24 नवंबर को द सियासत डेली के एक अन्य संपादकीय में कहा गया कि राजस्थान में मतदाताओं के पास ऐसे नेताओं को चुनने का अवसर है जो भावनात्मक या विभाजनकारी नारों का उपयोग करके वोट मांगने के बजाय उनके बुनियादी मुद्दों को संबोधित करते हैं. इसमें कहा गया है कि लोगों को ऐसे नेताओं की जरूरत है जो दूरदर्शी हों और भावुकता या लालच का शिकार हुए बिना दूसरे राज्यों के लिए उदाहरण पेश करें.

‘भारत फाइनल हारा लेकिन दिल जीता’

आईसीसी वनडे पुरुष विश्व कप के फाइनल मैच में ऑस्ट्रेलिया की जीत 20 नवंबर को द इंकलाब में मेन स्टोरी थी. उर्दू दैनिक ने यह भी बताया कि कैसे “फ्री फिलिस्तीन” टी-शर्ट पहने एक लड़के ने फाइनल मैच के दौरान सुरक्षा घेरा तोड़ दिया और अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में विराट कोहली को गले लगाने की कोशिश की, जो उस समय स्ट्राइक पर खेल रहे थे.

21 नवंबर को, रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा ने “टीम इंडिया: मैच हारी, दिल जीता” शीर्षक से एक संपादकीय छापा, जिसमें बताया गया कि कैसे भारत ने एक प्रमुख खेल आयोजन की सफलतापूर्वक मेजबानी की.

संपादकीय में कहा गया, “उम्मीद है कि इससे भविष्य में भारत को फायदा होगा. हमारे देश और नए शहरों में अन्य बड़े टूर्नामेंट भी आयोजित किए जाएंगे, जिससे उन शहरों का विकास होगा और दुनिया उनसे बेहतर परिचित होगी.”

‘हलाल-प्रमाणित’ खाद्य उत्पादों पर प्रतिबंध

यूपी सरकार द्वारा ‘हलाल-प्रमाणित’ उत्पादों के उत्पादन, भंडारण, वितरण और बिक्री पर प्रतिबंध भी उर्दू दैनिक समाचार पत्रों के पहले पन्ने पर छाया रहा.

20 नवंबर को, इंकलाब ने बताया कि कैसे समाजवादी पार्टी (SP) ने योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के ‘हलाल-प्रमाणित’ खाद्य उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने के फैसले को “हिंदू-मुस्लिम राजनीति” का उदाहरण बताया है.

दो दिन बाद, यूपी खाद्य सुरक्षा और औषधि प्रशासन (एफएसडीए) द्वारा लखनऊ, गाजियाबाद और हरदोई सहित अन्य स्थानों पर छापे मारे गए, जिसका उल्लेख उर्दू दैनिक के पहले पन्ने पर इस चेतावनी के साथ किया गया कि कोई ‘हलाल-प्रमाणित’ खाद्य उत्पाद नहीं होगा. 

‘प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखना जरूरी’

उत्तरकाशी में निर्माणाधीन सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को बचाने के लिए चल रहा ऑपरेशन भी उर्दू दैनिक समाचार पत्रों के पहले पन्ने पर प्रमुखता से छापा गया. 

21 नवंबर को रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा ने बताया कि उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने सिल्कयारा सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों के बचाव की स्थिति पर केंद्र और राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी थी. अगले दिन इसने बताया कि ‘कैसे अधिकारियों ने श्रमिकों को छह इंच के पाइप के माध्यम से भोजन और पानी उपलब्ध कराया’. 

22 नवंबर को, उर्दू दैनिक ने एक संपादकीय भी प्रकाशित किया कि कैसे होटल, रिसॉर्ट्स और वाणिज्यिक परिसरों के विकास ने पहाड़ी क्षेत्रों में प्राकृतिक परिदृश्य को तेजी से बदल दिया है, जिसके नकारात्मक परिणाम अब हमें देखने को मिल रहे हैं. 

इसमें कहा गया है कि निर्माणाधीन सुरंग के एक हिस्से का ढहना “विकास के नाम पर प्रकृति के साथ मनुष्य के व्यवहार” का परिणाम है.

संपादकीय में लिखा है, “हालांकि कोई विकास की जरूरत से इनकार नहीं कर सकता, लेकिन मानव का अस्तित्व प्रकृति के साथ संतुलन को बनाए रखने पर निर्भर करता है.”

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