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उर्वसिया मस्तिष्क की विकृति और यथार्थ

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पवन कुमार

धार्मिक कथाएं कहती हैं-
ऋषि ने बहुत साधना की और साधना के अंत में अप्सराएं आ गईं आकाश से।
उर्वशी आ गई और उसके चारों तरफ नाचने लगी।

पोरनोग्रेफी नई नहीं है।
ऋषि— मुनियों को उसका अनुभव होता रहा है।
वह सब तरह की अश्लील भाव— भंगिमाएं करने लगी ऋषि — मुनियों के पास।

किस अप्सरा को पड़ी है ऋषि— मुनि के पीछे पड़ने की!
ऋषि— मुनियों के पास, बेचारों के पास है भी क्या, कि अप्सराएं उनको जंगल में तलाश ने जाएं और नग्न होकर उनके आस— पास नाचे!

सच तो यह है कि ऋषि — मुनि अगर अप्सराओं के घर भी दरवाजे पर जाकर खड़े रहते तो क्यू में उनको जगह न मिलती।
वहां पहले से ही लोग राजा — महाराजा वहां खड़े होते। ऋषि — मुनियों को कौन घुसने देता?
मगर कहानियां कहती हैं कि ऋषि— मुनि अपने जंगल में बैठे हैं — — आंख बंद किए, शरीर को जला कर, गला कर, भूखे— प्यासे, व्रत — उपवास किए हुए — और अप्सराएं उनकी तलाश में आती हैं।

ये अप्सराएं मानसिक हैं।
ये उनके मन की दबी हुई वासनाएं हैं।
ये कहीं हैं नहीं।
ये बाहर नहीं है।
यह प्रक्षेपण है।
यह स्वप्न है।
उन्होंने इतनी बुरी तरह से वासना को दबाया है कि वासना दबते— दबते इतनी प्रगाढ़ हो गई है कि वे खुली आंख सपने देखने लगे हैं, और कुछ नहीं।
हैल्यूसिनेशन है, संभ्रम है।

मनोवैज्ञानिक कहते हैं-
किसी आदमी को ज्यादा दिन तक भूखा रखा जाए तो उसे भोजन दिखाई पड़ने लगता है।
और किसी आदमी को वासना से बहुत दिन तक दूर रखा जाए तो उसकी वासना का जो भी विषय हो वह दिखाई पड़ने लगता है।
भ्रम पैदा होने लगता है।
बाहर तो नहीं है, वह भीतर से ही बाहर प्रक्षेपित कर लेता है।

ये ऋषि— मुनियों के भीतर से आई हुई घटनाएं हैं, बाहर से इनका कोई संबंध नहीं है।
कोई इंद्र नहीं भेज रहा है।
कहीं कोई इंद्र नहीं है और न कहीं उर्वशी है।
सब इंद्र और सब उर्वशिया मनुष्य के मन के भीतर का जाल हैं।

तो अगर कभी यह सोचते हो कि जंगल में बैठने से उर्वशी आएगी, भूल से मत जाना, कोई उर्वशी नहीं आती।
नहीं तो कई ऋषि—मुनि इसी में हो गए हों, बैठे हैं जंगल में जाकर कि अब उर्वशी आती होगी, अब उर्वशी आती होगी!
उर्वशी आप पैदा करते हो, दमन से पैदा होती है।

यह विकृति है। इस स्थिति को मानसिक विकार कहा गया है।
यह कोई उपलब्धि नहीं है। यह विक्षिप्तता है।
यह है वासना की रुग्ण दशा।

भीतर जो स्वाभाविक है, उसको सहज स्वीकार करो। और सहज स्वीकार से क्रांति घटती है।
पार जाने का उपाय ही यही है कि उसका सहज स्वीकार कर लो।
दबाना मत, अन्यथा कभी पार न जाओगे। उर्वशियाँ आती ही रहेंगी।
(चेतना विकास मिशन)

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