… (भाग-8)
प्रोफेसर राजकुमार जैन
12 नवंबर 1942 को गिरफ्तारी वाले दिन, कांग्रेस रेडियो से जुड़े लोगों ने एक बैठक में इस बात पर चर्चा कि, अगर हम लोग गिरफ्तार हो जाते हैं, तो क्या करें? शहर के कई रेडियो डीलरों को पुलिस वालों ने एक हफ्ते पहले अपनी गिरफ्त में लेकर जानकारी में पाया कि बाबू भाई तथा विट्ठल भाई कांग्रेस रेडियो चलाने वालों मे से खास हैं। बैठक में तय किया गया कि चाहे कुछ भी हो जाए, कोई सूचना हम पुलिस को नही देंगे। 12 नवंबर को दिन में जब पुलिस ने बाबू भाई के दफ्तर पर छापा मारा तो उषा मेहता सहित कई लोग काम कर रहे थे। ज्योंहि उन्हें पता चला की पुलिस आ गई है, तो उषा मेहता बाबू भाई के दफ्तर में दाखिल हुई और बहुत ही मासूमियत से कहा भाई, मैं डॉक्टर (डॉक्टर लोहिया) को क्या कहूं? मां (ट्रांसमीटर) की सेहत के बारे में, तो बाबू भाई ने कहा कि उनसे कहना कि आज मैं यह जानते हुए भी की मां बहुत बीमार है, मैं कोई निर्णय नहीं ले सकता। डॉक्टर खुद फैसला कर ले कि क्या पुराने नुस्खे के मुताबिक दवाई दें या बदल ले, (दरअसल इशारों में की गई इस बात का मतलब था, कि हालात खराब है, ऐसे में आज रेडियो चलाना चाहिए या नहीं, यह फैसला खुद डॉक्टर लोहिया कर ले)
पुलिस ने जब बाबू भाई से, उषा मेहता के बारे में पूछा कि यह लड़की कौन है? तब उन्होंने कहा ये मेरे पड़ोसी की बेटी है। इसकी मां बीमार है, क्योंकि इसके घर में कोई पुरुष सदस्य नहीं है, इसलिए मुझे ही यह जिम्मेदारी उठानी पड़ रही है। पुलिस अफसर इस जवाब से संतुष्ट हो गए, और उन्होंने उषा को जाने दिया। इसी बीच में खबर आई की रेडियो का एक तकनीशियन गिरफ्तार हो चुका है। शुरू में सोचा गया कि आज रात को कोई प्रोग्राम प्रसारित नहीं करेंगे, परंतु दूसरे पल ही हमें (उषा) लगा कि स्थान बदलकर दूसरे ट्रांसमीटर से रात में ही प्रोग्राम को प्रसारित करना चाहिए। एक अनुशासित सिपाही के रूप में सर पर मंडराते खतरे को देखकर भी उसका सामना करना चाहिए। रिकॉर्डिंग स्टेशन से इस पक्के इरादे के साथ कि, तयशुदा कार्यक्रम के मुताबिक प्रोग्राम करना है। उषा मेहता अपने घर गई। उन्होंने अपनी मां और भाइयों को खबर दी कि आज रात को रेडियो स्टेशन पर छापा पड़ सकता है, दोनों भाई जनक भाई तथा चंद्रकांत भाई भी उस मुहिम में लगे हुए थे। बकौल उषा मेहता के, मैं प्रसारण स्टेशन जा रही थी, सदा की तरह चंद्रकांत भाई झवेरी मेरे साथ चले। वे खतरे से पूरी तरह वाकिफ थे। मेरे बार-बार मना करने के बावजूद कि वह ऐसा ना करें, तो उन्होंने कहा ‘ मैं तुम्हें ऐसे कैसे शेर के जबड़े में जाने की इजाजत दे सकता हूं! ‘ मुझ पर (उषा ) उनके कथन का गहरा भावनात्मक असर पड़ा। मैंने उनसे (चंद्रकांत झावेरी) से कहा वह अंदर दाखिल होने वाले दरवाजे के पास बाहर खड़े रहे, तथा किसी भी खतरे को देखते हुए तीन बार दरवाजे पर दस्तक दें। उसके बाद ,मै ब्रॉडकास्टिंग कमरे में दाखिल हो गई। ट्रांसमीटर को चलाकर पूरे प्रोग्राम को प्रसारित कर दिया। आखिर मे जब मैंने’ वंदे मातरम’ रिकॉर्ड बजाना शुरू किया, दरवाजे पर जोरदार दस्तक सुनाई दी, मैंने सोचा कि चंद्रकांत भाई मुझे संकेत दे रहे हैं, पर उनकी जगह मैंने देखा की पुलिस की बड़ी बटालियन, डिप्टी कमिश्नर आफ पुलिस जिनके चेहरे पर विजेता की मुस्कान साफ झलक रही थी, दाखिल हुए। हमारी गिरफ्तारी की कागजी खानापूरी में 3:30 घंटे लगे। जब मैं और चंद्रकांत भाई आखिर में कमरे से निकले तो हमने देखा हर कदम पर पुलिस के सिपाही खड़े हुए हमारा इंतजार कर रहे थे। मैंने चंद्रकांत भाई को कहा ‘ भाई हम नहीं जानते की क्या हमारा कभी ऐसा शानदार स्वागत, ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ जो आज मिल रहा है, वह कभी दोबारा मिलेगा, वह भी बंदूकधारी पुलिस वालों से। उन्होंने भी मेरी तरह बिना किसी घबराहट से कहा हां, यह हमारे जीवन का एक यादगार दिन है।
जारी है…..।