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उस्ताद अमीर खाँ और इंदौर : एक अनकही आत्मीयता का रिश्ता

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इसलिए कि यह सब कोलकाता से लिखा जा रहा है, तो यह बताना जरूरी है कि अमीर खाँ कोलकाता की काली माँ को बहुत मानते थे और कोलकाता में रहते हुए वे समय निकालकर उनके दर्शन करने भी जरूर जाते थे। इंदौर में वे जूनी इंदौर स्थित शनि गली के शनि मंदिर में भी उपासना के लिए जाया करते थे। इंदौर के ही पंचकुइयां श्मशान के पास संगीत के देवता भगवान भूतेश्वर के दर्शन भी वे नियमित करते थे। एक बार शनि मंदिर में उनका गायन था। गायन के बाद मंदिर के पुजारी ने उन्हें दस रुपए और प्रसाद दिया। अमीर खाँ ने एक रुपया अपनी जेब से निकाला और उन दस रुपए में मिलाकर ग्यारह रुपए शनि मूर्ति को चढ़ा दिए।
एक जमाने के इंदौर के नामी शायर तांबा इंदौरी और बेधड़क इंदौरी उनके निकट के दोस्त रहे। बम्बई बाजार के मुमताज टेलर की दुकान उनकी शाम बिताने का ठिकाना रही। जहाँ वे कलाकारों और शायरों से मिलते और संगीत व शायरी पर दिलचस्प बहसें होती। उनके अन्य ठिकानों में बजाजखाना, पीपली बाजार, सीतलामाता बाजार, सराफा और इंडिया होटल नरसिंह बाजार थे। इंडिया होटल में वे कई घंटों तक बैठे रहते। वे खुद तो चाय कम ही पीते थे, लेकिन हर मिलने वाले को चाय जरूर पिलाते थे। इंदौर में उनके साथ हमेशा मित्र और शिष्यों का हुजूम रहता था। वे इंदौर से बाहर जब भी किसी जलसे में जाते या वहां से वापिस आते थे, तब कई लोग उन्हें रतलाम या खण्डवा तक विदा करने या उन्हें लेने जाते थे। उन्हें अकेले खाना पसंद नहीं था। हालांकि वे खुद बहुत कम खाते थे, लेकिन अपने दोस्तों को भिन्न तरह की पसंदीदा डिश मंगाकर खिलाते थे। हरी सब्जियों को वे अधिक पसंद करते थे। मैथी की भाजी उन्हें बहुत भाती थी। कभी कभी वे खुद अपने हिसाब से मैथी की भाजी बनाया करते थे। भुट्टे का किस्स भी उन्हें खुद बनाने और खाने का शौक था। मटन खाने में उनकी दिलचस्पी बहुत कम थी। बकरीद जैसे मौके पर भी वे बकरे की कुबार्नी नहीं देते थे। लेकिन इतना जरूर करते थे कि एक तंदुरुस्त बकरे की कीमत के बराबर वे गरीबों को खाना जरूर खिलाते थे। बचपन में अमीर खाँ दोस्तों के साथ छत्रीबाग में यदाकदा फुटबॉल खेलते थे और घर पर शतरंज। यह वह दौर था, जब वे सुबह चार बजे उठ जाते थे और आगरा होटल से चाय मंगाकर पीने के बाद सात बजे तक रियाज करते रहते थे। दिन में फुर्सत मिलने पर वे दिल्ली से प्रकाशित उर्दू पत्रिकाएं ‘हुमा’ और ‘शबिस्ता’ पढ़ते रहते थे।
अमीर खाँ के छोटे भाई बशीर खाँ सारंगी वादक थे। अमीर खाँ अपने छोटे भाई, उनकी पत्नी और उनके चार बच्चों को बहुत स्नेह करते थे। बशीर खाँ ने तीन दशक अपनी सेवाएं आकाशवाणी को दी थी। उस जमाने मे कई नामचीन कलाकार अमीर खाँ के घर आया करते थे। उनमें शामता प्रसाद, गौहर बाई, बेगम अख्तर, अल्ला रखां खाँ, थिरकवा खाँ, अमजद अली खाँ और फिल्म अभिनेत्री लीला चिटनीस जैसे कई नाम थे। वे कई कई दिन रुकते थे। तब उनकी दावत के लिए बशीर खाँ की बीबी मुनव्वर आपा खुद अपने हाथों से रोटी बनाया करती थीं। अमीर खाँ अगर इंदौर में हैं, तो उनकी आदत थी कि वे अपने भाई के बच्चों के लिए रोज सुबह टोस्ट और डबल रोटी लाकर दिया करते थे। अमीर खाँ जब भी किसी अन्य शहर के जलसे से वापिस इंदौर आते थे, तो वे अपने रिश्तेदारों और परिचितों को देने के लिए ढेर सारी शालें और लुंगी जरूर लाते थे।
एक मर्तबा उस्ताद रज्जब अली खाँ को अमीर खाँ ने अपने घर खाने की दावत दी। रज्जब अली खाँ मामा कृष्णराव मजूमदार के साथ आए। मामा मजूमदार रज्जब अली खाँ के खास शागिर्दों में थे। अमीर खाँ भी उनके लिए गुरु-भाव रखते थे। दावत के बाद रज्जब अली खाँ बोले कि भाई अमीर, खाना खिलाया है तो गाना भी सुनाना होगा। ताबड़तोड़ महफिल सजी और अमीर खाँ गाने लगे। वे गा जरूर रहे थे, लेकिन उनकी निगाहें रज्जब अली खाँ पर रहती, तो कभी उनके ऊपर दीवार में लगे अपने मरहूम वालिद उस्ताद शाहमीर खाँ के चित्र पर रहती। गाते-गाते वे इतने आत्मलीन हो गए कि उनकी आँखों से आँसू बहने लगे और उनका गला रूंधने लगा। यह सब देखकर रज्जब अली खाँ बोले कि मुझे फख्र है कि आज तूने उस्तादाना महारत और शौहरत हासिल कर ली है। अमीर खाँ जब भी रज्जब अली खाँ से मिलने देवास जाया करते थे, चुपके से उनके तकिए के नीचे सौ-दो सौ रुपए रख आया करते थे।
एक बार वर्ष 1958 में बम्बई के रंगभवन में पंडित भीमसेन जोशी का गाना था। अमीर खाँ भी उन्हें सुनने के लिए पहुँच गए। उन्हें आता देखकर भीमसेन जोशी ने अपना गाना रोक दिया और अमीर खाँ को सलाम करते हुए वहाँ उपस्थित हजारों संगीत प्रेमियों को कहा कि जिस तरह आप मेरा गायन सुनकर आनंदित हो रहे हैं, ठीक उसी तरह मैं अमीर खाँ साहब का गाना सुनकर आनंदित होता हूँ। ऐसे ही एक मर्तबा पृथ्वीराज कपूर ने आर के स्टूडियो में पाकिस्तान के मशहूर गायक उस्ताद नजाकत अली व सलामत अली के गाने की महफिल रखी। उसमें फिल्म जगत की कई नामचीन हस्तियों को बुलाया गया। उन दिनों अमीर खाँ मुंबई के पैडर रोड पर रहते थे। पृथ्वीराज कपूर खुद उन्हें निमंत्रण देने उनके घर गए। अमीर खाँ उस महफिल में गए। पाकिस्तान से आए दोनों उस्ताद बन्धुओं ने चार घंटे तक गाया। उसके बाद चाय का दौर शुरू हुआ। तब वहाँ उपस्थित कई मेहमानों ने अमीर खाँ से गाने का अनुरोध किया। वे शुरू में इसके लिए यह कहते हुए राजी नहीं हुए कि मैं तो गाना सुनने आया था। बहुत अनुरोध पर वे राजी हुए। उन्होंने अपने गाने की शुरुआत राग मारवां से की। उन्हें सुनते हुए नजाकत अली और सलामत अली ने खड़े होकर कहा कि मेरा अल्लाह जानता है कि गाना तो अब शुरू हुआ है।
एक बार अमीर खाँ इंदौर से कोलकाता के लिए ट्रेन के पहले दर्जे में सफर कर रहे थे। बीच रात का वक़्त था। अमीर खाँ अपनी बर्थ पर लेटे हुए कुछ पढ़ रहे थे। सतना में गाड़ी रुकी और कुछ लोग उनकी बोगी में आकर खाली पड़ी दो बर्थ पर सामान रखने लगे। उनके बाद एक शख्स भी उस बोगी में दाखिल हुए। उन्हें देखते ही अमीर खाँ ने खड़े होकर उन्हें सलाम किया। उन्हें छोड़ने आए लोगों से उन शख्स ने अमीर खाँ का परिचय कराने के लिए कहा कि ‘इन्हें सलाम करो, ये मौजूदा दौर के तानसेन हैं।’ वे शख्स और कोई नहीं, बल्कि उस्ताद अल्लाउद्दीन खाँ साहब थे।
कोलकाता से इंदौर आने के पहले अमीर खाँ ने अपने दोस्तों, नातेदारों और शागिर्दों को इंदौर के अपने घर में आने की दावत खत लिखकर दी कि वे अपने पोते का ‘हकीका’ (एक तरह का संस्कार) करने वाले हैं इसलिए सब तशरीफ लाएं। कई रिश्तेदार इंदौर आ भी गए थे कि तभी यह मनहूस खबर आई कि अमीर खाँ का कोलकाता में एक एक्सीडेंट में इंतकाल हो गया है। लेकिन उनके चाहने वालों में अमीर खाँ हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो गए।
-लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार हैं   

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