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एक संगीत साधक : उस्ताद ज़ाकिर हुसैन

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दिलीप कुमार पाठक

महान तबला वादक ज़ाकिर हुसैन साहब को ब्लड प्रेशर की परेशानी के कारण अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को के एक हस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उन्होंने आख़िरी साँस ली l कुछ दिन पहले ही उन्हें हार्ट की दिक्कत भी हुई थी। महान तबला वादक उस्ताद ज़ाकिर हुसैन साहब का अमेरिका में निधन होने की खबर आने के बाद पूरे मुल्क में शोक छा गया l ज़ाकिर हुसैन साहब जैसी शख्सियतें युगों में कभी जन्म लेती हैं l उस्ताद ज़ाकिर हुसैन साहब का जाना सचमुच एक युग का अंत हो जाना है l ज़ाकिर हुसैन अपने आप में संगीत का एक युग थे l ये हिंदुस्तान का बहुत बड़ा नुकसान है l पीढ़ियां इस बात पर सीना चौड़ा करेंगी कि ऐसा पुष्प हिन्द के आँगन में उगा था, जिसके संगीत की खुशबू से पूरी दुनिया महकती है l ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जो ज़ाकिर हुसैन साहब की थापों पर फ़िदा न हुआ हो l जैसे आज आश्चर्य होता है कि सुर सम्राट तानसेन क्या भारत में ही पैदा हुए थे? आने वाले दौर में बच्चे गर्व करेंगे कि महान तबला उस्ताद हमारे वतन के थे l
तब ही तो साहित्यकार शायर ध्रुव गुप्त उस्ताद ज़ाकिर हुसैन साहब की महान शख्सियत को याद करते हुए कहते हैं –
-कभी बारिश, कभी तूफां, कभी बिजली की कड़क
वो उंगलियां थीं कि कुदरत का करिश्मा थीं, हुज़ूर !
उस्ताद ज़ाकिर हुसैन अक्सर कहा करते हैं कि भारतीय शास्त्रीय संगीत स्टेडियम के लिए नहीं है, बल्कि यह कमरे का संगीत है। हालांकि ये भी सच है शायद ही कोई देश बचा हो, जहां ज़ाकिर हुसैन साहब ने अपना शो नहीं किया और श्रोताओ को अपनी कला का दीवाना ना बनाया हो।
उस्ताद जाकिर हुसैन मशहूर तबला वादक क़ुरैशी अल्ला रक्खा ख़ान के पुत्र थे l अल्ला रक्खा ख़ान भी तबला बजाने में माहिर माने जाते थे। ज़ाकिर हुसैन जब अपनी उंगलियों और हाथ की थाप से तबला बजाते थे तो मंत्रमुग्ध कर देते थे । उनके तबले के सुर को सुन लोग मदहोश हो जाते हैं और कहते हैं वाह उस्ताद। हालांकि टेलीविजन पर आता ताज चाय का विज्ञापन भी उन्हें नई पीढ़ी में खासा लोकप्रिय बनाता था l आज अधिकांश लोग उस स्लोगन के साथ उस्ताद को याद कर रहे हैं l
ज़ाकिर हुसैन ने देश ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में अपनी कला का परचम लहराया है। खुद का नाम तो रोशन किया ही बल्कि अपने राष्ट्र का मान बढ़ाया l हमारी पीढ़ी के लोगों के लिए तबला का दूसरा नाम उस्ताद ज़ाकिर हुसैन ही रहा है l उस्ताद बिस्मिल्ला खान की शहनाई, हरि प्रसाद चौरसिया की बांसुरी, पंडित शिव शर्मा का संतूर….. इसी तरह तबला उस्ताद जाकिर हुसैन साहब के साथ जुड़ा हुआ है l जीवन में इतनी प्रसिद्धि पाने के बाद भी उस्ताद को सादगी से रहना पसंद करते थे l और वह अक्सर जमीन से जुड़े रहते थे l
महान लोगों की महान बातेँ ज़ाकिर हुसैन साहब को कोई उस्ताद कहता तो असहज हो जाते थे, और बड़ी शालीनता के लिए कहते – भाई मैं उस्ताद नहीं हूं मुझे आप जाकिर या जाकिर भाई कहो उस्ताद कभी बनना भी नहीं चाहूंगा, मैं हमेशा शागिर्द बनकर रहना चाहता हूं l तबला के महान विद्वान खुद को उस्ताद मानते ही नहीं थे, ये शालीनता उन्हें बहुत अलहदा अद्वितीय कलाकार बनाती है l
उन्होंने अपने जीवन में कई संघर्षों के बाद यह मुकाम पाया है। जाकिर हुसैन के अंदर बचपन से ही धुन बजाने का हुनर था। वे कोई भी सपाट जगह देखकर उंगलियों से धुन बजाने लगते थे। यहां तक कि किचन में बर्तनों को भी नहीं छोड़ते थे। तवा, हांडी और थाली, जो भी मिलता, वे उस पर हाथ फेरने लगते थे। शुरुआती दिनों में उस्ताद जाकिर हुसैन ट्रेन में यात्रा करते थे। पैसों की कमी की वजह से जनरल कोच में चढ़ जाते थे। सीट न मिलने पर फर्श पर अखबार बिछाकर सो जाते थे। तबले पर किसी का पैर न लगे, इसलिए उसे अपनी गोद में लेकर सो जाते थे। ऐसा समर्पण जब किसी कलाकार में आ जाता है तो वो किवदंती बन जाता है l केवल 12 साल की उम्र में 5 रुपए मिले थे जब जाकिर हुसैन 12 साल के थे, तब अपने पिता के साथ एक कॉन्सर्ट में गए थे। उस कॉन्सर्ट में पंडित रविशंकर, उस्ताद अली अकबर खान, बिस्मिल्लाह खान, पंडित शांता प्रसाद और पंडित किशन महाराज जैसे संगीत की दुनिया के दिग्गज पहुंचे थे। जाकिर हुसैन अपने पिता के साथ स्टेज पर गए। परफॉर्मेंस खत्म होने के बाद जाकिर को 5 रुपए मिले थे। एक इंटरव्यू में उन्होंने इस बात का जिक्र करते हुए कहा था- मैंने अपने जीवन में बहुत पैसे कमाए, लेकिन वे 5 रुपए सबसे कीमती थे। अमेरिका में भी जाकिर हुसैन को बहुत सम्मान मिला। 2016 में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उन्हें ऑल स्टार ग्लोबल कॉन्सर्ट में भाग लेने के लिए व्हाइट हाउस में आमंत्रित किया था। जाकिर हुसैन पहले इंडियन म्यूजिशियन थे, जिन्हें यह इनविटेशन मिला था। उस्ताद जाकिर हुसैन को 1988 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था, तो सबसे कम उम्र के कलाकार थे l 2002 में पद्म भूषण और 2023 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। उन्हें 2009 में पहला ग्रैमी अवॉर्ड मिला था। 2024 में उन्होंने 3 अलग-अलग एल्बम के लिए 3 ग्रैमी भी जीते। संगीत की दुनिया में उस्ताद ज़ाकिर हुसैन साहब आप ध्रुव तारे की तरह चमकते रहेंगे l आपकी उँगलियों से निकलता संगीत पूरी दुनिया के बीच आपको ज़िन्दा रखेगा l
(लेखक /पत्रकार)

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