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वैदिक दर्शन : स्त्री स्तन का विकास और रजोदर्शन 

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           डॉ. विकास मानव 

  योनिमुखे उदञ्जिमुखप्रवेशस्याचिरेण उरोजोद्भवे परकारणत्वम्।

   कुवांरी योनि-मुख में शिश्न-मुख का प्रवेश कुमारी के स्तन-विकास का मुख्य कारण है।

 योनिमुखे उदखिमुखप्रवेशस्याचिरेण उरोजोद्भवे परमकारणत्वमिति सूत्रार्थं विवृणोति योनिमुख इति. योनिचूचुकस्याधस्तात्प्रदेशे उदञ्जिमुखप्रवेश इति यावत्स्थानपर्यन्तं चर्ममयस्य मुखपिधानं तावन्मात्रमुदञ्जिमुखं तस्य प्रवेशः प्रवेशनं कर्तृ (तस्य) अचिरेण ठरोजोद्धवे परमकारणत्वमिति। च वात्स्यायनीयं सूत्रम्- ‘पञ्चघस्त्रेभ्य उपरिष्टात् कर्कन्धुवत् उरोजी परिदृश्येते सति योनिमुखे विघाटिते’ इति।तस्माद्योनिमुखे उदञ्जिमुखप्रवेशे सति अचिरेणैव स्तनयोः प्रादुर्भावो भवतीत्यर्थः पुरुषसान्निध्याभावाद्यदि न भिद्येत तदा चिरेण प्रादुर्भावो भवतीति स्त्रीजातेर्नियामकत्वात्, स्तनोद्धवस्याचिरेण दिदृक्षा यदि तदानीं योनिमुखस्य विदीर्णनमावश्यकत्वेनाभिमतम्, यदि च न दिदृक्षा तदा तु पञ्चदशषोडशसमारभ्य उपरिष्टात् भविष्यत्येव प्रादुर्भावः पुरुषप्रकृतेर्व्यावर्तकत्वादिति||

       योनि के मुख में शिश्न के मुख का जब प्रवेश होता है, तो शीघ्र ही स्तनों का विकास होना प्रारम्भ होता है।    

    महर्षि वात्स्यायन कहते हैं : पञ्चघस्त्रेभ्य उपरिष्टात् कर्कन्धुवत् उरोजी परिदृश्येते सति योनिमुखे विघटिते.

अर्थात् पाँच दिन लगातार किशोरी की योनि को शिश्न द्वारा विदीर्ण करने पर वक्षस्थल पर कर्कन्धु के फल के समान दोनों स्तन दिखाई देने लगते हैं।

किशोरी से जब पुरुष का मिलन नहीं होता है, तब स्तन ठीक से नहीं बढ़ते। स्तन मर्दन कोई खास परिणाम नहीं देता. स्तनों को यदि कर्कन्धु या आम के फल के समान सुन्दर देखने की शीघ्र इच्छा है, तो योनिमुख में शिश्न डलवाना आवश्यक है। यदि नहीं देखने की इच्छा है, तो 17-18 आयु के बाद स्वतः ही स्तनों को विकास मिलने लगेगा.

      यत्र तत्र योनिमुखविदीर्ण तत्र तत्र अचिरेण स्तनोत्पत्तिः इति अन्वयः यत्र यत्र न योनिमुखविदीर्ण तत्र तत्र नाचिरेण स्तनोत्पत्ति इति व्यतिरेकि।

    जहाँ-जहाँ किशोरी के योनि मुख को खोलना है, वहाँ-वहाँ शीघ्र स्तनों का विकास है. जहाँ जहाँ योनि मुखविदारण नहीं वहाँ-वहाँ शीघ्र स्तनों का विकास नहीं है। 

   यहाँ कार्यकारण सम्बन्ध भी स्थापित होता है। किसी भी कम उम्र वाली बालिका के साथ पुरुष सम्भोग प्रारम्भ कर दे तो उसके स्तनों को विकास अवश्य मिलता है. इसी सच का समर्थन करते हुये वात्स्यायन ने कहा है कि मात्र पाँच दिन पुरुष के शिश्न मुख द्वारा कम उम्र बाला की योनि के मुख के विदीर्ण करने पर ही उसके स्तन कर्कन्धु के फल के समान बढ़ जाते हैं। 

आयुर्वेद ग्रंथ भावप्रकाश निघण्टु ने भी इसका समर्थन किया है.

*रजोदर्शन और मैथुन काल :*

     प्रकृतिविकारस्य लोहितोपचय रत्युत्साहवर्धने हेतुः।

    स्त्री का रजस्वला होना (योनि से रक्त निकलना) उसमेँ संभोग का उत्साह बढ़ाता है।

 प्रकृतिविकारस्येति। स्त्रीजाते: लोहितोपचयः रत्युत्साहवर्धने हेतुः शुक्रोपचयः पुरुषस्य रत्युत्साहवर्धने हेतुः। एवं च लोहितोपचये सति तद्द्द्वारा रत्युत्साहे वर्धिते सति तदैव तत्कर्तृसुधाप्राशने योषाया अभ्यनुज्ञासम्प्रदानं भविष्यति। अत्र यथेच्छं हेतुहेतुमद्भावः लोहितोपचयाभावः तदा तत्प्रयोज्यस्य रत्युत्साहवर्धनस्याप्यभावः, रत्युत्साहवर्धनाभावो यदा तदा अभ्यनुज्ञासम्प्रदानस्याप्यभावः, अभ्यनुज्ञासम्प्रदानाभावो यदा तदा पुरुषकर्तृकसुधाकर्मकप्राशनाधिकारे कर्तृत्वाभावः स्यात् स्त्रीजाते: लोहितोपचयः रत्युत्साह वर्धने हेतुरिति सिद्धम्। एवं हेतुत्वं सिद्धे सर्वासामनुपपत्तीनां विध्वंसनद्वारा पुरुषस्य सुधाप्राशनं भवतीत्यर्थः। विध्वंसने जायमाने सति पुरुषस्य कामोद्बोधनं यथेप्सितम्।

     स्त्री और पुरुष दोनों को सम्भोग की अनुमति प्रकृति कब देती है? जब स्त्री की योनि में से रक्त का निकलना प्रारम्भ होता है. यह ही स्त्री के अन्तर्गत मैथुन के प्रति उत्साह बढ़ाने का कारण है. पुरुष में वीर्य का उत्पन्न होना उसके अन्तर्गत मैथुन के प्रति उत्साह बढ़ाने का कारण है। 

   इस प्रकार मासिक धर्म प्रारम्भ होने पर तथा उस रक्तस्राव द्वारा मैथुन के प्रति उत्साह बढ़ जाने पर ही उसके अधरामृत का पान करने और उसकी योनि में शिश्न प्रवेश कराने की अनुमति  वेद देते हैं। 

    लगभग १२ वर्ष की आयु प्राप्त करने पर स्त्री की योनि से मिथ्या रक्त प्रतिमाह तीन दिन तक निकलने लगता है। प्रकृति उस समय उसके मन में मैथुन के प्रति इच्छा उत्पन्न कर देती है। यही कारण की लड़कियां सेक्स करवाने लगती हैं. अब तो 9-10 साल में ही करवाने लगती हैं. इंटरनेट का सहयोग उन्हें जल्दी गरम कर दे रहा है. 

   उधर पुरुष में लगभग १६ वर्ष में वीर्य का उपचय हो जाता है, तब उसके मन में कामभाव जागृत होता है। लेकिन अब वह भी 8-9 साल की आयु में नायिका खोजने लग जाता है.

     ऐसा सम्बन्ध जिन दो का होता है, वहाँ कारण कार्य सम्बन्ध होता है। यदि स्त्री की योनि से रक्त का स्राव (मासिक धर्म) आरम्भ नहीं हुआ है, तब उसमेँ सम्भोग के प्रति उत्साह भी नहीं बढ़ता। जब मैथुन के प्रति उत्साह ही नहीं, तब उसकी प्रकृति उसे अनुमति  नही देगी। बिना अनुमति वह संभोग करवाए, यह अलग बात है.

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