भगवान राम के जीवन को लेकर कई रामायण लिखे गए हैं, जिसमें लंका यद्ध को लेकर कई कथाएं मिलती हैं. रामचरितमानस में रावण के भाई विभीषण की बेटी का वर्णन मिलता है, जिसने रावण और लंका के सर्वनाश की ‘भविष्यवाणी’ युद्ध से पहले ही कर दी थी.
सीता हरण के बाद मंदोदरी और विभीषण ने कई बार रावण को समझाने का प्रयास किया कि वे सीता को प्रभु राम को लौटा दे और क्षमा मांग ले. लेकिन रावण ने एक नहीं सुनी. उसने माता सीता को अशोक वाटिका में कैद कर रखा था, जहां पर 300 राक्षसी पहरा देती थीं और सीता जी को अनेकों प्रकार से डराती रहती थीं.
लंका में सीता जी की रक्षक थी विभीषण की बेटी
रामचरितमानस में त्रिजटा का नाम आता है. वह अशोक वाटिका में सभी पहरेदारों की मुखिया थी और सीता जी की रक्षक थी. जब भी रावण माता सीता को डराकर चला जाता था तो त्रिजटा उनके मनोबल को बढ़ाती थी. वह सीता जी को विश्वास दिलाती थी कि एक दिन प्रभु श्रीराम लंका पर विजय प्राप्त करके आपको यहां से ले जाएंगे.
विभीषण की बेटी थी त्रिजटा
बताया जाता है कि त्रिजटा विभीषण की बेटी थी और उसकी माता का नाम सरमा था. वह राक्षस कुल में जन्म ली थी, लेकिन पिता के समान ही विष्णु भक्त थी. रामायण में उसे कई बार सीता जी को पुत्री कहकर संबोधित करते हुए देखा गया है.
त्रिजटा ने पहले ही कर दी थी रावण के सर्वनाश की ‘भविष्यवाणी’
रामचरितमानस में त्रिजटा के उस स्वप्न कर वर्णन किया गया है, जिसमें उसने लंका युद्ध से पूर्व ही रावण के सर्वनाश की भविष्यवाणी कर दी थी.राक्षसी जब सीता जी को डराती हैं और प्रताड़ित करती हैं तो वह अपने एक स्वप्न के बारे में बताती है.
वह कहती है कि उसने एक स्वप्न देखा है, जिसमें एक वानर पूरी लंका को जला देता है और रावण की राक्षसी सेना को मार डालता है. इतना ही नहीं, रावण गधे पर बैठा है और उसका मुंडन कर दिया गया है और उसके 20 हाथ कटे हुए हैं. वह सभी पहरेदारों को समझाती है कि तुम सभी का हित सीता की सेवा में ही है. त्रिजटा का स्वप्न उस समय पूरा हो जाता है, जब हनुमान जी लंका दहन कर देते हैं.
रामचरितमानस की चौपाई
- त्रिजटा नाम राच्छसी एका। राम चरन रति निपुन बिबेका॥
सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना। सीतहि सेइ करहु हित अपना॥1॥ - सपने बानर लंका जारी। जातुधान सेना सब मारी॥
खर आरूढ़ नगन दससीसा। मुंडित सिर खंडित भुज बीसा॥2॥
लंका विजय के बाद त्रिजटा को मिले उपहार
इंडोनेशिया की काकाविन रामायण में बताया गया है कि लंका विजय के बाद सीता जी ने त्रिजटा को कई कीमती उपहार दिए थे. बालरामायण और आनंद रामायण में बताया गया है कि लंका विजय के बाद त्रिजटा सीता जी के साथ अयोध्या भी गई थी.
बनारस और उज्जैन में है त्रिजटा मंदिर
बनारस और उज्जैन में त्रिजटा के मंदिर भी हैं. बनारस के त्रिजटा मंदिर में महिलाएं मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पूजा करती हैं. मूली और बैंगन का भोग लगता है. कहा जाता है कि सीता जी ने त्रिजटा को वाराणसी में रहने को कहा था, ताकि उसे मोक्ष मिल जाए.