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व्यक्तिगत आस्था और राजनीतिक व्यवहार में अंतर करना जान गए हैं मतदाता

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रशीद किदवई

वर्ष 2024 के जनादेश में सबके लिए कुछ न कुछ है, पर सबसे बड़ा श्रेय राहुल गांधी, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे, ममता बनर्जी एवं शरद पवार को जाता है। इन लोगों की एकजुटता ने ‘इंडिया’ गठबंधन को भारी ताकत दी। लेकिन नरेंद्र मोदी, भाजपा, राजग और बड़बोले मीडिया के एक वर्ग को स्तब्ध कराने के बाद विपक्षी दलों को आत्मचिंतन करके यह सोचना चाहिए कि ‘क्या होता अगर’ उन्होंने कुछ और मेहनत की होती! 

कांग्रेस और ‘इंडिया’ गठबंधन को निश्चित रूप से इस लोकसभा चुनाव में, विशेष रूप से आंध्र प्रदेश और ओडिशा में चूके हुए अवसरों पर पछतावा हो रहा होगा, जहां वे मौन या रणनीतिक गठबंधन नहीं कर सके। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब ‘इंडिया’ गठबंधन का हिस्सा थे, तो उन्होंने भुवनेश्वर का दौरा करके नवीन पटनायक से ‘इंडिया’ गठबंधन में शामिल होने का आग्रह किया था, पर नीतीश कुमार के स्वयं राजग का हिस्सा बनने के बाद बीजद के साथ बात आगे नहीं बढ़ सकी। जब नतीजे आए तो भाजपा-राजग ने राज्य में भारी संख्या में सीटें हासिल कर लीं, जिससे वे बहुमत के करीब पहुंच गए।

1980 के दशक से ही गठबंधन राजनीति में आंध्र प्रदेश और तेदेपा ने ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्ष 1984 में तेदेपा लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी थी। अभिनेता से राजनेता बने चंद्रबाबू नायडू के श्वसुर एनटी रामाराव राष्ट्रीय मोर्चा के संयोजक बने थे और विश्वनाथ प्रताप सिंह को 1989 में प्रधानमंत्री बनने में मदद की थी। 1989 में राष्ट्रीय मोर्चा-वाम मोर्चा सरकार को भाजपा बाहर से समर्थन कर रही थी। वर्ष 1996 में जब संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी, तो चंद्रबाबू ने किंगमेकर की भूमिका निभाई, जब एचडी देवगौड़ा एवं आईके गुजराल प्रधानमंत्री बने। इस उथल-पुथल भरे दौर में दो बार नायडू को प्रधानमंत्री पद की पेशकश की गई, लेकिन दोनों बार उन्होंने इन्कार कर दिया। मसलन, आंध्र प्रदेश में मुश्किल से एक प्रतिशत वोट शेयर वाली भाजपा ने तेलुगू देशम पार्टी और जन सेना को अपने साथ जोड़कर बेहतर प्रदर्शन किया है।

इसके विपरीत, जगन मोहन रेड्डी के शुरुआती वर्षों में कांग्रेस से जुड़े होने के बावजूद ‘इंडिया’ गठबंधन को कोई दोस्त नहीं मिला। जगन रेड्डी के साथ कांग्रेस के अलगाव की अलग कहानी है। जगन से समझौते या पहल करने के बजाय कांग्रेस नेतृत्व ने उनकी बहन शर्मिला को राज्य में पार्टी प्रमुख के रूप में आगे बढ़ाया। आंध्र प्रदेश में कांग्रेस का वोट प्रतिशत मामूली रहा होगा, जो संसदीय चुनाव में वाईएसआरसीपी को नुकसान पहुंचाने के लिए पर्याप्त था। भाजपा और राजग को इसका सीधा लाभ मिला। उत्तर प्रदेश में परिवर्तन का चक्र तेजी से घूमा।

अखिलेश यादव 2024 के सबसे बड़े स्टार हैं। अयोध्या में भाजपा उम्मीदवार की हार बताती है कि मतदाता व्यक्तिगत आस्था और राजनीतिक व्यवहार के बीच अंतर करना जानते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की भूमिका का विशेष रूप से उल्लेख करना जरूरी है। खरगे ने सहयोगियों एवं संभावित सहयोगियों से बातचीत करने के लिए अथक परिश्रम किया। दूसरी ओर, भाजपा ने कई रणनीतिक गलतियां कीं। राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया और कई अन्य राज्यों में क्षेत्रीय क्षत्रपों को हाशिये पर रखने की उसे भारी कीमत चुकानी पड़ी। इसके अलावा अंतिम समय में उम्मीदवारों के चयन में बदलाव तथा चुनाव प्रचार में ध्रुवीकरण ने नुकसान पहुंचाया। साथ ही प्रधानमंत्री मोदी पर अत्यधिक निर्भरता ऐसी चीज है, जो भाजपा को लंबे समय तक परेशान करेगी। इस साल अक्तूबर में हरियाणा और महाराष्ट्र में होने वाले चुनावों की संभावना भाजपा के लिए दुःस्वप्न पैदा कर सकती है।

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