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अमेरिका में वोटरों ने कट्टरपंथियों को खारिज कर दिया

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सीमा सिरोही
पिछले दिनों वाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की पोती नाओमी की शादी हुई, जिसमें वह बहुत रिलैक्स्ड दिखे। इसकी वजह भी थी। अमेरिका में पिछले दिनों आए मध्यावधि चुनाव के नतीजे दिखाते हैं कि वोटरों ने कट्टरपंथियों को खारिज कर दिया। इससे लगता है कि बाइडन सरकार की पकड़ बनी रह सकती है। लेकिन उम्र के 80वें पड़ाव पर पहुंचने वाले बाइडन के लिए आगे कई चुनौतियां भी हैं।

अमेरिकी कूटनीति
इस बीच वहां भारत के लिए क्या है? बाइडन के डिप्टी एनएसए जोनाथन फाइनर ने 2022 को भारत-अमेरिका संबंधों के लिहाज से अहम साल बताया। उन्होंने वादा किया कि 2023 में भी दोनों देशों के बीच उच्चस्तर पर बातचीत होगी और आने वाला साल इस तरह से और भी अहम होगा। भारत की G-20 प्रेसिडेंसी उनके रडार पर है और इस दौरान अमेरिकी अधिकारी नई दिल्ली के कई कार्यक्रमों को हाइलाइट करने, उनमें हिस्सा लेने और उन्हें बढ़ावा देने की कोशिश करेंगे। बाली में जी-20 बैठक में भारत ने जिस तरह से साझे बयान पर सहमति बनाई, उसकी सभी ने तारीफ की। फाइनर के बयान से भी लगता है कि अमेरिका भारत से खुश है, लेकिन परदे के पीछे की तस्वीर जटिल है। दोनों पक्षों में यह भावना है कि राजनीतिक गर्माहट गायब है। यूक्रेन युद्ध पर भारत के सावधान रुख के बारे में अमेरिकी अधिकारियों के बीच गुस्सा अभी भी बना हुआ है। भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर लगातार चिंताएं जताई जा रही हैं। भारतीय राज्यों में आने वाले धर्मांतरण विरोधी कानूनों को लेकर कार्यकारी और विधायी दोनों शाखाएं चिंतित हैं। वहीं भारत की नाराजगी की भी लंबी लिस्ट है।

अड़चनें पाकिस्तान को लेकर अमेरिकी रुख से भी है। F-16 लड़ाकू विमानों के लिए 45 करोड़ डॉलर का पैकेज, वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) की ग्रे-लिस्ट से पाकिस्तान को हटाना, अमेरिकी राजदूत डॉनल्ड ब्लूम का अचानक पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में जाने का फैसला और यह कहना कि इसे ‘आजाद जम्मू-कश्मीर’ कहा जाता है, ये बातें दोनों देशों के संबंधों के लिए अच्छी नहीं हैं। इन्हें देखकर दीवार फिल्म का एक डायलॉग याद आता है- ‘मेरे पास मां है’। कुछ इसी तरह से अमेरिका ने भी इन हरकतों से संदेश दिया है कि ‘हमारे पास पाकिस्तान है!’

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