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*जगाओ अंदर के इंसान को*

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शशिकांत गुप्ते

आज सीतारामजी पूर्ण रूप से दार्शनिक मानसिकता में है।
सीतारामजी ने संत रविदास के इस दोहे से अपनी चर्चा शुरू की।
जाति – जाति में जाति है , जो केतन के पात !
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात !!

सीतारामजी को आज इस दोहे से ही चर्चा करने की शुरुआत क्यों करनी पड़ी? इस बात का स्पष्टीकरण देते हुए, सीतारामजी ने कहा, हम इक्कीसवीं सदी में पहुंचने के बाद भी संकीर्ण मानसिकता में जकड़े हुए हैं,और दकियानूसी विचारों में लिप्त हैं।
आज भी जात-पात, ऊंच-नीच, और छुआ-छूत की घृणित मानसिकता से उबर ही नहीं रहें हैं।
ऊंची जात के दंभ भरने वाले, यदि निकृष्ट कर्म करता है,तो वह अधम या पतित ही कहलाएगा।
ब्राह्मण की परिभाषा को गहराई से समझने के साथ उस पर सार्वजनिक रूप से गंभीरता से विचार,विमर्श की आवश्यकता है।
शास्त्रों में ब्राह्मण की परिभाषा निम्नानुसार है। ब्रह्म जानाति ब्राह्मणः अर्थात ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म (अंतिम सत्य, ईश्वर या परम ज्ञान) को जानता है। अतः ब्राह्मण का अर्थ है “ईश्वर का ज्ञाता”।
इस परिभाषा में संत रविदास के रहीम ,रसखान,कबिरसाहब,
सूरदास,नामदेव, दादू दयाल, गोरा कुम्हार, सावता माली, गुरुनानक,
मीरा बाई, आदि सभी आतें है,ये सभी ब्राह्मण ही थे। ज्ञात करने की कोशिश करेंगे तो बहुत लंबी फेहरिस्त बनेगी।
उपर्युक्त मुद्दे को समझने के लिए,आदमी को इंसान बनाना पड़ेगा। मानव में मानवीयता जागृत करनी पड़ेगी।
किसी विचारक ने कहा है,आदमी होगा तो ही इंसान बनेगा?
इस संदर्भ में सन 1954 में प्रदर्शित फिल्म नास्तिक के गीत की कुछ पंक्तियों जो आज प्रासंगिक भी हैंं,का स्मरण हुआ, इस गीत को लिखा कवि प्रदीपजी ने
आया समय बड़ा बेढंगा,आज आदमी बना लफंगा
राम के भक्त रहीम ने बंदे, रचते आज फरेब के फंदे

अंत में शायर बशीर बद्र का यह शेर मौजू है।
घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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