अग्नि आलोक

बिना डांट-मार बाल अनुशासन के तरीके 

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             पुष्पा गुप्ता 

बच्चे में विनम्रता, आदर और संस्कार भरने के लिए माता-पिता बचपन से ही तैयारी शुरू कर देते हैं। दरअसल, घर उस स्कूल के समान है, जहां से बच्चे को प्रारंभिक शिक्षा की प्राप्ति होती है। मगर अब न केवल परिवार छोटे हो रहे हैं, बल्कि पेरेंट्स के पास भी उतना समय नहीं होता जिससे वे बच्चे के साथ क्वालिटी टाइम बिता सकें। जबकि उनकी लर्निंग के लिए यह सबसे जरूरी चीज है। इसके अभाव में बच्चे जिद्दी, गुस्सैल और अनुशासनहीन हो जाते हैं।

      बच्चे जब गलतियां या बदतमीजी करते हैं, तो ज्यादातर पेरेंट्स या तो उन्हें सजा देते हैं या उन्हें नजरंदाज करना छोड़ देते हैं। मगर ये दोनों ही चीजें गलत हैं। यह बच्चे को न तो अनुशासित बना पाती हैं और न ही भावनात्मक लगाव बनाए रख पाती हैं। 

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार बच्चों को अनुशासन सिखाने के लिए माता-पिता खुद को बोझिल महसूस करने लगते हैं। अनुशासन का अर्थ बच्चे को ज्ञान और स्किल्स की जानकारी प्रदान करना है। हालांकि माता-पिता कई बार सजा देकर और उनपर अपना नियंत्रण बढ़ाकर उन्हें कुछ कार्यों को करने के लिए मज़बूत करते है। पेरेंटस का नकारात्मक व्यवहार बच्चे के मन को गहरी चोट पहुंचा सकता है। 

     दरअसल, माता-पिता बच्चे में अच्छी आदतों को बढ़ाने और जीवन में अनुशासन लाने के लिए भ्रमित हो जाते है। सही व गलत में फर्क नहीं कर पाते हैं।

     बच्चों को डिसिप्लिन शुरुआती वर्षों में ही सिखाया जा सकता है। हर बच्चे के सोचने और समझने का ढ़ग अलग होता है। मगर उसके शुरुआती वर्षों में ही उसकी क्षमताओं को पहचानकर, जीवन के लिए जरूरी चीजें सिखाई जा सकती हैं। फिर चाहे कूड़ा फेंकना हो, अपने खिलौने संभालना हो या हैंड हाइजीन हो।

     बच्चों को कम उम्र में ही छोटी-छोटी जिम्मेदारियां दे देनी चाहिए। इससे बच्चे अपनी डयूटीज़ को समझने लगते हैं। इसके अलावा बच्चों में अनुशासन की भावना को भरने के लिए रिवार्ड और पनीशमेंट की मदद ली जानी चाहिए।

*1. रोल मॉडल बनें :*

बहुत से ऐसे लोग है, जिनके रोल मॉडल कोई और नहीं बल्कि उनके अपने माता पिता होते है। जब परेंटस अपने बच्चों से इस बात को सुनते हैं कि मैं भी आपके जैसा बनना चाहता हूं या चाहती हूं, तो समझ लें कि बच्चा माता पिता से बेहद प्रभावित है। ऐसे में बच्चे के सामने कोई भी कार्य बेहद सतर्कता से करें, क्यों की वो हर कार्य में माता पिता को फॉलो करने लगता है। बच्चे के सामने वही कार्य करें, जिसकी उम्मीद हमें बच्चे से रहती है। अपना बिस्तर लगाना, बैग पैक करना और हेल्दी मील्स लेना। इससे बच्चे में भी वही क्लाविटीज़ पैदा होने लगती हैं।

*2. छोटी-छोटी जिम्मेदारियां सौंपे :*

बच्चे माता पिता के व्यवहार को बहुत बारीकी से कॉपी करने लगते है। अगर माता पिता निष्ठापूर्वक कार्य करते हैं, तो बच्चा भी उस क्वालिटी को एडॉप्ट करने लगता है। कुछ कार्य बच्चों को देना आरंभ करें। खाने के बाद प्लेट किचन में रखें, अपना बिस्तर लगाएं और अपने जूते पॉलिश करें। इससे बच्चे एक्टिव रहते हैं और उन्हें आत्मनिर्भरता बढ़ने लगती है। ऐसे में बच्चे खुद बढ़कर कार्य करने की कोशिश करने लगते है और आपकी मदद करने के लिए हाथ भी बढाने लगते है।

*3. सराहना करें :*

स्कूल में अच्छे अंक लाने के अलावा घर के बुजुर्गों का मान सम्मन करने व किसी ज़रूरतमंद की मदद करने समेत अन्य कार्यों के लिए बच्चों को सराहें। इसके अलावा बच्चों को गले लगाएं और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। इससे बच्चे में तेज़ी से अनुशासन की भावना बढ़ने लगती है। मारपीट बच्चे की मेंटल हेल्थ को नुकसान पहुंचाने लगती है। इससे बच्चा डरा और सहमा हुआ रहने लगता है। बच्चे में अनुशासन लाने के लिए उसे डराकर नहीं बल्कि प्यार से किसी भी कार्य को करने के लिए प्रोत्साहित करें।

*4. उदाहरण पेश करें :*

बेहतरीन परवरिश के लिए बच्चे को समझने की अवश्यकता होती है। बहुत सारी उम्मीदें रखने की अपेक्षा बच्चों को अपनी जिम्मेदारी समझें। ऐसे में बच्चों कें सामने कुछ ऐसे एदाहरण पेश करें, जिससे बच्चा सही और गलत में फर्क जान पाए। वो कार्य करें, जिसकी उम्म्ीद बच्चों से की जाती है। इससे बच्चे चीजों को आसानी से समझने लगते हैं।

*5. बच्चों की बात सुनें :*

दिनभर बच्चे बहुत सी चीजों को ऑबजर्व करते है। अगर वे अपने दिल की बात माता पिता को सुनना चाहते हैं, तो उन्हें अवॉइड करने से बचें। इससे बच्चे मे अच्दी आदतों का समावेश करने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है। बच्चों को समझें और उनकी बातों का ध्यान से सुनें। इससे बच्चे के मन की स्थिति की जानकरी मिलती है, जो उसके व्यवहार को तय करता है। बच्चों को सुनकर और समझकर उसमें अनुशासन लाने में मदद मिलती है।

*6. बहुत अधिक उम्मीदें न लगाएं :*

ऐसा ज़रूरी नहीं कि बच्चा हर कार्य सही ही करेगा। बढ़ती उम्र में बच्चे नई चीजों से वाकिफ होते हैं और उनके मन में ढ़रों सवाल उठने लगते है। ऐसे में बच्चों के करीबी दोस्त बनकर उनके साथ समय व्यतीत करें और अपनी एक्सपेक्टेशंस को बढ़ने से रोकें।

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