Site icon अग्नि आलोक

हम भी भाईचारे के घरों को बनाते रहे

Share

मुनेश त्यागी

वो हैं कि राहों में कांटे बिछाते रहे
खुदा की कसम हम मुस्कुराते रहे।

अंधेरे बहुत सारे बिखेरे थे मगर
हम भी लोगों को राहें दिखाते रहे।

लोगों को उसने भड़काया तो बहुत
मगर लोग फिर भी आते जाते रहे।

उन्होंने रौंद डाले सारे के सारे रिश्ते
पर लोग हैं कि रिश्तों को निभाते रहे।

बाधाएं तो उसने खडी की थीं बहुत
परंतु हम भी अवरोधों को हटाते रहे।

आखिर हमने दुश्मनों को हरा ही दिया
हम उनके हर दाव पर मुस्कुराते रहे।

नफ़रतों ने तो ढहाये हैं बहुत सारे घर
हम भी भाईचारे के घरों को बनाते रहे।

Exit mobile version