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हम एक कुंठित समाज हैं

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आदित्य कुमार गिरि

कलकत्ते में मार्क्सवादी लोग किसी की निंदा सिर्फ इसलिए कर सकते हैं कि वह अच्छी शर्ट पहनता है।

एकबार कोई 7-8 साल पहले प्रोफेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी ने मैकडोनल में आइसक्रीम खाती अपनी एक तस्वीर पोस्ट की तो पत्रकार ओम थानवी ने उस तस्वीर को शेयर करते हुए लिखा कि 

यह कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर हैं। जेएनयू से पढ़ाई की है, ख़ुद को मार्क्सवादी कहते हैं और मैकडोनल में आइसक्रीम खाते हुए पोस्ट कर रहे हैं।

ठीकठाक संख्या में कोई छः सात सौ कमेंट्स हुए थे। लोगों ने प्रोफेसर चतुर्वेदी को कमेंट्स में फर्ज़ी, फ्रॉड और अश्लील तक कहा था।

हिंदी में मेरी एक सीनियर हैं। वे कॉमर्स के एक मेरे आदरणीय की स्टाफरूम में सिर्फ इसलिए निंदा करती हैं क्योंकि उन्होंने ‘दमदम'(कोलकाता) में एक तीन मंजिला मकान बनवाया है। कहती हैं ‘यह आदमी ख़ुद को मार्क्सवादी कहता है और इसने इतना बड़ा घर बनवाया है।’

कलकत्ते में कोई वामपन्थी प्रोफेसर अगर कार ख़रीद ले तो उसे बुर्जुआ कहा जाने लगता है।

आप बेवकूफों की तरह सड़े कपड़े पहने, एक ही सस्ती सी, सड़ी सी कमीज़ पहनें तो आप जनता के आदमी हुए वरना लुटेरे और ‘अमीर’ हैं।

हिंदी प्रदेश में अमीर होना पाप समझा जाता है। राहुल गांधी का पूरा खानदान अमीर है।उनमें एक ‘क्लास’ है। वे लोग अलग से दिखते हैं। लेकिन उन्हें तिहत्तर रुपये की कमीज पहननी चाहिए, तब नेता कहलायेंगे।

मुझे मोदी जी सही लगते हैं कि वे अपना ख़्याल रखते हैं। अच्छे कपड़े पहनते हैं। मोदी जी की पर्सनालिटी भी बहुत अच्छी लगती है। हालांकि ग़रीबी के दिनों में वे बेहद साधारण दिखते, इधर जब से पीएम बने हैं अपनी साजसज्जा पर खूब ध्यान देते हैं और यह ठीक भी है।

मोदी जी पन्द्रह अगस्त को क्या सुंदर साफा क्या बढ़िया कुर्ता पहनते हैं। 

भारत के लोगों को मैले कुचैले लोगों को आइकॉन की तरह देखना बन्द करना चाहिए। वरना लोग करोड़पति होते हुए भी मफलर और ढीली शर्ट पहनकर वोट मांगते रहेंगे कि हम तो आम आदमी हैं जी।

गांधी, नेहरू, भगत सिंह, सुभाषबोस, श्रीअरविन्द, रवीन्द्रनाथ, विवेकानंद, तिलक सभी अमीर थे। भगत सिंह के पिता ने उनदिनों जब ‘एक आने’ में आटा चावल आ जाते, 60 हज़ार रुपये उनकी जमानत के लिए दे दिए थे। सोचिये उनदिनों उनके पास कितने रुपये थे।

जिनका पेट भरा होता है वे ही तो उनके लिए लड़ते हैं जिनका पेट खाली हो, बाकी नंगे भूखे लोग पेट भरेंगे या क्रांति करेंगे।

हालांकि सर्वेश्वर की यह कविता मुझे बेहद प्रिय है

‘भूख से लड़ने 

जब भी कोई खड़ा होता है,

सुंदर दिखने लगता है।’

राहुल गांधी दो रुपए की कमीज़ पहनें तो आप मान लेंगे कि वे गरीब हैं।यक़ीन जानिए आपको झूठ में जीने की आदत हो गयी है। और सबकुछ जानते हुए उसे झुठलाने की भी। आपको फ्रॉड नेता इसलिए मिलते हैं क्योंकि आपको झूठ पसन्द है।

लम्बी ग़ुलामी के कारण हम कुंठित समाज हो गए हैं। हमें दूसरों की सम्पन्नता से दिक़्क़त होती है। हमें इसलिए सफल लोगों की निंदा करते हैं। ओशो ने ठीक कहा था कि मित्र की पहचान दुःख में नहीं सुख में होती है। जो मित्र का सुख बर्दाश्त कर ले वही मित्र है।

हरिशंकर परसाई के एक व्यंग्य में लिखा है कि एक आदमी ने शोरूम में एक लड़की के पुतले को देखकर पत्थर चला दिया। लोगों नेउसे पकड़ा और पूछा कि उसने पत्थर क्यों मारा। तो उस आदमी ने जवाब दिया ‘साली सुंदर दिख रही थी।’

राहुल गांधी की टीशर्ट पर तमाशा करने वालों की भी यही दशा है।

आदित्य कुमार गिरि

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