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हम नहीं सुधरे, मिट्टी के माधो ही बने रह गए

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कमल झँवर

ईसा के पहले यहूदी लोग भी हमारी तरह ही धर्मांध थे, कट्टर थे.

लेकिन ईसा के बाद उनमें चमत्कारिक सुधार आया, प्रेम-भाईचारे का पर्याय बन गया.

धीरे-धीरे वे शिक्षित होते गए और आगे चलकर बाइबिल को धर्मांध की तरह, आँखें बंद कर ईश्वर की वाणी मानने से इनकार कर दिया और पोप-पादरियों के चंगुल से निकल पाए.

तभी तो उसके बाद ईसाई धर्म शिक्षित लोगों का धर्म बना.

संपूर्ण विश्व में ईसाई-यहूदी धर्म एकमात्र ऐसा परिष्कृत धर्म है जिसमें साइंटिफिक सोच 85% और 15% धार्मिक पाखंड मौजूद है.

और विज्ञान का जन्म भी पश्चिम में यहूदी-ईसाई धर्म के कोख से पैदा हुआ है.

अर्थात संपूर्ण विश्व में आज तक जितने भी वैज्ञानिकअविष्कारक पैदा हुए हैं 99% ईसाई धर्म से है और यह आंकड़ा बहुत ही आश्चर्य करने वाला है आखिर यह कैसे मुमकिन हो सकता है.

और हर इनके अविष्कारों को विश्व के कोने-कोने तक पहुंचाने वाले पश्चिमी ईसाई धर्म से ताल्लुक रखते है.

मुस्लिम रूढ़ीवादी धर्म में 99% धार्मिक पाखंड एवं 1% साइंटिफिक सोच मौजूद है

और भारत में जन्मे जितने भी धर्म मौजूद है हिंदू सिख जैन बौद्ध इन सभी रूढ़िवादी जातिवादी सनातन धर्म से ताल्लुक रखते हैं

और इन सभी धर्मों में कमोवेश 85% धार्मिक पाखंड और सिर्फ 15% साइंटिफिक सोच मौजूद है.

क्रिश्चियंस जहां भी फैले, वहाँ पर चर्च के साथ स्कूल अवश्य खोले, ताकि वहाँ के लोग भी शिक्षित हो सके.

लेकिन काश!! फिर भी हमारे अन्दर जागृति नहीं आ पाई.

जबकि  हमारे धर्म में भी बहुत सारे सुधारक आये और चले गए, लेकिन हम नहीं सुधरे, मिट्टी के माधो ही बने रह गए.

तभी तो बुद्ध-महावीर-नानक-कबीर आदि को  अंत में मजबूर होकर उन महान हस्तियों को अपना अलग धर्म/मजहब स्थापित करना पड़ा. लेकिन फिर भी हम नहीं सुधरे…. ना ही कभी सुधरेंगे.

बल्कि इन सालों में तो और ज्यादा बिगड़े ही हैं……और ज्यादा कट्टर धर्मांध ही हुए हैं.

यदि ईसा मसीह इस दुनिया में ना आया होते तो आज भी यह संपूर्ण दुनिया नरक में जी रही होती.

कमल झँवर

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