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शशिकांत गुप्ते

आज एक महत्वपूर्ण समाचार पढा। मन प्रसन्न हो गया।
आश्चर्य चकित,अविस्मरणीय
घटना घटित हो रही है,वह भी सत्तर वर्षों बाद ही घटित हो रही है। पढ़कर मन प्रसन्न हो गया।
दक्षिण अफ्रीका के एक देश नामीबिया से अद्भुत वन्यप्राणी आयात हो रहें हैं। हमारे वनों की शोभा बढाएंगे।
इस अनोखें समाचार के कारण समाचार माध्यमों को लगभग एक सप्ताह की खुराक मिल गई।
हमारे देश में आयातित चीतें आ रहें हैं। आंग्ल भाषा के माध्यम से पढ़ने वाली भावीपीढ़ी को समझने के लिए Imported Leopard are coming.
अथिति का आदर के साथ सत्कार करना हमारे देश की संस्कृति है।
मेहमानों के आने की खबर सुनकर हम उनके स्वागत में जुट जातें हैं। घर को साफ सुथरा करतें हैं। घर में जो भी कुछ दिखाने योग्य नहीं होता है उसे पर्दे से ढाक देतें हैं।
यदि कोई विकसित देश का प्रमुख आता है तो हम अपनी गरीबी को छिपाने के लिए दीवार खड़ी कर देतें हैं।
यह सच है क्यों दिखाए मेहमान को हम अपनी मजबूरी। यह स्वाभिमान की बात है। स्तुतियोग्य कर्म है?
सत्तर वर्षो के बाद हमारे यहाँ वन्यप्राणी पधार रहें हैं। वे जिस पिंजरे में लाएं जा रहें हैं। वह काठ का पिंजरा है। चीतों को ऑक्सीजन प्राप्त होने के लिए पिंजरे कईं गोलाकार छेद कर सुविधा उपलब्ध है। किस्तम वालें हैं चीतें?
चीतों के भाग्यवान होने की खुशी में हमें कुछ खबरों विस्मृति हो जाती है।
जैसे ये खबर है,ऑक्सीजन के अभाव में परलोकगमन करने वाले हमारे देश के नोनिहाल और गरीब जनता। इनके दुर्भाग्य पर सिर्फ औरपचारिक दुःख ही प्रकट कर सकतें हैं।
चीतों के स्वभाव को परखा जाएगा, और उनके स्वभावानुसार उनका नामकरण होगा। पशुओं के स्वभाव को जानने वाले विशेषज्ञों को सादर प्रणाम है।
(कोई ऐसे भी विशेषज्ञ होने चाहिए जो आमजन की स्वाभिवक समस्याओं को जानने में निपुण हो,और आमजन की मूलभूत समस्याओं को जानने के बाद उनका स्थाई हल बता सकें)
बहरहाल चीतों का नामकरण होगा यह महत्वपूर्ण मुद्दा है।पिछले आठ वर्षों में हम नामकरण करने में और नाम बदलने में निपुण हो गएं हैं।
हमारे देश में नामकरण सोलह संस्कारों में एक संस्कार है।
हो सकता है,आयातित चीतों के नामकरण का भी समारोह आयोजित हो सकता है?
आयातित चीतों के कारण हमारे देश के राजस्व की आय बढ़ेगी। बाकायदा शुल्क अदा कर लोग चीतों के दर्शन करने जाएंगे।
चीतें आयातित होने के कारण उन्हें देखने का शुल्क भी निश्चित ज्यादा ही होगा?
कितना अच्छा लगेगा जब चीतों की अठखेलियों के खबर पढ़ने को और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में देखने को मिलेगी?
जो भी हो यह आलोचना का विषय नहीं है। इस श्लोक का स्मरण करना जरूरी है। अतिथि देवो भवः अतिथि भगवान स्वरूप होता है।
यह लेख मै सीतारामजी से छिपाना चाहता था। लेकिन वे अचानक ही मेरे घर आ गए और उन्होंने लेख पढ़ लिया। सीतारामजी ने आदतन अपनी प्रतिक्रिया प्रकट की।
सीतारामजी ने कहा चीता एक खूंखार पशु है। घात लगाकर हमला करता है। यह मांसाहारी पशु है।
अपनी बात को विराम देते हुए सीतारामजी को एक कहावत का स्मरण हुआ।
घर का जोगी जोगड़ा आन गाँव का सिद्ध

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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