सुसंस्कृति परिहार
बीता हुआ 2021का साल दो ऐसी घटनाओं से बेमिसाल साबित हुआ जिनकी परिकल्पना पिछले दहशतज़दा माहौल में करना मुमकिन नहीं था ।पहली मिसाल कायम की संयुक्त किसान मोर्चा ने जिन्होंने तीन सौ के लगभग संगठनों के साथ एकजुटता बनाए रखकर उन तीन काले बिलों को जो सदन पारित कर चुका था उन्हें सदन से वापसी की मुहर लगाई।ये बिल मामूली नहीं थे इनसे सरकार के कारपोरेट मित्रों के मुनाफे में श्रीवृद्धि के साथ ही खेत खलिहान और खाद्यान्न आहिस्ता आहिस्ता इनके हो जाने वाले थे।एक साल से अधिक किसानों ने शीत,ताप और वारिश के बीच अपना आंदोलन चलाया इसमें 700के लगभग आंदोलनकारी किसान शहीद हुए मगर उन्होंने झुकने के बजाए सरकार को घुटने टेकने मज़बूर कर दिया।
एक लोकतांत्रिक गणराज्य में तानाशाह बन बैठी सरकार को किसानों ने यह जता दिया कि जनादेश लोकशाही में सबसे ऊपर होता है। हरियाणा, पंजाब के किसानों की ताकत ने यह भी अच्छे से समझा दिया कि मंत्रियों की भी हिमाकत नहीं रही कि वे अपने क्षेत्रों में पहुंच सकें।डूबते लोकतंत्र को बचाने जनप्रतिरोध की शक्ति को बख़ूबी किसानों ने समझाया है।अब तक किसानों की जिस तरह उपेक्षा होती रही है इस विजय के बाद शायद ही उन्हें कोई छेड़ पाए।
लोकतंत्र को सही दिशा देने विपक्ष,मीडिया,लेखक और कला संस्कृति कर्मी जब सरकार से लोहा नहीं ले पाए तब किसानों ने जो कर दिखाया वह हमारी अमूल्य धरोहर है।इस वर्ष को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।यह साल दुनिया के जन गण को भी नई दिशा देगा इसलिए इसे पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है।
दूसरी बात जो इस वर्ष देश और दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण सबक लेकर आई है वह है प्रियंका गांधी का नारा “लड़की हूं लड़ सकती हूं”इस नए घोष ने लड़कियों में एक नई जान फूंक दी है । उत्तर प्रदेश की ज़मीं से उठी यह आवाज पूरे देश में जोशो-खरोश के साथ गूंज रही है। लड़कियों के उत्पीड़न में अग्रणी उत्तर प्रदेश में तो ऐसा महसूस हो रहा है कि जैसे लड़कियों की मन की मुराद ही पूरी हो गई हो। आखिरकार वे कितना और कब तक तक सहतीं। बहुत पहले सामाजिक कार्यकर्ताओं ने स्त्रियों को नारीशक्ति कहते हुए एक नारा दिया था “फूल नहीं चिंगारी है”जिसका विराट रूप आज देखने मिल रहा है।वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी स्त्री को ताकतवर माना गया है लेकिन मर्दवादी दुनिया ने उन्हें अपने अधीन रख उन्हें कमज़ोर करने की कोशिश की तथा नारी समाज ने भी पुरुष का भरपूर साथ दिया।किसी की पीड़ा ने उन्हें नहीं जोड़ा। परिणामस्वरूप वे घुटकर रह गई और दमन का शिकार हुई। सामंतवादी ताकतों ने मौके का फायदा लेकर भरपूर शोषण किया।आज जब झांसी, लखनऊ की मैराथन में लड़कियों की एकजुटता दिखती है तो खुशी होती है अब वह एकजुट होकर लड़ेगी।
सबसे बड़ी बात यह भी है कि जब स्त्री विरोधी ताकतें सत्ता पर काबिज़ हों ।जो मनुवाद की समर्थक हों।जो स्त्री को घर बैठकर आदर्श और महान बच्चे पैदा करने की सलाह दें उस काल में लड़कियों का यूं चीखना चिल्लाना लड़की हूं -लड़ सकती हूं।अच्छा संकेत है।जब स्त्री पुरुष बराबरी से फैसले लेंगे। कोई बड़ा छोटा नहीं होगा।तो भारत कितना सुन्दर होगा।मैत्रेयी,गार्गी पुनर्स्थापित होंगी।
कुछ लोग इसे चुनावी जुमला कह रहे हैं। उन्हें यह सोचना चाहिए कि स्कूली बच्चियां वोटर नहीं है हां आगे हो सकती हैं जो वोटर महिलाएं हैं अभी वही हैं जो रैली में जाकर पूड़ी, मिठाई खाकर संतोष की सांस लेकर बड़ी शान से कह रहीं हैं।जिसका नमक खाया है उसे जितायेंगे।ज्ञात हो उत्तर प्रदेश में राशन के साथ नमक का पैकेट विशेष तौर इसी उद्देश्य से बांटा जा रहा है।बहरहाल, सरकार किसी की आए।यदि जनशक्ति चाहे तो मन मुताबिक काम उससे ले सकती है ये पहला सबक किसान आंदोलन ने इस वर्ष दिया है। दूसरी आधी आबादी को चेताने का जो आव्हान प्रियंका गांधी कर रहीं हैं वह लड़कियों के माध्यम से घर घर पहुंच रहा है। ख़ामोश लड़की जाग रही है ,जगा भी रही है इसका सुफल आगे ज़रूर मिलेगा। महिलाओं की जाग से सुनहरा सबेरा आ सकता है।
इसीलिए आशान्वित हूं कि आगत नव वर्ष 2022 नया सबेरा लाएगा। देश में जनता की आवाज़ और मुखर होगी महिलाओं की स्थिति सुदृढ़ होगी।सब मिलकर सुखद तराने गाएंगे।तब ही होगा नया इंडिया।