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शहर गया था शहर से भागा

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शहर गया था शहर से भागा ,
शहर से भागा शहर से भागा ,

शैतानों की शान देखकर ,
झूठी मूठी आन देखकर ,
मानव को बेईमान देखकर,
मेहनत को परेशान देखकर
नकलचिओं के इम्तिहान देखकर,
बोझ बना मेहमान देख कर ,

शहर गया था शहर से भागा
शहर से भागा शहर से भागा।

न्याय संग व्यभिचार देख कर,
जन गण मन लाचार देखकर,
फूलता फैलता भ्रष्टाचार देखकर,
सच्चों का बहिष्कार देखकर ,
हंसता गाता दुराचार देखकर,
भ्रष्टाचारी शिष्टाचार देखकर,

शहर गया था शहर से भागा,
शहर से भागा शहर से भागा ,

लुटने पिटने का साज देखकर ,
“हम लोगों” का राज देखकर ,
झूठ कपट पर नाज देखकर ,
मुल्ला पंडित का काज देखकर,
लुटती कोठों पर लाज देखकर ,
झपटे अबला पर बाज देखकर ,

शहर गया था शहर से भागा
शहर से भागा शहर से भागा।

साम्प्रदायिकता का जहर देखकर ,
आतंकवाद का कहर देख कर ,
फीकी फीकी सहर देख कर ,
हिंसा-हत्या की लहर देखकर ,
वधू-दहन का शहर देख कर,
खून की बहती नहर देखकर,

शहर गया था शहर से भागा
शहर से भागा शहर से भागा ।

महंगाई की मार देखकर,
सच की होती हार देख कर,
झूठ की नैया पार देख कर,
भक्तिन का श्रृंगार देखकर,
योगी की टपकी लार देखकर ,
बहकी बहकी नार देखकर,

शहर गया था शहर से भागा,
शहर से भागा शहर से भागा।

दंगों में जलता मांस देखकर,
मानवता का नाश देख कर ,
लुटती पिटती आस देखकर ,
अपनों का परिहास देखकर ,
उधार ली हुई श्वांस देखकर ,
बिना कफन की लाश देखकर,

शहर गया था शहर से भागा ,
शहर से भागा शहर से भागा।

जात धर्म के नाग देखकर,
नेताओं के काज देखकर ,
रक्षक-भक्षक को साथ देखकर ,
पाखंडों के सांग देखकर ,
खुदगर्जों की पांत देखकर,
आस्तीनों के सांप देख कर,

शहर गया था शहर से भागा ,
शहर से भागा शहर सेभागा ।

राम खुदा की जंग देखकर,
मंदिर मस्जिद के रंग देखकर,
राज-धर्म के ढंग देखकर ,
पुलिस चोर के संग देखकर,
धोखाधड़ी में उमंग देखकर,
मिली रंग में भंग देखकर,
शहर के रंग बदरंग देखकर,
हम तो रह गए दंग देखकर,

शहर गया था शहर से भागा,
शहर से भागा शहर से भागा।

            ,,,,,,,मुनेश त्यागी
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