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इजराइली फिलीस्तीनी संघर्ष के सबसे बड़े जिम्मेदार हैं पश्चिमी देश

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मुनेश त्यागी 

       इजराइल अपने वर्तमान फिलीस्तीनी हमलों में 6500 से ज्यादा लोगों समेत निर्दोष बच्चों और महिलाओं को मौत के घाट उतार चुका है। इनमें आधे से ज्यादा बच्चे और महिलाएं हैं। इजरायल द्वारा की गई एकतरफा घोषणा के कारण वहां पर भोजन, पानी, दवाई, इंधन, बिजली पर रोक के कारण मानवीय त्रासदी उत्पन्न हो गई है। इस लगातार विकराल होती जा रही लड़ाई को लेकर दुनिया जैसे दो हिस्सों में बट गई है।

      दुनिया के विभिन्न शहरों में इजरायली हमलों के खिलाफ और इस समस्या को शांति पूर्वक निपटने के लिए प्रदर्शन हो रहे हैं, जिनमें करोड़ों लोगों से ज्यादा लोग भाग ले चुके हैं और ये भी खबरें आ रही है कि इन प्रदर्शनों में यहूदी लोग भी शामिल हैं। वे भी मांग कर रहे हैं कि इसराइली हमलें तुरंत बंद हों और वहां फिलिस्तीन में शांति कायम की जाए और एक आजाद फिलिस्तीन की स्थापना की जाए।

     इस संघर्ष में चीन, रूस, भारत और अधिकांश अरब मुल्कों समेत दुनिया के अधिकांश मुल्क चाहते हैं कि यहां युद्ध जल्द से जल्द खत्म हो और वहां पर शांति बहाल की जाए। वहां पर एक सम्प्रभू और स्वतंत्र फिलीस्तीन देश की स्थापना की जाए, फिलिस्तीनियों को खाना पानी दवाइयां ईंधन बिजली और इलाज की पर्याप्त सुविधाएं मोहिया कराई जाएं  और इस संघर्ष के लिए समस्त दोषी लोगों को सख्त से सख्त सजा दी जाए।

     इसके दूसरी तरफ पश्चिमी पूंजीवादी मुल्क है जिसमें अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, इटली आदि देश शामिल हैं। ये देश इजराइल का समर्थन कर रहे हैं। इस युद्ध में ये सारे मुल्क आतंकवादी और युध्दोन्मादी इजरायल के साथ खड़े हैं और अमेरिका और इंग्लैंड ने तो अपने युद्धपोत भी इजरायल के समर्थन में वहां भेज दिए हैं।

      यहां पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर इन फिलिस्तीनियों का गुनाह क्या है? इन्होंने तो मुसीबत के मारे यहूदियों को अपने यहां पनाह दी थी, जब हिटलर उनका कत्लेआम कर रहा था और उसने दूसरे विश्व युद्ध में साठ लाख से ज्यादा यहूदियों का कत्ल-ए-आम कर दिया था, तब फिलिस्तीनियों ने ही उन्हें अपने देश में जगह दी थी। उसके बाद दुनिया की साम्राज्यवादी ताकतों के इशारों पर यहां इसराइल और फिलीस्तीन के लोगों में आपस में झगड़ा होने लगा, तब यूएनओ ने एक सार्थक पहल की और फिलिस्तीनी जमीन का 42% हिस्सा इसराइल को दिया, 52% हिस्सा फिलिस्तीनियों को दिया और 8% जेरूसलम का इलाका अपने नियंत्रण में ले लिया।

      मगर इसके बाद भी यह विवाद खत्म नहीं हुआ। इजरायल अपनी विस्तारवादी हरकतों के तहत फिलिस्तीन के हिस्सों पर अवैध कब्जे करता रहा, फिलिस्तीनियों के घर डहाता रहा। उसने कभी भी फिलिस्तीनियों को चैन से नहीं रहने दिया। उनकी चुनी हुई सरकार तक को अपनी आजादी से काम नही करने दिया और आज हालात ये हैं कि इसराइल ने फिलीस्तीन के लगभग 90 फ़ीसदी इलाके पर अवैध कब्जा कर लिया है और उसने अधिकांश फिलिस्तीनियों को जैसे वहां शरणार्थी बना दिया है।

      इस समस्या को बढ़ाने और लगातार क़ायम रखने में पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा अपराधी और दोषी पश्चिम के देश हैं, जो एक साजिश के तहत इजराइल का समर्थन करते रहते हैं और वे पश्चिम एशिया में शांति कायम नहीं होने देना चाहते। इजरायल के माध्यम से उन्होंने पश्चिमी एशिया में अपना एक ठिकाना बना लिया है और वे लगातार तेल के क्षेत्रों पर कब्जा करने के लिए वहां के शासकों को अपने नियंत्रण में रखने के लिए इजराइल का समर्थन करते रहते हैं, वहां युद्ध को भड़कते रहते हैं और वहां पर हथियारों की और सैनिकों की सप्लाई करते रहते हैं जिस कारण इजरायल लगातार फिलिस्तीन क्षेत्र में अवैध कब्जा करता जा रहा है, वहां पर अपनी अवैध कालोनियां बनाता जा रहा है।

    यहां पर इजरायल अमेरिका का एजेंट बन गया है अमेरिका ने ही 1946 से लेकर अब तक इजरायल की सबसे ज्यादा आर्थिक मदद की है जो अब गाजा पट्टी में नरसंहार और कत्लेआम कर रहा है।

उसने यूएनओ के सौ से ज्यादा फैसलों की अंतरराष्ट्रीय कानून की धज्जियां उड़ा दी हैं। अब वह युद्ध अपराधी बन गया है। माना कि इसराइल को अपनी आत्मरक्षा का पूरा अधिकार है, मगर उसे फिलिस्तीन फिलिस्तीनियों की जमीन को अवैध रूप से कब्जाने और फिलिस्तीनियों का जनसंहार करने का कोई अधिकार नहीं है। वह फिलिस्तीनियों की अवैध रूप से कब्जाई गई जमीन को वापस करें और फिलिस्तीन की संप्रभुता को रौंदना बंद करे।

        आज हालात इतने खराब हो गए हैं कि संयुक्त राष्ट्र के मुखिया तक को कहना पड़ रहा है कि “इजराइल फिलिस्तीन विवाद कोई हवा में पैदा नहीं हुआ है” और वे इसको इसके लिए इसराइल को दोषी बता रहे हैं। हालात यहां तक बिगड़ गए हैं कि इसराइल ने यूएनओ के पर्यवेक्षकों को फिलिस्तीन में घुसने से, या गाजा पट्टी में प्रवेश करने से मना कर दिया है। इस तरह से यह मामला नियंत्रण से बाहर होता जा रहा है।अब इसराइल भी अपना रुख बदलता जा रहा है।

      अमेरिका ने कहा है कि अभी इज़राइल को गाजा पट्टी में पैदल सेना का हमला नहीं करना चाहिए। तो इसका तुरत फुरत कमाल का असर देखिए कि इसराइल भी अमेरिका की बात को मानकर अभी रूका हुआ है, वह गाजा पट्टी में पैदल सेना से हमले नही कर रहा है। इसका सीधा मतलब है की इसराइल पूरी तरह से अमेरिका के प्रभाव में है। वह अमेरिका का पिछलग्गू बन गया है। जैसे अमेरिका चाहता है इजराइल वैसा ही करता है।

      इस प्रकार हम देख रहे हैं की जहां दुनिया में शांति स्थापित करने वाले मुल्क इजराइल फिलिस्तीन विवाद का शांतिपूर्ण निपटारा चाहते हैं, वही अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी लुटेरे देश इजराइल फिलिस्तीन संघर्ष को खत्म करने नहीं चाहते। अगर अमेरिका चाहे तो यह विवाद एक दिन में खत्म हो सकता है। मगर पिछले 75 साल का इतिहास बता रहा है कि अमेरिका ने कभी भी यहां पर शांति स्थापित करने की कोशिश नहीं की, बल्कि उसने तो यूएनओ जैसी वैश्विक संस्था को भी नाकाम और नाकारा बनाकर रख दिया है।

      पश्चिमी देशों का आंख मूंदकर इजरायल की आतंकवादी और हमलावर गतिविधियों को समर्थन देना और वहां पर फिलिस्तीनियों के आजादी के अधिकारों को समर्थन न देना, पश्चिमी देशों की सबसे बड़ी भूल और अपराध है। पश्चिमी देशों की इन तमाम गतिविधियों ने मानवता को शर्मसार कर दिया है। यह पश्चिमी देशों की सभ्यता और संस्कृति की सबसे बड़ी हार और पतन है और पूरी दुनिया के जो भी लोग इन निर्दोष बच्चों की हत्या को देखकर, वहां के घायलों की दुर्दशा को देखकर, उनके ढा दिये गये मकानों को देखकर, विचलित नहीं है, इस सबको को देखकर उनके दिमाग परेशान नहीं आता होते हैं, उनका दिल नही बैठ जाता है और उनकी आंखों में आंसू नहीं आते हैं, तो वे लोग सच में इंसान कहलाने के लायक नहीं रह गए हैं, वे इंसानों की औलाद ही नहीं हैं।

      लोगों का कहना है कि इजरायल यूएनओ के सैकड़ो प्रस्तावों को ठुकरा चुका है और वह वहां पर जबरदस्ती अशांति बनाए रखना चाहता है, युद्ध का माहौल बनाए रखना चाहता है ताकि पश्चिम एशिया में अशांति बनी रहे और पश्चिम एशिया में पश्चिमी देशों को खुलकर अपना प्रभुत्व बनाए रखने का मौका मिल सके।

     इस प्रकार फिलिस्तीन में जो निर्दोष बच्चों और महिलाओं की हत्याएं हो रही है, वहां पर लगातार शांति और सुलह के माहौल को बिगाड़ा जा रहा है और उनसे लगातार एक स्वतंत्र फिलीस्तीन का अधिकार छीना जा रहा है, उसके लिए और कोई नहीं बल्कि पश्चिमी ताकतें मुख्य रूप से अमेरिका और इंग्लैंड पूरी तरह से जिम्मेदार हैं। वे पश्चिमी एशिया के तेल के क्षेत्रों पर अपना प्रभुत्व बनाए रखने के लिए, इस विवाद को सदैव जिंदा और अमर रखना चाहते हैं और इसलिए ही वे इस विवाद को अमृत पिलाते रहते हैं और अपनी इस प्रभुत्वकारी मुहिम को जिंदा रखना चाहते हैं।

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