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कमंडल’ क्या रंग दिखाएगा दक्षिण में ?

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गुलशन राय खत्री

चुनावी वर्ष में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद क्या इस बार बीजेपी, अपने पिछले बहुमत के आंकड़ें से पार क्या नया रेकॉर्ड बनाने जा रही है ? मंदिर को लेकर जिस तरह का माहौल उत्तर भारत में देखा गया है, उससे ये माना जा रहा है कि इसका आने वाले चुनाव में बड़ा असर हो सकता है और इसका सीधा फायदा नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी को होगा। हालांकि बीजेपी ने खुद कहा है कि उसने इस बार 400 सीटें जीतने जैसा कोई टारगेट तय नहीं किया है लेकिन पार्टी समर्थक लगातार इस बार चार सौ पार का नारा गढ़ रहे हैं ।

लेकिन क्या वाकई ऐसा होने जा रहा है। हो सकता है कि इस बार राम मंदिर की लहर नए रेकॉर्ड बनाए लेकिन जमीनी स्तर पर देखें तो बिना दक्षिण भारत के ऐसा करना आसान नजर नहीं आता। इसकी साफ वजह है कि बीजेपी उत्तर भारत में पिछले चुनाव में ही चरम पर पहुंच चुकी है। उसमें दर्जन भर सीटें बढ़ या कम हो सकती हैं लेकिन अगर उसे अपनी सीटों में जबरदस्त बढ़ोतरी करनी है तो उसे दक्षिण भारत में विपक्षी दलों के गढ़ में सेंध लगाना होगा।

303 सीटें जीतने वाली बीजेपी ने पिछली बार राजस्थान, मध्यप्रदेश, यूपी, बिहार, दिल्ली, हरियाणा समेत कई राज्यों में क्लीप स्वीप की थी यानी उसने कई राज्यों में तो शत प्रतिशत सीटें जीती थीं जबकि कुछ राज्यों में वह 90 फीसदी तक सीटें जीत गई थी। पिछली बार भी दक्षिण में उसके पास कर्नाटक के अलावा कहीं बड़ी कामयाबी नहीं मिली थी।

अगर दक्षिण भारत की सीटों का गणित लगाएं तो दक्षिण के पांच राज्यों की 129 में से बीजेपी के पास सिर्फ 29 सीटें हैं। इन 29 में से भी 25 उसे कर्नाटक और चार सीटें तेलंगाना से मिली थीं। इसके अलावा तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, और केऱल में बीजेपी के हाथ खाली रहे हैं। ऐसे में सवाल है कि क्या बीजेपी इस बार दक्षिण भारत में भी सेंध लगा पाएगी। इन राज्यों में पिछली बार बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही 29=29 सीटें जीतने में कामयाब हुए थे जबकि बाकी सीटें क्षेत्रीय दलों के पास थीं।

दक्षिण में भी इस बार अंतर ये है कि कर्नाटक में अब कांग्रेस की पूर्ण बहुमत वाली सरकार है। इसी तरह तेलंगाना में जहां पिछली बार बीजेपी को परोक्ष रूप से समर्थन करने वाली पार्टी की सरकार थी लेकिन इस बार वहां भी कांग्रेस की सरकार है। जाहिर है कि ऐसे में दक्षिण में बीजेपी के लिए अधिक सीटें जीतने से बड़ी चुनौती अपनी पिछली जीती हुई सीटों को बचाने की भी होगी। यही नहीं, अभी दक्षिण में आंध्रप्रदेश को छोड़ दें तो वहां किसी ऐसे क्षेत्रीय दल की सरकार नहीं है, जिससे बीजेपी से बेहतर संबंध हों।

अगर ये मान लिया जाए कि उत्तर भारत में पहले की तरह ही बीजेपी अपना प्रदर्शन करते हुए पिछली जीती हुई सीटें बरकरार रखने में कामयाब हो जाती है तो उसकी सीटों में बढ़ोतरी कैसे होगी ? ये तभी संभव है, जबकि राम मंदिर का जादू उत्तर भारत के साथ दक्षिण भारत में भी चले। लेकिन क्या ये संभव होगा ?

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