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रामचरितमानस : क्या कहते हैं इतिहासकार रोमिला थापर?

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 पुष्पा गुप्ता

     “आम धारणा है कि रामचरितमानस की रचना मुस्लिम मुगल शासकों के विरुद्ध हिंदुओं को संगठित करने के लिए की गई थी. सच यह है कि जब-जब ब्राह्मण कृतिकारों को लगा कि ब्राह्मणवादी व्यवस्था खतरे में है, उन्होंने कलियुग की बुराइयों का चित्र गढ़ा और यह इस्लाम के भारत आने के पूर्व भी बहुत बार हो चुका था.

      एक ब्राह्मण होने के नाते तुलसी नि:संदेह उन समकालीन धार्मिक आंदोलन (जो आज उस व्यापक दायरे में हैं जिन्हें हिंदू नाम से जाना जाता है) को लेकर उद्विग्न थे, जो ब्राह्मण आधिपत्य एवं उनके ग्रंथों का निषेध कर वैकल्पिक धार्मिक मतों का प्रचार करते थे और गैर ब्राह्मणों के बीच जिसका प्रभाव बढ़ रहा था.

    पौराणिक व शाक्त पूजन से प्रेरणा प्राप्त अधिकतर सम्प्रदाय रुढ़िवादी ब्राह्मण परंपरा के विरोधी थे.” 

    (एनाटॉमी आफ ए कन्फ्रंटेशन, पृ 155).

मंदिर आंदोलन और ‘रामचरितमानस’

“बाबरी मस्जिद रामजन्मभूमि की पृष्ठभूमि में धार्मिक उन्माद को औपन्यासिक बनाते हुए दूधनाथ सिंह के साथ- साथ शशि थरूर और मेहर पेस्टन जी भी अयोध्या, तुलसीदास और रामचरितमानस  को अपने कथ्य में विन्यस्त करते हैं.

      शशि थरुर के उपन्यास ‘रायट’ के  पात्र प्रोफेसर सरवर के शब्दों में ‘ राम पूजकों के पहले रामानंदी सम्प्रदाय का अभ्युदय 14 वीं-16 वीं शताब्दी के मध्य काश्मीर मे हुआ था. और उसके बाद तुलसीदास ने 16 वीं शताब्दी में रामचरितमानस लिखा  जिसमें  राम को  देवत्व प्रदान करते हुए उनके जीवन चरित के  उन पहलुओं  को दृश्य ओझल किया गया जिन्हें  इसके पूर्व के ग्रंथों में ईश्वरीय नहीं  माना गया था  और इस तरह  राम को  हिन्दू  देवताओं के बीच  सर्वोच्च  स्थान   प्रदान किया गया.

     मेहर पेस्टन जी भी अपने उपन्यास ‘परवेज़’  में इस तथ्य को औपन्यासिक पात्र  पत्रकार सिद्धार्थ की जुबानी यूँ दर्ज करती  हैं, ‘ हमें बताया गया कि अयोध्या में लगभग दस हजार मंदिर हैं जिनमें से बहुत से राम को समर्पित हैं.

       कम से कम आधे तो पुराने हैं. लेकिन रामभक्ति की  लोकप्रियता  16 वीं शताब्दी में तुलसीदास द्वारा  रामचरितमानस लिखे जाने के बाद बढ़ी और लगभग उन्हीं  वर्षों बाबरी मस्जिद का निर्माण  हुआ था.

     ‘ यह अनायास नहीं है कि 22 नवम्बर 1949 को बाबरी मस्जिद में रामलला की मूर्ति रखे जाने से लेकर 6 दिसम्बर, 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस तक अयोध्या या उसके आसपास के ग्रामीण इलाकों में रामचरितमानस का पाठ धार्मिक उन्माद को भड़काने के लिए किया गया.

      रामलला की मूर्ति के बाबरी मस्जिद में प्रकटीकरण के ‘चमत्कार’ के बारे में फैजाबाद जिला कांग्रेस के तत्कालीन सचिव अक्षय ब्रह्मचारी द्वारा उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गृहमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को लिखे पत्र के हवाले से इस तथ्य की पुष्टि करते हुए एजी नूरानी का मत है :

    “वास्तव में यह चमत्कार अखिल भारतीय रामायण महासभा द्वारा मस्जिद के बाहर ‘रामचरितमानस’ के नौ दिनों के अखंड पाठ का चरमविंदु था.”

(एनाटॉमी आफ ए कन्फ्रंटेशन, पृ.68). 

मो. आरिफ़ अपने अंग्रेजी उपन्यास ‘दि ड्रीमी ट्रैवलर’ में बाबरी मस्जिद   ध्वंस अभियान के दौरान ‘रामचरितमानस’ के इस्तेमाल का प्रसंग भयभीत व पलायन करते मुसलमानों की जुबानी कुछ यूँ प्रस्तुत है :

      “चौक में रामचरितमानस का अखंड पाठ चल रहा था. रामायणपाठ के दौरान नफरत भरे नारों के के स्वर उस शांत रात में आसानी से सुनाई पड़ रहे थे.”

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