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वैदिक दर्शन : कामचिंतन~लेखन क्या महानता है?

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         डॉ. विकास मानव 

   नरनारी के संगम में ‘काम’ और काम में भगवान : यहां गतदिवस अपडेट हुए मेरे इस शोधलेख को पढ़कर कुछेक शुभचिंतकों ने प्रश्न किया है की आप जैसे व्यक्ति को काम पर नही लिखना चाहिए. कामचिंतन- लेखन क्या महानता है?

   मैं काम पर बहुत कम लिखता हूँ. तमाम सब्जेक्ट पर निरंतर लिखता हूँ : एक बात. दूसरी बात कबीर के शब्दों में :

साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय.

सारसार को गहि रहे, थोथा देय उड़ाय.

  (जो जिसे अ-सार, व्यर्थ, बकवास लगे या समझ से परे लगे उसे अनदेखा कर देना चाहिए).

       अब काम की बात :

 क्षितिज में आकाश से पृथिवी का परिरम्भ हो रहा है। नदियाँ सागर से समागम कर रही है। लताएँ वृक्षों का आलिंगन कर रही है। विद्युते मेघों से संश्लिष्ट हो रही हैं। सूर्योदयास्त में निशा एवं दिवस का सम्मिलन होता रहता है। 

     नर और नारी परस्पर खिंचते हुए उपबद्ध होते हैं। ध्याता अपने ध्येय से एकाकार होने को आतुर है। यह जिस शक्ति के कारण घटित हो रहा है, उसका नाम काम है। 

     माता अपने शिशु को हृदय से लगा कर स्तनपान करा रही है। गाय अपने बछड़े को दूध पिलाती हुई चाट रही है। सूर्य के चारों ओर घूमती हुई धरती अपने अक्ष पर नृत्य कर रही है। सभी यह प्रसन्नता पूर्वक अपनी अपनी कक्षाओं में चलते हुए नाच रहे हैं।

      पर्वत (मेघ) दुंदुभी बजाते हुए गम्भीर घोष कर रहे हैं। अप्सराएँ (दामिनियाँ) चमकती दमकती हुई नृत्य कर रही हैं। पवन के झोकों से आन्दोलित पत्तियाँ गायन कर रही हैं। पुष्पों से लदे वृक्ष हँस रहे हैं। चहचहाते हुए पक्षी परमसत्ता महामाया की स्तुति कर रहे हैं। 

      जिस भाव से यह सब हो रहा है उसे काम कहते हैं। जिसे पाने के लिये पार्वती ने कठोर तप किया, वह शिवतत्व काम है। जिसके लिये सीता ने अयोध्या का त्याग कर राम का अनुगमन किया, वह वस्तु काम है। जिस भाव से प्रेरित हो कर इन्द्र ने गौतम पत्नी अहल्या का शीलभंग किया, वह काम है।

 जिस भाव से प्रेरित हो कर मुनिपुंगव पराशर ने धीवरकन्या मत्स्यगन्धा के गर्भ से महामुनि व्यास को उत्पन्न किया, ऋषि विश्वामित्र ने अप्सरा मेनका को गर्भवती कर शकुन्तला नाम की कंन्या उत्पन्न किया, अप्सरा उर्वशी पर दृष्टि डालते ही मित्र और वरुण देवता का वीर्य स्खलित होने से अगस्त्य एवं वसिष्ठ का जन्म हुआ, उस भाव का नाम काम है। 

     जिस शक्ति के कारण परमसत्ता द्वैत द्यावापृथिवी, अग्निसोम, रामजानकी, शिवपार्वती, विष्णुलक्ष्मी, ब्रह्मावाणी, इन्द्रशची, अत्र्यनसूया, पुरुष प्रकृति, नरनारी, ब्रह्ममाया के रूप में वर्त रही है, वह काम है।

     व्यापक होने से काम को तद् कहा जाता है। तद् =तन् तनोति क्विप्  नस्य दः। 

     जो अपना विस्तार करता है, अपने को फैलाता है, व्यापक बनाता है वह तत्व तद् है । कण कण में काम | घट घट में काम भीतर बाहर काम ऊपर नीचे काम आगे पीछे काम। 

     निकट दूर काम। यहाँ – वहाँ काम सर्वत्र काम की सत्ता है। 

   कोऽदात् कस्मा अदात् कामोऽदात् कामायादात्।

 कामो दाता कामः प्रतिग्रहीता कामैतत्ते।। 

    ~यजुर्वेद (७।४८)

 यः इन्द्रेण सरथं याति देवो वैश्वानर उत विश्वदाव्यः।

 यं जोहवीमि पृतनासुसासहिं तेभ्यो अग्निभ्यो हुतमस्त्वेतत्।। 

यो देवो विश्वाद् यमु काममाहुर्यं दातारं प्रतिगृह्णन्तमाहुः।

 यो धीरः शक्रः परिभूरदाभ्यस्तेभ्यो अग्निभ्यो हुतमस्त्वेतत्।।

~अथर्ववेद (३।२१।३, ४)

  अहमेव स्वयमिदं वदामि जुष्टं देवेभिरुतमानुषेभिः।

 यं कामये तं तमुग्रं करोमि तं ब्रह्माणं तं सुमेधाम्।। 

  ~ऋग्वेद  (१०।१२५।५)

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