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आपातकाल के दौरान क्या-क्या हुआ? बाद में इसे कैसे हटाया गया?  

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हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव में संविधान सत्ता और विपक्ष दोनों की ओर से बड़ा मुद्दा था। चुनाव प्रचार के दौरान दोनों ने अपने-अपने तरीके से इस मुद्दे को उठाया। यही बानगी 18वीं लोकसभा के पहले संसद सत्र में दिखी। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी संसद में संविधान के प्रति लिए दिखे। वहीं भाजपा ने संसद में कांग्रेस को इंदिरा गांधी के शासन में लगाए गए आपातकाल को याद दिलाया। 1975 में 25 और 26 जून की दरम्यानी रात से 21 मार्च 1977 तक (21 महीने) तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की थी। 

इन्हीं आरोप-प्रत्यारोपों के बीच केंद्र सरकार ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में घोषित कर दिया है। केंद्र सरकार ने शुक्रवार को इस संबंध में अधिसूचना भी जारी कर दी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक ट्वीट यह दिन उन सभी लोगों के विराट योगदान का स्मरण करायेगा, जिन्होंने 1975 के आपातकाल के अमानवीय दर्द को झेला था। 

के पन्नों में भी आपातकाल की हर खबर दर्ज है। 25 जून को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आपातकाल लगाने से लेकर 1977 में हटने तक हर खबर अमर उजाला के अंकों में नजर आती है। आइये जानते हैं कि 1975 में देश में कैसे लगाया गया था आपातकाल? इसके क्या कारण थे? आपातकाल के दौरान क्या-क्या हुआ? बाद में इसे कैसे हटाया गया?  

25 जून 1975 की स्याह रात, जब आपातकाल की घोषणा की गई, उस रात से ही पुलिस ने विरोधी दलों के नेताओं, बच्चों पर जो जुल्म किए, उन्हें याद कर लोकतंत्र सेनानी अब भी सिहर उठते हैं। शहर में 150 से ज्यादा लोकतंत्र सेनानी और हजारों लोग ऐसे हैं, जिन्होंने 21 महीने के आपातकाल में पुलिस के जुल्म झेले और जेल में यातनाएं सहीं। लोकतंत्र सेनानी और अब विधायक पुरुषोत्तम खंडेलवाल बताते हैं कि जाट हाउस से निकलते ही लोहामंडी थाने की पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया। वह 15 साल के थे। जेल में पिटाई और केवल सूखी रोटी मिलती थी। दिनभर प्यासा रखा जाता था कि मनोबल तोड़ा जा सके।

कई दिनों के बाद वह जेल से रिहा हुए। आपातकाल का एक-एक दिन उनके जेहन में बसा है। लोकतंत्र सेनानी विजय गोयल और उनके छोटे भाई संजय गोयल पर भी जुल्म हुआ। संजय गोयल तब सेंट जोंस इंटर कॉलेज के सातवीं के छात्र थे। पुलिस ने उन्हें पकड़ा और डेढ़ महीने जेल में रखा। वह तब 12 साल के थे और सबसे छोटे आंदोलनकारी थे। उनके बड़े भाई और संघ के स्वयंसेवक विजय गोयल बताते हैं कि इंदिरा गांधी के खिलाफ नारे लगाने पर पुलिस ऐसी यातनाएं देती थी कि रूह कांप जाए। उन्होंने जेल से ही परीक्षा दी थी।

खाली रखा था संपादकीय
अमर उजाला के पुराने पन्नों में दर्ज है कि तत्कालीन सरकार ने आपातकाल में जब प्रेस पर सेंसरशिप और पाबंदियां लगाईं तो अमर उजाला ने अपने संपादकीय की जगह खाली छोड़कर विरोध दर्ज कराया था। आपातकाल के समर्थन में पूरी सरकार के मंत्री जुट गए थे, जो जगह-जगह जाकर आपातकाल की खूबियां गिना रहे थे।

शाह आयोग का किया था गठन
जनता सरकार आने पर मार्च 1977 में आपातकाल हटाने की घोषणा नई सरकार के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने की थी। 21 महीने के आपातकाल में सरकारी मशीनरी ने जो दुरुपयोग किए, उनकी जानकारी के लिए तत्कालीन सरकार ने शाह आयोग का गठन 20 मई 1977 को किया। सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत न्यायमूर्ति जेसी शाह को आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था।

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