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80 दिनों में मणिपुर में क्या-क्या हुआ?:निर्वस्त्र परेड, गैंगरेप, हत्याएं, लूट, आगजनी और पलायन

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मणिपुर का वीडियो परेशान करने वाला है। यह कोई नहीं जानता कि महिलाओं के साथ बर्बरता की यह केवल एक घटना थी या इस तरह की घटनाओं का पैटर्न है। केंद्र और राज्य सरकार बताए कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए अब तक क्या कदम उठाए हैं? हम कुछ समय दे रहे हैं। कार्रवाई नहीं हुई तो कोर्ट को दखल देना पड़ेगा।’

सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में दो कुकी महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाए जाने के वीडियो पर यह टिप्पणी की है। इस वीडियो ने सुप्रीम कोर्ट समेत पूरे देश का ध्यान मणिपुर की तरफ खींचा है, जो पिछले 80 दिनों से हिंसा की चपेट में है।

भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे कि मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच हिंसा की शुरुआत कैसे हुई और लड़कियों का निर्वस्त्र वीडियो वायरल होने तक पिछले 80 दिनों में क्या-क्या हुआ?

मणिपुर में कैसे भड़की हिंसा की चिंगारी

मैतेई ट्राइब यूनियन पिछले एक दशक से मैतेई को आदिवासी दर्जा देने की मांग भी कर रही थी। इसी सिलसिले में उन्होंने मणिपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इस पर सुनवाई करते हुए मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से 19 अप्रैल को 10 साल पुरानी केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय की सिफारिश प्रस्तुत करने के लिए कहा था। इस सिफारिश में मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के लिए कहा गया है।

इसके अलावा मणिपुर सरकार फॉरेस्ट लैंड सर्वे कर रही है, जिसमें अवैध रूप से कब्जा जमाए लोगों को हटाया जा रहा था। इन दोनों वजहों से कुकी आदिवासियों में नाराजगी थी। इसके विरोध में 28 अप्रैल को द इंडिजेनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने चुराचांदपुर में 8 घंटे बंद का ऐलान किया था। इसकी वजह से मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को अपना पहले से प्रस्तावित कार्यक्रम रद्द करना पड़ा।

मणिपुर में हिंसा की शुरुआत चुराचांदपुर जिले से हुई, जो राजधानी इंफाल के दक्षिण में करीब 63 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 28 अप्रैल को देर रात तक पुलिस और प्रदर्शनकारियों में झड़प होती रही। उसी रात तुइबोंग एरिया में उपद्रवियों ने फॉरेस्ट रेंज ऑफिस को आग के हवाले कर दिया। 27-28 अप्रैल की हिंसा में मुख्य तौर पर पुलिस और कुकी आदिवासी आमने सामने थे।

3 मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर ने ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकाला। ये मैतेई समुदाय को ST दर्जा देने के विरोध में था। इसी मार्च के दौरान स्थिति बिगड़ गई और इसने जातीय संघर्ष का रूप ले लिया। एक तरफ मैतेई समुदाय के लोग, तो दूसरी तरफ कुकी समुदाय के लोग।

महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाने का वीडियो 4 मई का है। यानी हिंसा भड़कने के अगले ही दिन का। भीड़ इतनी उग्र थी कि दूसरे समुदाय की महिलाओं के साथ ऐसा सलूक किया गया। तब से करीब 80 दिन बीत चुके हैं। मणिपुर की हवा में आगजनी की दुर्गंध और मार-दो, जला-दो के नारे गूंजते रहते हैं।

महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाने के वीडियो पर मणिपुर के मुख्यमंत्री ए बीरेन सिंह ने कहा कि यह तो एक वीडियो वायरल हुआ है, इस तरह की सैकड़ों घटनाएं हुई हैं। 80 दिनों से हिंसा में झुलसे मणिपुर की 6 ऐसी ही बड़ी घटनाओं को जानते हैं…

1. भीड़ ने एंबुलेंस में आग लगा दी, बच्चे समेत दो महिलाओं की मौत

4 जून को मणिपुर के पश्चिम इंफाल जिले में भीड़ ने एक एंबुलेंस को रास्ते में रोक उसमें आग लगा दी। एंबुलेंस में सवार 8 साल के बच्चे, उसकी मां और एक अन्य रिश्तेदार की मौत हो गई।

एक अधिकारी ने बताया कि गोलीबारी की एक घटना के दौरान बच्चे के सिर में गोली लग गई थी। उसकी मां और एक रिश्तेदार उसे इंफाल के अस्पताल ले जा रहे थे। पीड़िता मां मैतेई समुदाय से आती थीं और उनकी शादी एक कुकी से हुई थी।

3. महिला को गोली मारी फिर चेहरा बिगाड़ दिया

पिछले शनिवार को मणिपुर के इंफाल पूर्वी जिले के सावोमबुंग इलाके में एक महिला की गोली मारकर हत्या कर दी गई और उसका चेहरा विकृत कर दिया गया।

2. विधायक का गार्ड कटा सिर लेकर घूम रहा था

मणिपुर के BJP विधायक शांति कुमार उर्फ सनीसम प्रेमचंद्र सिंह के सुरक्षा गार्ड मैरेम्बम रोमेश मैंगंग पर कुकी समुदाय के डेविड थीक का गला काटने का आरोप लगा है।

वायरल हो रही एक तस्वीर में मैंगंग को अपने हाथ में डेविड थीक का कटा हुआ सिर और दूसरे हाथ में छुरी लिए देखा जा सकता है।

बताया जा रहा है कि डेविड थीक 2 जुलाई की सुबह 12 बजे बिष्णुपुर जिले में हुई झड़प के दौरान मारा गया था। इस झड़प में कुल तीन लोगों की मौत हो गई थी।

4. पूर्व सैनिक को घर से घसीटकर ले गए और सिर में गोली मार दी

4 जून को इंफाल से 17 किमी दूर मैतेई गांव फायेंग में भीड़ ने पूर्व सैनिक रमेश सिंह का घर फूंक दिया। रमेश सिंह को डर था कि कुकी उन पर हमला कर सकते हैं इसलिए वे लाइसेंसी गन लेकर गांव में गश्त करते थे।

रमेश सिंह के बेटे रॉबर्ट ने बताया कि एक रात कुकी लोगों की भीड़ ने गांव पर हमला कर दिया। कई घरों में आग लगा दी। हमले में उनके पिता को पैर में गोली लगी, हमलावर उसी हालत में उन्हें घसीटकर पहाड़ों में ले गए। रॉबर्ट ने बताया कि अगले दिन उनके पिता की लाश मिली, उनके सिर में गोली लगी थी।

5. स्कूल के बाहर महिला की गोली मारकर हत्या कर दी

6 जुलाई को अज्ञात बंदूकधारियों ने मणिपुर के पश्चिम इंफाल जिले में एक स्कूल के बाहर एक महिला की गोली मारकर हत्या कर दी थी। यह घटना हिंसा के कारण राज्य में दो महीने बाद कक्षाएं शुरू होने के एक दिन बाद क्वाकीथेल मायाई कोइबी इलाके में हुई।

अधिकारियों ने बताया कि महिला किसी काम से स्कूल के पास गई थी। हालांकि, उसका किसी स्कूल से कोई संबंध नहीं था।

6. फुटबॉल की तरह लात मारते रहे, बेहोश होने पर मरा हुआ छोड़कर चले गए

एक युवती ने टेलीग्राफ अखबार से बातचीत में बताया कि 4 मई की शाम को 4 बजे 150 हथियारबंद पुरुष और महिला मेरी इंस्टीट्यूट में घुस आए। ये लोग आइडेंटिटी कार्ड देख देख कर कुकी छात्र-छात्राओं को निशाना बना रहे थे।

डॉरमेट्री में 90 स्टूडेंट थे। युवती ने बताया, ‘वहां पर 10 लोग कुकी से थे। दो को पुलिस ने बचा लिया। 6 भाग गए। मुझे और मेरे दोस्त को पकड़ लिया। लगभग आधे घंटे से अधिक समय तक वे लोग हमें फुटबॉल की तरह लात मारते रहे। लोग जत्थे में आकर हम पर कूद रहे थे। बेहोश होने से पहले मैं ये सुन पा रही थी कि क्या मैं जिंदा हूं। वे लोग शायद मरा हुआ मानकर छोड़ गए थे।मुझे जब होश आया तो मैं जवाहरलाल नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज इंफाल के ICU में भर्ती थी। मुझे बताया गया था कि पुलिस वालों ने मुझे उठा कर वहां भर्ती कराया था। मेरे कुछ दोस्त और परिवार के लोग मुझे लेकर दिल्ली के एम्स ले आए और मुझे यहां भर्ती कराया गया।’

मणिपुर एक क्रिकेट स्टेडियम की तरह है। इसमें इम्फाल घाटी पिच की तरह बिल्कुल बीच में है। ये पूरे प्रदेश का 10% हिस्सा है, जिसमें प्रदेश की 57% आबादी रहती है। बाकी चारों तरफ 90% हिस्से में पहाड़ी इलाके हैं, जहां प्रदेश की 42% आबादी रहती है।

इम्फाल घाटी वाले इलाके में मैतेई समुदाय का दबदबा है। ये ज्यादातर हिंदू हैं। मणिपुर की कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी करीब 53% है। मणिपुर के कुल 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई समुदाय से हैं।

पहाड़ी इलाकों में 33 मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती हैं, जिनमें मुख्य रूप से नागा और कुकी जनजाति हैं। ये दोनों जनजातियां मुख्य रूप से ईसाई हैं। मणिपुर के कुल 60 विधायकों में से 20 विधायक जनजातियों से हैं। मणिपुर में करीब 8% मुस्लिम और करीब 8% सनमही समुदाय के लोग हैं।

घाटी और पहाड़ी के इस डिवाइड की वजह से मणिपुर में कई तरह की समस्याएं पैदा होती हैं।

भारतीय संविधान के आर्टिकल 371C के तहत मणिपुर की पहाड़ी जनजातियों को स्पेशल कॉन्स्टिट्यूशनल प्रिविलेज मिले हैं, जो मैतेई समुदाय को नहीं मिले। ‘लैंड रिफॉर्म एक्ट’ की वजह से मैतेई समुदाय पहाड़ी इलाकों में जमीन खरीदकर सैटल नहीं हो सकते, जबकि जनजातियों पर पहाड़ी इलाके से घाटी में आकर बसने पर कोई रोक नहीं है। मैतेई मांग कर रहे हैं कि उन्हें भी ST का दर्जा मिले, जिससे वो भी पहाड़ी इलाकों में सैटल हो सकें।

मैतेई ST दर्जे के लिए क्या तर्क देते हैं और कुकी इसका विरोध क्यों करते हैं?

मैतेई ट्राइब यूनियन का तर्क है कि 1949 में भारत में मणिपुर रियासत के विलय से पहले वे एक मान्यता प्राप्त जनजाति थे, लेकिन विलय के बाद उन्होंने अपनी पहचान खो दी।

यूनियन ने हाईकोर्ट में रखे अपने तर्क में कहा था कि ST दर्जे की मांग नौकरियों, शैक्षणिक संस्थानों और टैक्स छूट में आरक्षण से कहीं आगे जाती है। उन्होंने कहा कि समुदाय को संरक्षित करने की आवश्यकता और मैतेई लोगों की पैतृक भूमि, परंपरा, संस्कृति और भाषा को बचाने की जरूरत है।

वहीं कुकी और नगा जनजनातियां हमेशा से मैतेई को ST का दर्जा दिए जाने को विरोध करती रही हैं। इनका तर्क है कि मैतेई राज्य में प्रमुख आबादी है और राजनीति में भी उनका प्रभुत्व है। वे कहते हैं कि मैतेई लोगों की मणिपुर भाषा पहले से ही संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है।

साथ ही मैतेई हिंदू को पहले से ही अनुसूचित जाति यानी SC या अन्य पिछड़ा वर्ग यानी OBC का दर्जा मिला है। यानी इनमें मिलने वाले अवसरों तक पहले से ही उनकी पहुंच है।

जैसा कि JNU के सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ लॉ एंड गवर्नेंस के असिस्टेंट प्रोफेसर थोंगखोलाल हाओकिप ने अपने पेपर द पॉलिटिक्स ऑफ शेड्यूल्ड ट्राइब स्टेटस इन मणिपुर में लिखा है- यह दावा कि मैतेई को अपनी संस्कृति और पहचान की रक्षा के लिए ST दर्जे की आवश्यकता है, यह खुद के खिलाफ एक तर्क है।

पॉलिटिकल साइंटिस्ट खाम खान सुआन हाउजिंग भी इससे सहमति जताते हैं। वह कहते हैं कि अगर मैतेई खुद को ST की लिस्ट में शामिल कराने में सफल होते हैं तो वे भारत में ST, SC, OBC और EWS का लाभ हासिल करने वाले एकमात्र समुदाय बन जाएंगे।

कब थमेगी मणिपुर हिंसा?

हिंसा भड़कने के बाद केंद्र सरकार ने भाजपा की चुनी हुई सरकार से कानून व्यवस्था को अपने हाथ में ले लिया। राज्य में कर्फ्यू लगा हुआ है। इंटरनेट सेवाएं बंद हैं। मेन हाईवे को प्रदर्शनकारियों ने बंद कर रखा है। गृह मंत्री अमित शाह राज्य का दौरा कर चुके हैं। इसके बाद भी कोई खास बदलाव नहीं आया है।

एक सरकारी अधिकारी ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा- ‘मुझे नहीं लगता कि यह जल्द ही खत्म होने वाला है। यह तब तक चलता रहेगा जब तक दोनों पक्ष थक नहीं जाते- या एक पक्ष प्रभुत्व हासिल नहीं कर लेता। यहां एक लंबी दौड़ चल रही है।’

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