Site icon अग्नि आलोक

*इतिहास : क्या दिखाता है प्राचीन भारत*

Share

         ~ सुधा सिंह 

हमारे प्राचीन साहित्य में भारत की जलवायु, वातावरण, मौसम और कृषि को लेकर बहुत सारी बातें लिखी मिलती हैं लेकिन जब यहाँ के जलवायु और कृषि की विशेषताओं का वर्णन हम किसी विदेशी यात्री के मुँह से सुनते हैं जो कि पहले किसी और देश का था लेकिन अब वह भारत मे रहने लगा है तो वहाँ के जलवायु से वह भारतीय जलवायु को बहुत अलग पाता है, फिर यहाँ की विशिष्ट और मजेदार प्राकृतिक बातों को वह आश्चर्यचकित होकर लिखता है।

       चौथी सदी ईस्वी पूर्व चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में आने वाला विदेशी राजदूत मेगस्थनीज से भारत का वर्णन किसी विदेशी के दृष्टि से शुरू होता है।

 मेगस्थनीज ने तत्कालीन भारत के शान्ति और समृद्धि की चर्चा करते हुये यहाँ की आत्मनिर्भरता और उर्वर भूमि के बारे में बताया है। वह लिखता है कि भारत का विस्तार इतना है कि धरती का पूरा उत्तरी ग्रीष्ममण्डल इसमें आ जायेगा। मेगस्थनीज की इंडिका में यह देश, इसका आकार,भूगोल, नदियाँ, मिट्टी, मौसम, जन्तु और किवंदंतियों आदि का समावेश है। 

      अन्य यूनानी लेखक भी विशेष रूप से भारत के जंतुओं के बारे में दिलचस्पी के साथ लिखते हैं क्योंकि यहाँ के जानवरों की विविधता जिसमें हाथी, बंदर, घोड़े, आदि हैं उन्हें आकृष्ट करती हैं। उनके लेखन में भारत की तुलना तत्कालीन मिस्र और यूरोप से की गई है।

      गंगा और सिंधु की तुलना वे नील और डैन्यूब नदी से करते हैं और कहते हैं कि जिन जानवरों को हमने पालतू बना लिया है वो अभी यहाँ जँगली हैं। कुछ अविश्वसनीय बातें भी लिखतें हैं, जैसे कि भारत में एक सिंग वाले घोड़े जिनके सिर हिरण के हैं मिलते हैं।

       आगे वे “सिलास” नाम के एक ऐसी नदी के बारे में बताते हैं जिसमें सबकुछ अप्राकृतिक है, दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं जिसे इसके ऊपर तैराया न जा सके, ऐसा कोई भी नहीं जो इसे तैरकर पार कर सके, हल्की से हल्की चीज़ भी इसके तली में जाकर बैठ जाती है।

      ज्यादातर यूनानी लेखक मेगस्थनीज के ही लिखी बातों को उध्वरण देकर लिखते हैं पर मजे की बात है कि मेगस्थनीज की मूल प्रति “इंडिका” ग़ायब है।

इससे समझना चाहिये कि समय के साथ ‘मूल प्रति’ ग़ायब हो जाती है।

इन्हीं सब बातों को पढ़कर यूनानी लेखक स्ट्रैबो पहली सदी के आसपास लिखता है कि जिन्होंने भी भारत के बारे में लिखा है वो झूठ ही लिखते आये हैं। इन झूठों की सूची में डाईमेकस का नाम सबसे ऊपर है, मेगस्थनीज का नाम इसके बाद आता है।

      इसमें ओनेसिक्रेट्स और निआर्कस जैसे कुछ इक्के-दुक्के लोग हैं जिन्होंने हकलाते हुये कुछ सच सयोंग से लिख डाला है। 

वह यहीं नहीं रुकता बल्कि कहता है कि इन झुट्ठे लोगों ने होमर की मिथिकीय कथाओं को फिर से हरा-भरा कर दिया है जिसमें सारस पक्षी और बौनों के बीच लड़ाई का वर्णन है और ये बौने भी मात्र तीन अँगुल साइज के हैं।

     अरे! इन्होंने तो भारत के उन चींटियों के बारे में भी लिखा है जो सोना खोदती हैं। 

ग्यारहवीं सदी में आने वाला अलबरूनी अपने किताब-उल-हिन्द में लिखता है कि हिंदुस्तान मैदानों से आबाद देश है। जहाँ तीन ओर से घिरे पर्वतों से पानी बहकर आता रहता है। वह मैदानों में बिखरे गोल पत्थरों और रेत को देखकर अनुमान करता है कि किसी समय यहाँ समुद्र था जो कि नदियों द्वारा लायी मिट्टियों से पट गया।

      सल्तनत काल में अमीर खुसरो, जिनके पूर्वज खुरासान(उत्तरी ईरान)होकर आए थे, उनके अनुसार हिंदुस्तान की जलवायु खुरासान से कहीं अच्छी है। यहाँ के अंगूर और अमरूद के स्वाद का कोई जोड़ नहीं। पान तो ऐसी चीज है जो पूरे विश्व मे दुर्लभ है।

     आम, केला, इलायची, कपूर, लौंग यहाँ खूब होते हैं। शायद वह बैशाख का ही महीना था जब यहाँ के खुले आकाश को देखकर खुसरो ने यह पहेली लिखा था:-

एक थाल मोती से भरा, सबके सिर पर औंधा धरा।

चारों ओर वह थाली फिरे, मोती उससे एक न गिरे।। 

     अमीर खुसरो को हिंदुस्तान से इतना प्यार हो गया था कि उन्होंने ये लिख दिया:- यह भूमि सोलोमन के राज्य से भी अधिक शानदार है, यहाँ के काटें वास्तव में जूही और चमेली के फूल हैं। आगे लिखते हैं कि कितना खुशनुमा है इस देश का मौसम जहाँ इतने पक्षी ऊँचे स्वर में गाते हैं। वह खुसरो ही थे जिन्होंने हिंदुस्तान को धरती का स्वर्ग कहा है।

गर फिरदौस बर रूये ज़मी अस्त,

हमी अस्तो हमी अस्तो हमी अस्त!

     सल्तनतकाल,1333 ई0 में मोरक्को से भारत आने वाला तत्कालीन दुनिया का सबसे घुमक्कड़ यात्री इब्नबतूता ने लिखा है कि सिंध से दिल्ली तक कि यात्रा 50 दिन में पूरी होती है। हिंदुस्तान में ऐसे पौधे हैं जो न तो मेरे देश में और न ही किसी और देश मे होते हैं। यहाँ के आम की बात ही कुछ और है, खरीफ में जब यह अम्बा(आम) पकता है तो पीले रंग का हो जाता है, इसे सेब की तरह खाया जाता है जो बहुत ही मीठा है।

       यहाँ बरकी (कटहल) के फल का स्वाद बेजोड़ है। पान के बारे में वह लिखता है, पान का एक बीड़ा पेश करना सोना-चाँदी देने से भी अधिक सम्मान रखता है। यदि किसी मेहमान को एक साथ 5 पान के बीड़े मिल जायें तो यह सबसे अधिक सम्मानित व्यक्ति हो जाता है। 

समरकंद(उज्बेकिस्तान) से चलकर आने वाला मुगल साम्राज्य का संस्थापक बाबर हिंदुस्तान के इन्हीं सब विशेषताओं को सुनकर लालायित होता।

     1526 ई0 में पानीपत के विजय के बाद वह कुछ वर्षों तक तो युद्धों में फँसा रहा लेकिन थोड़ा भी समय मिलने पर उसने यहाँ के भूगोल, जलवायु और निवासियों का विस्तार से वर्णन अपनी किताब “बाबरनामा” में किया है।

      बाबर आश्चर्यचकित होकर  कहता है- अरे यहाँ तो चौथे मौसम का कुछ पता ही नहीं, यहाँ का मौसम बस पहली, दूसरी और तीसरी स्थिति में है। यहाँ के पहाड़, नदियाँ, जंगल और मैदान, पशु-पौधे, भाषा, और हवाएँ सब अलग प्रकार की हैं।

बरसात के दिनों में यहाँ की नदियाँ बड़े वेग से नीचे की ओर दौड़ती हैं और मैदानों में फैल जाती हैं। यहाँ ठंडी और गर्मी के मौसम भी आनंददायक हैं। जब कभी बारिश होने वाली होती है तो हवा बड़े जोर से चलती है और धूल इतना उड़ती है कि कोई एक-दूसरे को देख ही नहीं पायेगा।

     यहाँ के लोग इसे “ऑंधी” कहते हैं। बाबर कहता है कि मुझे हिंदुस्तान में तीन चीजों से नफरत होती है- गरमी, ऑंधी और यहाँ की धूल। 

       25 मई 1529 की ऐसी ही एक ऑंधी-तूफान का वह जिक्र करता है, एक रात 5 घड़ी समय बीती थी,अचानक बहुत बड़ा तूफान आ गया। हवा इतना तेज था कि उसके बहुत से खेमे/तंबू उड़ गये। उस समय वह बैठकर अपना संस्मरण लिख रहा था, इस तूफान के वजह से किताब के पन्ने भीग गये और कुछ बिखर गये।

       बड़ी मशक्कत के बाद उसने पन्नों को इकट्ठा किया और उन्हें एक ऊनी कालीन में लपेट दिया। तूफान 2 घड़ी तक रहा। तूफान शाँत होने के बाद उसने बड़ी कठिनाई से आग जलवाई और सुबह तक वह पन्नों को सुखाने में लगा रहा।

भारतीय कृषि और बस्तियों के बारे में बाबर का यह नोट्स बड़ा दिलचस्प है:- हिंदुस्तान में बस्तियाँ और गाँव, शहर के शहर, एक लम्हे में ही वीरान हो जाते हैं और तुरंत बस भी जाते हैं। बरसों से आबाद किसी शहर के बाशिन्दे उसे छोड़कर चले जाते हैं। वे लोग, ये काम कुछ इस तरह करते हैं कि मात्र डेढ़ दिन के अंदर ही वहाँ से उनका नामोनिशान तक मिट जाता है।

      दूसरी ओर अगर वे किसी जगह बसना चाहते हैं तो उन्हें पानी के रास्ते खोदने की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि उनकी सारी फसलें बारिश के पानी से होती हैं। चूँकि हिंदुस्तान की आबादी बहुत ज्यादा है इसलिए लोग उमड़ते हुये चले आते हैं। पानी पीने के लिए वे एक तालाब या कुआँ खोद लेते हैं, उन्हें घर बनाने या दीवार खड़ी करने की भी जरूरत महसूस नहीं होती क्योंकि खस की घास यहाँ बहुत होती है, जंगल आपार हैं, झोपड़ियां बना ली जाती हैं, और एकाएक गाँव या शहर खड़ा हो जाता है।

     बाबर ने केले, इमली, महुये, जामुन कटहल आदि फलों का वर्णन किया है लेकिन इनमें उसने “आम” की खुलकर प्रशंसा की है। आम को फलों का राजा कहता है।

Exit mobile version