जयपुर
राजस्थान में राजनीतिक तूफान अभी थमा हुआ है। क्या वास्तव में ऐसा है? क्या ये तूफान से पहले की शांति है? पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा था कि 2 दिन में राजस्थान की स्थिति क्लियर हो जाएगी। वो समय बीत चुका है। वेणुगोपाल ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के लिए साउथ इंडिया चले गए हैं।
इधर, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जिस तरह एक्टिव होकर पब्लिक प्रोग्राम में हिस्सा ले रहे हैं, उससे ‘ऑल इज वेल’ का मैसेज दिया जा रहा है। क्या वास्तव में सब कुछ ऐसा ही है, जैसा दिख रहा है?
राजस्थान की जनता के बीच में अशोक गहलोत, सचिन पायलट और कांग्रेस से जुड़े कई सवाल हैं, जो अब भी चर्चाओं में हैं? लेकिन जवाब किसी के पास नहीं है। इन सवालों के जवाब ढूंढने के लिए
उठ रहे तीन प्रश्नों के जवाब और समझते हैं उनके मायने..
इसका आधार क्या है?
- पार्टी ये बात अच्छी तरह जानती है कि गहलोत को नाराज करके राजस्थान में अभी सरकार को नहीं बचाया जा सकता।
- राजस्थान आए पर्यवेक्षक MLA और गहलोत को विश्वास में नहीं लेने की गलती कर चुके हैं। गहलोत ने राष्ट्रीय अध्यक्ष तक का चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। ऐसे में पार्टी अब उन्हें भरोसे में लिए बिना कुछ नहीं करेगी।
- अशोक गहलोत ने जिस तरह से सार्वजनिक रूप से माफी मांगी है। ऐसा राष्ट्रीय राजनीति में सीएम लेवल पर कभी नहीं हुआ। ऐसे में स्पष्ट मैसेज गया कि गांधी परिवार के प्रति उनमें निष्ठा है।
- दिल्ली से लौट कर गहलोत दौरे करने लगे। खुलकर हर सवाल का जवाब देने लगे और बजट बनाने तक की बात की। इससे क्लियर है कि वे बेफिक्र हैं। पद से ज्यादा उन्होंने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है।
- बहुत जरूरी हुआ तो उनके पक्ष के 102 MLA में से किसी को CM बनने का तोहफा मिलेगा।
सोनिया गांधी और अशोक गहलोत की मुलाकात का सार क्या है?
इस सवाल का पुख्ता जवाब तो गांधी परिवार और गहलोत के पास ही है। दोनों का कोई बयान नहीं आया है। दोनों के बीच गोपनीय बात हुई, लेकिन मौजूदा हालात में जो समझ आ रहा है, वह ये है कि पार्टी किसी भी हालत में सरकार नहीं गंवाएगी, क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले 12 राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं। कांग्रेस पंजाब में गलती कर चुकी है।
दूसरा, अमरिंदर जैसे हालात राजस्थान में नहीं हैं। गहलोत के समर्थन में करीब 70 विधायकों ने इस्तीफा दिया है, जबकि पंजाब में ज्यादातर विधायक अमरिंदर के खिलाफ थे। गहलोत के दिल्ली जाने के बाद भी कई मंत्रियों और विधायकों ने नया सीएम बनने की स्थिति में इस्तीफा देने की बात कही थी। ये जानकारी गांधी परिवार को भी है।
सोनिया गांधी से मुलाकात में गहलोत ने क्या कहा?
पिछले कई दिनों के सीएम के बयानों और उनकी बातों का विश्लेषण करें तो ये समझ आता है कि उन्होंने इन मुद्दों पर बात की-
पायलट को सीएम बनाया तो विधायक नाराज होंगे: सीएम के लिए सचिन पायलट का नाम सामने आने के बाद विधायक जिस तरह नाराज हो गए, अगर बना दिया तो सरकार गिरने का संकट।
पायलट ने प्रदेशाध्यक्ष रहते बगावत की: कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए पार्टी से सचिन पायलट की बगावत। साथ ही, उन्होंने कहा कि वे आज सार्वजनिक माफी मांग लेंगे, लेकिन पायलट ने जो किया उसके लिए कभी माफी नहीं मांगी, क्योंकि वे इसको गलती मानते ही नहीं।
जूता कांड से पायलट गुट का कनेक्शन: सोनिया गांधी को भरोसा दिलाया कि सचिन पायलट और उनके समर्थकों की शह पर खेल मंत्री अशोक चांदना पर जूता फेंका गया। चांदना और विधायक शकुंतला रावत को किस तरह से बाहर निकाला गया, जबकि बीजेपी के विधायकों को पूरा मान-सम्मान मिला।
गहलोत के प्रदेशाध्यक्ष रहते 156 विधायक: अशोक गहलोत 1998 में सबसे पहले मुख्यमंत्री बने थे। गहलोत उस वक्त राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे। उस दौरान कांग्रेस के 156 MLA बने थे, लेकिन इसका श्रेय उन्होंने कभी नहीं लिया। 2018 में पायलट के कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए चुनाव में 100 विधायक जीते थे, लेकिन पायलट गुट में श्रेय की होड़ मची रही, जबकि उन्होंने एक बार भी ऐसा नहीं बोला।
सरकार का विरोध: गहलोत कैंप का आरोप है कि 2018 में सरकार बनने के बाद से पायलट और उनके समर्थक लगातार सरकार को अस्थिर करने की साजिश में लगे रहे। उन्होंने सोनिया को भाजपा के साथ साठगांठ और पैसे के लेने के कुछ सबूत दिए।
पार्टी की हर चुनाव में जीत: पायलट गुट के तमाम विरोध के बावजूद लोकसभा छोड़कर उप चुनाव, पंचायत चुनाव और राज्यसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत हुई।
इमोशनल कार्ड: गहलोत ने यह भी पार्टी नेतृत्व को बताया है कि मैं इस्तीफा देने को तैयार हूं, लेकिन ऐसा माहौल बनाया गया, जैसे मैं पद छोड़ना नहीं चाहता हूं।
एक लाइन का प्रस्ताव: प्रस्ताव पर सहमति नहीं बन सकी, क्योंकि ज्यादातर मंत्री-विधायक इसके पक्ष में नहीं थे। उनके मन में आशंकाएं हैं। कांग्रेस के अलावा निर्दलीय और अन्य पार्टियों से आए विधायक…सबको मनाना संभव नहीं है।
निष्कर्ष : गहलोत ने स्पष्ट कर दिया कि राजस्थान के विधायक क्या चाहते हैं। वे हाईकमान का सम्मान करते हैं, लेकिन ऑब्जर्वर हाईकमान का संदेश सही से बताने में नाकाम रहे। इसके चलते ऐसे हालात बने। ये गलती न विधायकों की, न हाईकमान के सम्मान की, बल्कि ऑब्जर्वर के गलत कम्युनिकेशन से ये हालात बने।
गहलोत के जो सीएम बने रहने के आधार हैं, वे ही आधार पायलट के नहीं बनने के होंगे
गहलोत और उनके समर्थक विधायक कभी इस बात पर राजी नहीं होंगे कि पायलट सीएम बनें। सचिन के पास 18 विधायक हैं। अगर संख्या बढ़ भी जाए तो इसकी 25 से ज्यादा नहीं है। गहलोत गुट के पास वैसे 100 से ज्यादा विधायक हैं। यह संख्या 50 प्रतिशत तक भी कम हो जाए तो 40-45 से कम नहीं रहेगी।
…तो क्या पायलट और उनके समर्थक चुप बैठ जाएंगे ?
बिल्कुल नहीं। जिस तरह से सत्ता में रहते हुए पार्टी की चुनौतियां बढ़ाते रहे हैं, यह आगे भी जारी रहेगा। अभी राजस्थान में ग्रामीण ओलिंपिक हो रहे हैं। पायलट कभी इसमें शामिल नहीं हुए। उसी तरह वे गहलोत से जुड़े सभी कार्यक्रमों से दूर रहेंगे। गहलोत और उनसे जुड़े मंत्रियों के खिलाफ माहौल भी बनाएंगे।
क्या गहलोत और पायलट साथ मिलकर 2023 के चुनाव की तैयारी कर लेंगे?
ये तभी संभव है, जब पायलट की भूमिका तय हो। एक बात निकलकर आ रही है कि उन्हें फिर से प्रदेशाध्यक्ष बना दिया जाए, लेकिन क्या वे इसके लिए तैयार होंगे? ये बड़ा सवाल है। वहीं पायलट को प्रदेशाध्यक्ष बना दिया तो गोविंद सिंह डोटासरा का क्या होगा? इनको हटाने से जाट समाज में गलत मैसेज जाएगा। इस प्रश्न का उत्तर भविष्य के गर्भ में है कि आखिर पायलट सीएम के अलावा किस जिम्मेदारी के लिए तैयार होंगे?
तो क्या सचिन पायलट अन्य पार्टी में जा सकते हैं?
भाजपा और आप में जाने की कई बातें हो रही हैं, लेकिन फिलहाल कांग्रेस नहीं छोड़ेंगे, क्योंकि गहलोत के बाद पायलट कांग्रेस में दूसरे नंबर पर हैं, जो प्रदेश में जाना-माना चेहरा हैं। वे ये बात जानते हैं कि अन्य पार्टियों में जाने के बाद उन्हें लंबा संघर्ष करना होगा, जबकि कांग्रेस में रहकर वो जल्दी कुछ पा सकते हैं।
अब बात बगावत का नेतृत्व करने वाले तीन मंत्रियों और अन्य की
आधार क्या?
पायलट गुट के विधायक दल के मंत्रियों और विधायकों ने बगावत की थी। इनमें से मंत्रिमंडल में 5 मंत्री हैं। हालांकि, कुछ समय के लिए इनको बर्खास्त कर दिया गया था, लेकिन वो परिस्थितियां अलग थीं। विधायक गायब हो चुके थे। तीनों मंत्रियों ने दिल्ली में बात कर ली है। साथ ही, गहलोत के खास हैं। वो नोटिस का जवाब देंगे। पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष पर्यवेक्षक भी थे। बहुत हद तक ये संभव है कि इन पर कार्रवाई नहीं हो।
जिन विधायकों ने इस्तीफा दिया है, उनका क्या होगा? ये दबाव की राजनीति है। जल्द ही इस्तीफे वापस हो जाएंगे। विधानसभा अध्यक्ष इन्हें लौटा देंगे।
गहलोत के लिए इन पांच भाषणों में है पॉलिटिकल ड्रामा का सार
इंटरनल पॉलिटिक्स
‘इंटरनल पॉलिटिक्स में यह सब चलता रहता है। यह सब सॉल्व कर लेंगे। यह मैं कह सकता हूं।’
-28 सितंबर दिल्ली पहुंचने पर
मैंने माफी मांगी है..
‘मैंने हमेशा वफादार सिपाही के रूप में काम किया है, जो कुछ हुआ उसके लिए मैंने माफी मांगी है।’
-29 सितंबर को दिल्ली में सोनिया गांधी से मिलने के बाद
आखिरी सांस तक सेवा करूंगा
‘जो कहता हूं, उसके मायने होते हैं। कहीं भी रहूं, मैं अंतिम सांस तक राजस्थान की सेवा करता रहूंगा।’
-1 अक्टूबर को बीकानेर में
जिन्होंने सरकार बचाई, उन्हें कैसे धोखा दूं
‘जिन्होंने मेरी सरकार बचाई थी, ऐसे 102 विधायक थे। मैं कैसे उन्हें धोखा दे सकता हूं। इसलिए मैंने कांग्रेस अध्यक्ष से माफी मांगना मंजूर किया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का पार्टी में इतना योगदान रहा है। मुझे तो संकोच हो रहा था। मैं उन्हें जाकर क्या कहूंगा?’
‘ऑब्जर्वर को भी चाहिए कि वे कांग्रेस अध्यक्ष की सोच, व्यवहार के ढंग से काम करें, ताकि वह ऑरा बना रहे। राजस्थान का केस अलग हो गया। यह तो हिस्ट्री में लिखा जाएगा।’
-2 अक्टूबर को जयपुर में
राजनीति गुणा-भाग से चलती है
‘गुणा-भाग होकर राजनीति होती है। राजनीति में जो होता है, वह दिखता नहीं। जो दिखता है, वह होता नहीं। आप तह तक जाइए।’
-3 अक्टूबर को जयपुर में
हाईकमान नहीं चाहता राजस्थान में सरकार गिरे
दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से हुई मुलाकात में गहलोत भावुक होकर माफी मांगते हुए इस्तीफा देने की पेशकश कर चुके हैं, लेकिन सोनिया गांधी ने ही उन्हें रोका है। सोनिया गांधी ये जानती हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले 12 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। अभी कांग्रेस राजस्थान और छत्तीसगढ़ केवल दो ही राज्यों में खुद के दम पर सरकार चला रही है।
गहलोत सरकार के मंत्री-विधायक सीएम पद पर बदलाव की स्थिति में इस्तीफे देकर मिड टर्म इलेक्शन (मध्यावधि चुनाव) में जाने की चेतावनी दे चुके हैं। सीएम को बदला गया तो मंत्री-विधायक खुलकर बगावत कर सकते हैं। राजस्थान में 2023 अंत में विधानसभा चुनाव होना है। गांधी परिवार सवा साल पहले अपनी पार्टी की सरकार गिरते नहीं देखना चाहता है।
12 राज्यों में होने हैं विधानसभा चुनाव
इस साल के अंत तक गुजरात, हिमाचल प्रदेश में चुनाव होने हैं। अगर जम्मू-कश्मीर में चुनाव होते हैं तो 3 राज्य हो जाएंगे। इसके बाद 2023 में 9 राज्य, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, त्रिपुरा, मेघालय, नगालैंड और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होने हैं। इन 12 राज्यों में 151 लोकसभा सीटें हैं। इन राज्यों के बाद 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं।
गहलोत क्या चाहते हैं?
सीएम अशोक गहलोत चाहते हैं कि पार्टी आलाकमान की ओर से राजस्थान को लेकर एक सर्वे करवा लिया जाए। जानकारी के मुताबिक, अगस्त में ही उन्होंने राजस्थान को लेकर इस तरह का सर्वे कराने की बात आलाकमान को कह दी थी, क्योंकि राजस्थान में फिर से कांग्रेस की सरकार बनाने की तैयारी में पार्टी और सरकार जुटी है। एक बार फिर से इस बात को पार्टी आलाकमान के सामने मजबूती से उठाया गया है। ताकि जनता जनार्दन बता दे कि सीएम फेस के रूप में वह किसे देखना पसंद करती है।
फूट का भाजपा को फायदा
राजस्थान कांग्रेस सरकार और पार्टी में चले सियासी घटनाक्रम पर बीजेपी कुछ कहने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि पिछली बार से वह सबक ले चुकी है। अब तक कांग्रेस पार्टी की फूट का फायदा बीजेपी नहीं उठा सकी है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिरोही जिले में आबू रोड पर मानपुर हेलिपैड पहुंचे तो उन्होंने गांधीवादी तरीके से जनता को तीन बार झुककर दंडवत प्रणाम किया। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजस्थान में बीजेपी बहुत ही विनम्रता, सादगी और सरल तरीके से चुनाव लड़ना चाहती है।
जनता के बीच योजनाएं गिनाकर डैमेज कंट्रोल
किसान कर्ज माफी, फ्री सेनेटरी पैड की उड़ान स्कीम, पीडीएस सिस्टम में गरीबों को राशन जैसी कई बड़ी स्कीम सरकार लाई है। राजस्थान में 2022-23 में गहलोत ने लोक-लुभावन और शानदार बजट दिया। 50 यूनिट तक बिजली फ्री कर दी गई। लाखों लोगों को फ्री बिजली मिल रही है। लेकिन बजट के बाद बने पॉजिटिव माहौल के बीच मौजूदा पॉलिटिकल क्राइसिस के दौर ने एक बार फिर सरकार की छवि को धक्का लगाया है। यह बात बिल्कुल सही है।
अब सीएम गहलोत फिर से विकास कार्यों, घोषणाओं और फैसलों के जरिए आगामी दिनों में सरकार की इमेज मेकिंग में जुटेंगे। ऐसे संकेत मिल रहे हैं। पॉलिटिकल क्राइसिस से पहले वाली स्थिति फिर से लाने की तैयारी में गहलोत सरकार जुट गई है। 2 अक्टूबर के दिन खादी पर 50 फीसदी छूट के साथ गांधीवादी तरीके से इसकी शुरुआत कर दी गई है।
क्या वो ही पर्यवेक्षक आएंगे?
नहीं। मल्लिकार्जुन खड़गे का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना तय है। ऐसे में उनके निर्देश पर ही ऑब्जर्वर आएंगे। साथ ही, अजय माकन की भूमिका संदिग्ध बताई जा रही है। कई सवाल उठ चुके हैं। इन परिस्थितियों में पार्टी नए ऑब्जर्वर भेज सकती है।