अबकी बार पाकिस्तान या चीन से भारत की टक्कर हुई तो यह सिर्फ समंदर, जमीन और वायु तक सीमित नहीं रहेगी। इस महायुद्ध में गैर-पारंपरिक तरीके इस्तेमाल होंगे। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसकी चेतावनी दे दी है। सेना के शीर्ष कमांडरों से कह दिया गया है कि वो सिर्फ परंपरागत ही नहीं बल्कि भविष्य की जंगों के लिए भी तैयारी करें। गुरुवार को रक्षा मंत्री ने इसी कड़ी में हाइब्रिड वॉरफेयर का भी जिक्र किया था। रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में उन्होंने इसकी बात की थी। उन्होंने कहा था कि साइबर, सूचना, संचार, व्यापार और वित्त सभी संघर्षों का हिस्सा बन गए हैं। इसके बाद हाइब्रिड वॉरफेयर की चर्चा होने लगी है। सवाल उठता है कि हाब्रिड वॉरफेयर क्या है? युद्ध की यह तकनीक कितनी असरदार है? इसका कब-कब इस्तेमाल हुआ? आइए, इन सभी सवालों के जवाब जानते हैं।
क्या है हाइब्रिड वॉरफेयर?
हाइब्रिड वॉरफेयर सैन्य रणनीति का एक सिद्धांत है। इस टर्म को सबसे पहले फ्रैंक हॉफमैन नाम के शख्स ने उछाला था। हाइब्रिड वॉरफेयर पारंपरिक युद्ध, अनियमित युद्ध और साइबर युद्ध के साथ राजनीतिक युद्ध के मिश्रण की बात करता है। हाइब्रिड वॉरफेयर में एक ओर जहां पारंपरिक जंग जारी रहती है। वहीं, दूसरी तरफ फेक न्यूज, डिप्लोमेसी, अंतरराष्ट्रीय कानून और विदेशी हस्तक्षेप जैसे तरीकों से भी जंग को प्रभावित करने की कोशिश की जाती है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि यह युद्ध के साथ प्रॉपगेंडा चलाने का भी कॉन्सेप्ट है।
कितनी असरदार है हाइब्रिड वॉरफेयर तकनीक?
हाइब्रिड वॉरफेयर तकनीक बेहद असरदार साबित हुई है। इसे रोक पाने में ‘हार्ड पावर’ यानी विशुद्ध सैन्य शक्ति नाकाफी साबित होती है। यह तकनीक माहौल बनाने में भी काम आती है। इसके जरिये दुनिया युद्ध में शामिल दो देशों को अलग-अलग चश्मे से देखना शुरू कर देती है। यह युद्ध के दौरान किसी देश को अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की सहानुभूति हासिल करने में मदद करता है। कह सकते हैं कि इससे मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया जाता है। यह तकनीक एक को विलेन और दूसरे को हीरो की इमेज में दिखाने का काम करती है। सैन्य शक्ति के इतर इसमें साइबर, सूचना, संचार और व्यापार अलग से इस्तेमाल होता है।
कब-कब हुआ हाइब्रिड वॉरफेयर तकनीक का इस्तेमाल?
पाकिस्तान 1947 से हाइब्रिड वॉरफेयर का इस्तेमाल करता आया है। भारत के खिलाफ वह प्रॉक्सी के तौर पर आतंकियों को भेजता रहा है।
ताइवान और दक्षिण चीन सागर में ताइवान के खिलाफ चीन हाइब्रिड वॉरफेयर का इस्तेमाल करता रहा है।
2006 में इजरायल और हेजबुल्ला के बीच संघर्ष भी इसका उदाहरण है। हेजबुल्ला एक नॉन-स्टेट एक्टर है जिसे ईरान ने स्पॉन्सर किया। यह संगठन ईरान के लिए प्रॉक्सी के तौर काम करता है।
2014 में इराक में यह वॉर टेक्नीक देखने को मिली। तब नॉन स्टेट एक्टर इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड द लेवेंट (ISIL) ने पारंपरिक इराकी सेना के खिलाफ हाइब्रिड पॉलिसी का इस्तेमाल किया। जवाब में इराक ने भी आईएसआईएल का मुकाबला करने के लिए हाइब्रिड रणनीति की ओर रुख किया था। अमेरिका इसमें हाइब्रिड पार्टिसिपेंट बना था।
क्या कहा था रक्षा मंत्री ने?
रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को थल सेना के शीर्ष कमांडरों से कहा था कि वो भविष्य में भारत के सामने आने वाली हर संभव सुरक्षा चुनौती के लिए तैयार रहें। इनमें गैर-पारंपरिक युद्ध भी शामिल हैं। सिंह ने सोमवार को शुरू हुए थल सेना कमांडरों के सम्मेलन में यह टिप्पणी की थी। रक्षा मंत्री सिंह ने किसी भी संभावित स्थिति से निपटने के लिए सेना की परिचालन संबंधी तत्परता के लिए उसकी सराहना भी की थी। इसी दौरान उन्होंने हाइब्रिड वॉरफेयर का जिक्र किया था।