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तेजी से बढ़ रहा है गर्भाशय में रसौली का खतरा : क्या है समाधान?

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यह लेख चेतना मिशन से संबद्ध डॉ. गीता से हुए संवाद पर आधारित है. वे निःशुल्क मेडिकल सेवा के लिए सुलभ हैं.
~ जूली सचदेवा (दिल्ली)

     _इसे गर्भाशय लेयोओमामा या फाइब्रॉएड भी कहा जाता है। ये गर्भाशय के सौम्य चिकनी मांसपेशियों के ट्यूमर होते हैं। ज्यादातर महिलाओं में कोई लक्षण नहीं होता है जबकि दर्दनाक या भारी माहवारी हो सकती हैं। एक महिला में एक गर्भाशय रसौली या कई हो सकती हैं। यह जानलेवा भी है।_
     गर्भाशय में रसौली का सटीक कारण अस्पष्ट है। हालांकि, रसौली परिवार के एक पिढ़ी से दुसरी पिढ़ी में चलती हैं, यानी अमूमन यह आनुवंशिक होती है। यह आंशिक रूप से हार्मोन के स्तर से निर्धारित होती हैं।
     यदि कोई लक्षण नहीं है तो उपचार की आवश्यकता नहीं होती है। पैरासिटामोल, इबुप्रोफेन आदि दर्द और खून बहने में मदद कर सकते हैं। यदि अधिक लक्षण मौजूद हैं, तो रसौली या गर्भाशय को हटाने के लिए सर्जरी मदद कर सकती है। गर्भाशय धमनी अन्त:शल्य प्रक्रिया भी मदद कर सकती हैं।

लगभग 20% से 80% तक महिलाएं 50 वर्ष की आयु तक रसौली विकसित करती हैं। रसौली आम तौर पर प्रजनन वर्षों के मध्य और बाद के दौरान पाई जाती हैं। रजोनिवृत्ति के बाद रसौली आम तौर पर आकार में कम हो जाती हैं।
गर्भाशय में रसौली वाली कुछ महिलाओं में लक्षण नहीं देखते हैं। पेट दर्द, रक्ताल्पता और रक्तस्राव में वृद्धि से रसौली की उपस्थिति का संकेत हो सकता है। संभोग के दौरान भी दर्द हो सकता है। गर्भाशय में रसौली रिक्ताल दबाव का कारण बन सकता है।
गर्भावस्था की उपस्थिति के कारण पेट बड़ा हो सकता है। कुछ बड़ी रसौली योनि के माध्यम से फैल सकती है।

आज के दौर में 30 की उम्र के तक आने तक 03 में से 01 महिला को अनियमित माहवारी की समस्‍या से जूझना पड़ता है, जिससे उन्‍हें गर्भाशय में सिस्‍ट या यूट्रीन फाइब्रॉयड जैसी घातक बीमारी का शिकार होना पड़ता है।
ज्यादा बढ़ती उम्र, प्रेग्नेंसी, मोटापा भी इसका एक कारण हो सकते हैं। फाइब्रॉइड बीमारी से डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि 99 फीसदी ये बीमारी बिना कैंसर वाली होती है.

रसौली के अन्य लक्षण :
●माहवारी के समय या बीच में ज्यादा रक्तस्राव, जिसमे थक्के शामिल होते हैं।
●नाभि के नीचे पेट में दर्द या पीठ के निचले हिस्से में दर्द।
पेशाब बार बार आना।
●मासिक धर्म के समय दर्द की लहर चलना।
●यौन सम्बन्ध बनाते समय दर्द होना। योनि का नॉन-सेंसिटिव होना।
●मासिक धर्म का सामान्य से अधिक दिनों तक चलना।
●नाभि के नीचे पेट में दबाव या भारीपन महसूस होना।
●प्राइवेट पार्ट से खून आना।
कमजोरी महसूस होना।
●प्राइवेट पार्ट से बदबूदार डिस्चार्ज।
●पेट में सूजन, एनीमिया, कब्ज, पैरों में दर्द।
रसौली का आकार बड़ा हो चुका है तो डॉक्‍टर्स इसका इलाज या तो दवाइयां दे कर करते हैं या फिर माइक्रो सर्जरी दृारा। अगर रसौली आरंभिक दौर में है तो इसे प्राकृतिक तरीके से ठीक किया जा सकता है।
इसके लिये विदाउट प्रेसर- नेचुरल-ऑर्गस्मिक’सेक्स या क़्वालिटीफुल स्पर्मड्रिंक के अलावा कुछ ऐसे खाद्य पदार्थों का भी सेवन करना चाहिये जो इन गांठों के आकार को सिकोड़ अथवा गला सकें।
ग्रीन टी में पाए जाने वाले एपीगेलोकैटेचिन गैलेट नामक तत्व रसौली की कोशिकाओं को बढ़ने से रोकता है। रोजना 2 से 3 कप ग्रीन टी पीने से गर्भाशय की रसौली के लक्षणों को प्रभावी ढंग से कम किया जा सकता है।
प्‍याज में सेलेनियम होता है जो कि मांसपेशियों को राहत प्रदान करता है। इसका तेज एंटी-इंफ्लमेट्री गुण फाइब्रॉयड के साइज को सिकोड़ देता है।
एंटीबॉयोटिक गुणों से भरपूर हल्दी का सेवन शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकाल देता है। यह गर्भाशय रसौली की ग्रोथ को रोक कर कैंसर का खतरा कम करता है।
एक चम्‍मच आंवला पाउडर में एक चम्‍मच शहद मिलाकर रोजाना सुबह खाली पेट लें। अच्‍छे परिणाम पाने के लिए कुछ महीने इस उपाय को नियमित रूप से करें।
लहसुन में एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी पाएं जाते हैं जो ट्यूमर और गर्भाशय फाइब्रॉएड के विकास को रोक सकती है। लहसुन को खाने से गर्भाशय में रसौली की समस्या नहीं होती।
डॉक्टर मानते हैं कि अधिकतर महिलाएं अपने जीवनकाल में इस समस्या का सामना करती हैं लेकिन इसमें हमेशा इलाज की जरूरत नहीं होती है। रसौली प्राकृतिक रूप से भी सही हो जाती हैं।
हालांकि कई मामलों में ऑपरेशन=की जरूरत हो सकती है।

समय पर इलाज नहीं कराने से रसौली की मात्रा और आकार बढ़ सकता है, जिस वजह से आपको पेट दर्द और रक्तस्त्राव जैसे लक्षण और ज्यादा बढ़ सकते हैं।
आयुर्वेद में कचनार और गोरखमुंडी का जिक्र है। यह दोनों आपको आयुर्वेदिक दवाएं बेचने वाले पंसारी की दुकान पर मिल सकती हैं।
कचनार को मोटा-मोटा कूटकर एक गिलास पानी में उबाल लें। दो मिनट बाद इसमें मोटी पिसी हुई गोरखमुंडी डालकर एक मिनट तक उबालकर छोड़ दें। बेहतर परिणाम के लिए दिन में दो बार इसका सेवन करें।
यह एक आयुर्वेदिक उपाय है और इसका रिजल्ट आने में थोड़ा समय लगता है इसलिए लंबे समय तक इसका सेवन करते रहने से आप इस समस्या से राहत पा सकते हैं।
(चेतना विकास मिशन)

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