: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी इस हफ्ते की सबसे बड़ी खबर रही। मामला अदालतों तक गया, लेकिन न तो गिरफ्तारी से छूट मिली, न ही उन्हें जमानत मिल सकी। अब इस मामले में आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। जानते हैं कि इस पर विश्लेषक क्या कहते हैं…
शराब घोटाला मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गिरफ्तार कर लिया। इस मामले में राजनीति तेज हो गई है। केजरीवाल के पक्ष में समूचा विपक्ष खड़ा है, वहीं भाजपा आरोप लगा रही है कि एक ही विषय पर विपक्ष कितना पलट जाता है। आरोप-प्रत्यारोप से अलग अदालती कार्यवाही भी चल रही है। ‘खबरों के खिलाड़ी’ में इसी विषय पर चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, जयशंकर गुप्त, समीर चौगांवकर, प्रेम कुमार और अवधेश कुमार मौजूद रहे।
केजरीवाल की गिरफ्तारी को किस तरह देखते हैं?
रामकृपाल सिंह: यह गिरफ्तारी विवादों में रहेगी। अब गेंद अदालत के पाले में है। राजनीतिक दल जो भी कहें या भाजपा पर आरोप लगाएं, निचली अदालत, हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में ऐसा नहीं होता कि कोई पार्टी दबाव डालकर फैसला अपने पक्ष में करवा ले, इसलिए जो विपक्ष कह रहा है, उस तरह की टिप्पणी करना उचित नहीं होगा। यह भी देखना होगा कि प्रवर्तन निदेशालय के समन को लगातार नकारा जाता रहा। इससे सवाल उठता है कि वे बार-बार क्यों बच रहे हैं? क्या दाल में कुछ काला है? हालांकि, जब तक दोष साबित नहीं हो, तब तक किसी को दोषी नहीं कह सकते। जो भी दल केंद्र में सत्ता में रहेगा, उस पर सवाल उठेंगे। यूपीए की सरकार के समय सीबीआई को ‘पिंजरे में बंद तोता’ कहा गया था। हमें इंतजार करना चाहिए और अदालतों पर भरोसा रखना चाहिए।
प्रेम कुमार: अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर सवाल क्यों उठ रहे हैं? यह सामान्य मामला नहीं है। किसी को नौ बार समन क्यों भेजा गया। हर बार समन भेजा जाता था और भाजपा का बयान आता था कि वे क्यों पेश नहीं हो रहे। 10 बार समन भिजवाकर भाजपा ने ही राजनीति की। जिस कानून में केजरीवाल गिरफ्तार हुए, उसमें खुद को बेकसूर साबित करने की जिम्मेदारी आरोपी की ही हो जाती है। केजरीवाल तो पूछते रहे कि किस हैसियत से उन्हें पूछताछ के लिए बुलाया जा रहा है, आम आदमी पार्टी के प्रमुख की हैसियत से या मुख्यमंत्री की हैसियत से। केजरीवाल की गिरफ्तारी से इंडी गठबंधन को नुकसान होगा। उन्हें जेल भेजा जाना राजनीतिक प्रतिशोध के षड्यंत्र का हिस्सा है। अब के. कविता को सरकारी गवाह बनाने की तैयारी हो रही है। इसके क्या मायने हैं? कविता सरकारी गवाह बनकर केजरीवाल का नाम लेंगी और उनकी पार्टी भाजपा से गठबंधन कर लेगी?
इस मामले में भाजपा की मिलीभगत के आरोप लग रहे हैं। इसमें कितना दम है?
समीर चौगांवकर: 2019 में जब दिल्ली सरकार नई आबकारी नीति लेकर आई तो भाजपा ने तो नहीं कहा था कि नई नीति बनाओ। उपराज्यपाल के पास मंजूरी के लिए इसे केजरीवाल सरकार ने ही भेजा। मुख्य सचिव की शिकायत पर इस मामले में जांच के आदेश हुए। पांच फीसदी के कमीशन को 12 फीसदी करने की क्या जरूरत थी? अदालत ने ही कहा कि आम आदमी पार्टी को इसमें पक्षकार बनाइए क्योंकि आरोप है कि इस पैसे का इस्तेमाल गोवा के विधानसभा चुनाव में हुआ। उस समय आम आदमी पार्टी के नेता समझ नहीं पाए कि हम फंस जाएंगे। 13 महीने से मनीष सिसोदिया की जमानत क्यों नहीं हो पाई? शीर्ष अदालतों से उनकी जमानत खारिज हो रही है। अब केजरीवाल जेल से सरकार चलाने की बात कर रहे हैं। क्या जनता को अपनी समस्याएं लेकर उनके पास जेल तक जाना होगा? आम आदमी पार्टी और देश के अन्य राजनीतिक दलों में अब कोई फर्क नहीं बचा।
जयशंकर गुप्त: राजनीतिक षड्यंत्र के तहत यह गिरफ्तारी हुई है। विदेशी मीडिया भी यही कह रहा है। हेमंत सोरेन, सत्येंद्र जैन, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह के बाद अब केजरीवाल गिरफ्तार हुए हैं। हाईकोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी से छूट नहीं मिलेगी, लेकिन इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने ईडी से कहा कि आप आरोपियों को जेल में रखने और जमानत से रोकने के लिए अनुपूरक आरोप-पत्र दाखिल नहीं करते रह सकते। भाजपा कहती थी कि अजीत पवार को नहीं छोड़ेंगे। अशोक चव्हाण, हिमंत बिस्व शर्मा को नहीं छोड़ेंगे। अब इनमें से एक नेता मुख्यमंत्री हैं। दूसरे राज्यसभा में हैं। तीसरे उपमुख्यमंत्री हैं।
क्या यह मामला राजनीतिक प्रतिशोध का है?
अवधेश कुमार: न्याय, ईमानदारी, सदाचार की बात करने वाले लोग देश को धोखा देते हैं और बाकी लोग उनके पक्ष में खड़े हो जाते हैं तो दुख होता है। आखिर नौ बार समन भेजने की जरूरत क्यों पड़ी? पहली-दूसरी बार में केजरीवाल पेश क्यों नहीं हुए? ईडी के वकील ने स्पष्ट कर दिया था कि हम केजरीवाल को गिरफ्तार करेंगे। जवाब में सबूत मांगे गए। सबूत देखकर ही अदालत ने कहा कि इन्हें गिरफ्तारी से छूट नहीं मिलेगी। जब आप समन से बार-बार भागते हैं तो आप अभियोजन पक्ष के इस तर्क को जानबूझकर बल देते हैं कि वे जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं। इससे आरोपी का ही पक्ष कमजोर हो जाता है। आप पूछताछ में शामिल होते तो गिरफ्तारी भी शायद नहीं होती। अजीत पवार पर सवाल जरूर उठने चाहिए, जिसका जवाब भाजपा को देना होगा। ईडी के समन पर भाजपा क्यों प्रेस कॉन्फ्रेंस करती है, यह सवाल उठना चाहिए, लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस तो कांग्रेस भी कर रही है। आम आदमी पार्टी पर सौ करोड़ की रिश्वत लेने का आरोप लगा है। 45 करोड़ रुपये गोवा के चुनाव में भेजे गए। वहां के एक उम्मीदवार का बयान है कि हमें कैश में पैसा मिला। इसे कैसे नकार सकते हैं?
अजीत पवार से हाथ मिलाने पर भाजपा भी सवाल उठ रहे हैं?
रामकृपाल सिंह: इंडी गठबंधन की पहली बैठक पटना में हुई थी। तब प्रफुल्ल पटेल और अजीत पवार वहां बैठे थे। समाजवादियों के लिए तब वे 28 कैरेट गोल्ड थे। तब वे विपक्ष की वॉशिंग मशीन में धुले हुए थे। अजीत पवार पर तब भी वही आरोप थे, आज भाजपा से जुड़ने के बाद भी उन पर वही आरोप हैं। दिल्ली के शराब घोटाला मामले में अदालत कह चुकी है कि करोड़ों रुपये का पैसा आया, लेकिन किसके खाते में गया, यह जांच का विषय है। पार्टी की तरफ से अगर कोई अपराध करता है तो कोई न कोई व्यक्ति तो जिम्मेदार होगा? जिस अण्णा हजारे की छतरी के नीचे केजरीवाल खड़े थे, वही कह रहे हैं कि यह उनके कर्मों का फल है। किसी को ईमानदारी, बेईमानी का सर्टिफिकेट देने में जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए, लेकिन अगर आम आदमी पार्टी के नेताओं को निचली अदालत से लेकर सर्वोच्च अदालत तक जमानत नहीं मिल पा रही है तो केजरीवाल पर सवाल तो उठेंगे ही।
प्रेम कुमार: सवाल तो यह है कि देवेंद्र फडणवीस से लेकर प्रधानमंत्री तक सभी ने अजीत पवार पर आरोप लगाए थे, फिर भी उन्हें उप मुख्यमंत्री क्यों बनाया? प्रधानमंत्री जब कहते हैं कि इन्होंने हजारों करोड़ का घोटाला किया है तो जांच करवानी चाहिए थी, उन्हें उप मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहिए था। अरविंद केजरीवाल कह चुके हैं कि उन पर दबाव डालने की कोशिश हुई कि वे इंडी गठबंधन का हिस्सा न बनें। केजरीवाल और हेमंत सोरेन क्या इसलिए जेल जाएंगे कि वे भाजपा के साथ नहीं हैं?
समीर चौगांवकर: अजीत पवार, नारायण राणे, अशोक चव्हाण से भाजपा हाथ मिलाएगी तो सवाल तो उठेंगे। प्रधानमंत्री अगर कहते हैं कि न खाऊंगा, न खाने दूंगा, तो उसका पालन होना चाहिए। इस मामले में महाराष्ट्र में भाजपा का पक्ष कमजोर हो जाता है। कार्यकर्ताओं में भी नाराजगी है कि जमीनी स्तर पर जिन नेताओं के भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी के खिलाफ वे लड़ते रहे, उन्हीं अजीत पवार और नारायण राणे को उन्हें नेता मानना पड़ रहा है।
जयशंकर गुप्त: यह अघोषित आपातकाल का दौर चल रहा है। दावे किए जा रहे हैं कि हम 400 सीटों के पार जाएंगे, लेकिन उनका विश्वास डगमगा रहा है। नीतीश कुमार के तो डीएनए की बात हुई, फिर अब वो एक बार फिर भाजपा के साथ हैं।
अवधेश कुमार: प्रवर्तन निदेशालय अपने से कोई मामला दर्ज नहीं करता। जब पुलिस बताती है कि इसमें गैरकानूनी लेनदेन हुआ है, तब ईडी सक्रिय होती है। ईडी प्राथमिक जांच एजेंसी नहीं है। दिल्ली में पहला मामला सीबीआई ने दर्ज किया था। अब तक छह चार्टशीट दाखिल हो चुकी हैं। पहली ही चार्जशीट में अरविंद केजरीवाल का जिक्र है। पूरे दिल्ली को शराब की नगरी बनाने की कोशिश हुई।