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*INDIA नाम से मोदी की बौखलाहट के मायने क्या हैं*

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      ~ पुष्पा गुप्ता 

   मोदीजी के नेतृत्व में तमाम शहरों, सेंटरों, रास्तों का नाम बदलने वाला NDA आज विपक्ष के इंडिया नाम से खौफज़दा है. NDA सत्ता पिपासुओं का अड्डा बन गया है, जो सत्ता छिनने के हर डर से भयभीत हो जाते हैं। 

    भोपाल में न्यू मार्केट वाला इलाका टी.टी.[तात्या टोपे] नगर कहलाता है। जबकि उसका पूरा नाम तात्या टोपे नगर है। जबकि इसी तरह एमपी नगर का पूरा नाम महाराणा प्रताप नगर है। अधिकांश लोग इन स्थानों को उनके संक्षिप्त नाम से ही जानते है। साइन बोर्ड और एड्रेस में भी यही संक्षिप्त नाम उपयोग किए जाते है। अब तो शायद भोपाल के लोग ही पूरा नाम भूल गए।

     भोपाल में सार्वजनिक क्षेत्र का बहुत बड़ा संस्थान है जिसका पूरा नाम  Bharat Heavy Electricals Limited  है। इस संस्थान का संक्षिप्त नाम BHEL चलन में है। BHEL को हिंदी में भेल लिखा जाता है। अखबारों में भी भेल ही प्रचलित है। जबकि भेल नाम किसी ने रखा नहीं है। डॉ. अंबेडकर की जन्मस्थली का प्रचलित नाम महू है। जबकि इस स्थान का पूरा नाम Military Head Quarters of War (MHOW महू) है।

बताने का उद्देश्य यह है कि किसी भी संस्था के संक्षिप्त नाम नहीं रखे जाते। लोग अपनी सुविधा के लिए उन्हें इस्तेमाल करते है। किसी संक्षिप्त नाम को आतंकवादी संगठन या ईस्ट इंडिया कम्पनी से जोड़ना मानसिक रूप से दिवालियापन है।

     18 जुलाई को भाजपा विरोधी 26 दलों का गठबंधन अस्तित्व में आया। गठबंधन का पूरा नाम भारतीय राष्ट्रीय विकासमूलक समावेशी गठबंधन अर्थात्, Indian National Developmental Inclusive Alliance (INDIA) है।

     जबकि इसी दिन सत्ता पक्ष समर्थक 38 दलों ने अपने गठबंधन की मीटिंग की जिसका नाम National Democratic Alliance (NDA) है।

भाजपा के नेतृत्व में 1998 मे National Democratic Alliance (NDA) बनाया गया था। इस गठबंधन के प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी थे। NDA के संयोजक जार्ज फर्नांडिस थे और उनके निधन के बाद शरद यादव थे।

     इस समय NDA में जनता दल यू , तृणमूल कांग्रेस, तेदेपा, नेशनल कांफ्रेंस, बीजू जनता दल लोक जनशक्ति पार्टी आदि पार्टियां शामिल थी और सत्ता में भागीदार थी ।

     2004 में कांग्रेस के नेतृत्व में 10 पार्टियों ने मिलकर United Progressive Alliance ( UPA) गठबंधन बनाया था। जिसने मनमोहन सिंह के नेतृत्व में दस साल तक राज किया। 

      राजनैतिक गठबंधन बनाना कोई नई बात नहीं है। गठबंधन का पहला लक्ष्य यह होता है कि विरोधी वोटो को विभाजित होने से रोकना। 1967 में जब डॉ. लोहिया ने गैर कांग्रेसवाद का नारा दिया तो उनका उद्देश्य था कि कांग्रेस विरोधी मतों को बंटने से रोकना था।

 उनकी इस रणनीति का असर यह हुआ कि अनेकों प्रान्तों में गैर कांग्रेसी संयुक्त सरकारें बनी। गैरकांग्रेसी दलों में कोई सैद्धांतिक एकरुपता नहीं थी वे सिर्फ कांग्रेस को हटाने के नाम पर सहमत हुए थे।

      1977 में तो गठबंधन से आगे जाकर कांग्रेस विरोधी पार्टियों ने आपस मे विलय करके जनता पार्टी का गठन किया था और केंद्र में पहली बार कांग्रेस को अपदस्थ कर गैरकांग्रेसी सरकार बनाई गई थी।

      राजनैतिक ज़रूरत के हिसाब से गठबंधन बनते और बिगड़ते रहे है। परिस्थितियों के अनुसार दो तीन या चार गठबंधन हो सकते है। देवेगौड़ा  और गुजराल संयुक्त मोर्चा की ओर से प्रधानमंत्री बने थे। जिसमें गैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई दल शामिल थे। वीपी सिंह के नेतृत्व में जनमोर्चा बना और जन मोर्चा में अन्य दल शामिल होंने से जनता दल बना।

      जनता दल की पहल पर राष्ट्रीय मोर्चा का गठबंधन बना। वीपी सिह राष्ट्रीय मोर्चा – वाम मोर्चा गठबंधन समर्थित प्रधानमंत्री थे। इस सरकार को भाजपा का समर्थन था। लेकिन साम्प्रदायिक धुर्वीकरण के उद्देश्य से निकाली गई आडवाणी की रथयात्रा को रोकने और गिरफ्तारी के कारण भाजपा ने वीपी सिंह को दिया गया अपना समर्थन वापिस ले लिया था।

गठबंधन एक राजनीति  गोलबंदी है जिसका आधार सैद्धांतिक भी हो सकता है और व्यवहारिक भी।  गठबंधन अपनी मजबूती के लिए  न्यूनतम सैद्धांतिक आधार (कॉमन मिनिमम प्रोग्राम) तय कर राजनीति की दिशा तय करता है।

       भाजपा विरोधी गठबंधन की न्यूनतम सैद्धांतिक समझ तो कुछ कुछ नज़र आती है, लेकिन भाजपा समर्थक गठबंधन का क्या आधार है यह स्पष्ट नहीं है ? सत्ता और सिर्फ सत्ता ही एकमात्र एजेंडा है उनका। 

      भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में नरेंद्र मोदी के उदय के बाद NDA का विशेष महत्व नहीं बचा। 2014 और 2019 में स्पष्ट बहुमत प्राप्त करने के बाद भाजपा की इस पर निर्भरता नहीं रही। NDA का ढीला ढाला ढांचा कायम रहा लेकिन न कभी उसकी मीटिंग हुई और न शरद यादव के बाद कोई उसका संयोजक बना। 

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राज्यों में सरकार बनाने के लिए छोटे छोटे दलों को फांसने के लिए उन्हें केंद्र सरकार में भागीदार बनाया गया। जो भाजपा के जाल में फस गए वे सब NDA में है। सीबीआई ईडी के शस्त्र से आक्रांत नेता अपना अपना दल लेकर NDA का हिस्सा बन गए। राजभर  मांझी पासवान टाइप के नेता और उनकी जाति की पार्टी राजनैतिक सौदेबाजी के तहत NDA में आ गए।

      18 जुलाई को दिल्ली में हुई NDA की मीटिंग में 38 दल और उनके नेता शामिल हुए। मीटिंग में सब पार्टी और नेता नरेंद्र मोदी के भाषण सुनने और ताली बजाने के लिए बुलाए गए थे।  किसी को भाषण देने का मौका नहीं मिला। NDA के मंच पर पृष्ठभूमि में सिर्फ नरेंद्र मोदी की फ़ोटो थी।

      भाजपा विरोधी दलों के गठबंधन INDIA के सामने आते ही भाजपा में अजीब से बौखलाहट देखी जा रही है। ऐसा लगता है खतरे की घण्टी बज गई है। विरोध करने की कोई वजह न होने से INDIA नाम पर ही खिसिया रहे है।

      जब आपके गठबंधन NDA में 38 पार्टी है तो 26 पार्टी वाले गठबंधन INDIA से क्यों घबरा रहे हो साहेब। प्रधानमंत्री मोदी ने इस पर जो बयान दिया वह बचकाना है। उन्हें गठबंधनों का इतिहास नहीं मालूम ? उन्हें गठबंधन के नाम और उसके संक्षिप्त नाम का अंतर नहीं पता।

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